कौन न्यायी, दृढ़ है और कमजोरों के पक्ष में खड़ा होता है? कौन एक ईमानदार और काबिल प्रशासक है? कौन दुश्मनों का मुकाबला करता है और किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता? किसके पास महान भारत के निर्माण के लिए सोच और राजनीतिक कौशल है? कौन दुश्मनों के प्रति बेरहम है, लेकिन महिलाओं, बच्चों और अपने ही लोगों के प्रति रहमदिल है? कौन सभी धर्मों का सम्मान करता है और मुस्लिम, जैन व हिंदू साधु-संतों की श्रद्धा-करता है? आधुनिक भारत के लिए यह हीरो किस राजनीतिक दल में है?
वास्तव में किसी में भी नहीं, लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज समूचे भारत और भारतीयों में बसे हैं। किसी भी धर्म या सांस्कृतिक मूल के लोग हों, उनके लिए शिवाजी महाराज साहस, राज कौशल, देशप्रेमऔर ईमानदार प्रशासन की सनातन प्रतिमूर्ति है। वास्तव में उनमें ऐसे विलक्षण गुण थे जो मौजूदा भारत के राजनेताओं में होने चाहिए, लेकिन किसी-किसी में ही नजर आते है। शिवाजी, पूरे भारत के शिखर-पुरुष थे। इसके बावजूद, अगर आज आप भारत के किसी बुक स्टोर पर शिवाजी की जीवनी लेने जाते हैं, तो आपको एक भी खोजे नहीं मिलेगी। कइयों के तो प्रिंट भी खत्म हो चुके है। इनमें से जेम्स लेन द्वारा लिखी जीवनी को छोड़कर, जिसमें पश्चिमी विचारधारा के तमाम पूर्वाग्रह नजर आते हैं, अन्य सभी बीस से तीस वर्ष पुरानी हैं।
हमारे यहां फ्रांस में भी नेपोलियन के रूप में ऐसा ही एक हीरो हुआ है। सभी बच्चों को किंडर गार्डन से ही नेपोलियन की महान गाथाओं के बारे में बताया जाता है। शिवाजी की तरह नेपोलियन न सिर्फ एक जांबाज योद्धा, वरन अनूठी सोच वाले राजनेता भी थे। उन्होंने जो नियम-कायदे बनाए थे, उनमें से कई आज भी चलन में हैं। फ्रांसीसियों को नेपोलियन पर गर्व है और होना भी चाहिए। हर साल कम से कम चार या पांच किताबें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नेपोलियन के बारेमें लिखी जाती हैं। इसकी तुलना में भारत में शिवाजी के बारे में न सिर्फ एक किताब तक खोज पाना मुश्किल है, वरन पिछले साल केरल सरकार ने ऐसी स्कूल नोटबुक्स को प्रतिबंधित कर दिया, जिनमें छत्रपति शिवाजी की तस्वीरें अंकित थीं… यह सरासर गलत है। कोई भी देश प्रगति नहीं कर सकता, यदि उसे खुद पर गर्व नहीं है और अपनी संस्कृति से जुड़े नायकों से अपने बच्चों को परिचित नहीं करवाता, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है।
आखिर ऐसा क्यों है? शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां तकरीबन तीन सदियों तक अंग्रेजों का साम्राज्य रहा। भारत के कई राजनेता, नौकरशाह और पत्रकार अक्सर पश्चिम की नकल करते नजर आते हैं या उन्हें हमेशा इस बात की चिंता लगी रहती है कि पश्चिमी जगत उनके बारे में क्या सोचता है। उन्हें शेक्सपीयर के बारे में तो सब पता है, लेकिन कालिदास के बारे में नहीं, जो दुनिया के महानतम कवियों में से एक थे। उन्होंने अब्राहम लिंकन को बहुत पढ़ा है, लेकिन श्री अरविंदो जैसे महान दार्शनिक, कवि, क्रांतिकारी और महायोगी के बारे में कुछ नहीं जानते। चंद लोगों ने ही भगवतगीता पढ़ी है। या ये वे जानते हैं कि यह कर्मयोग को बढ़ावा देती है और यह सिखाती है कि अपने देश,संस्कृति और सीमाओं की रक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर बल प्रयोग करना उचित है, जैसा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया।
यह भी एक गलत धारणा है कि शिवाजी मुस्लिमविरोधी थे, क्योंकि उन्होंने औरंगजेब से लड़ाई लड़ी। शिवाजी ने सभी धर्मों को खुली छूट दी और जबरन धर्मांतरण का विरोध किया। शिवाजी ने एक फतह के बाद सबसे पहला काम यह किया कि मस्जिदों और मकबरों की सुरक्षा का फरमान जारी कर दिया। उनकी सेना में एक-तिहाई मुसलमान थे और उनके ज्यादातर सेनापति भी मुस्लिम थे।
औरंगजेब एक क्रूर शासक था। उसने अपने दो भाइयों की हत्या कर दी और पिता शाहजहां को कारागार में डाल दिया और बाद में जहर दे दिया। शिवाजी इकलौते ऐसे शख्स थे जो उसके खिलाफ तब खड़े हुए, जब हिंदुओं पर बहुत जुल्म ढाए जा रहे थे। उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा था और उन्हें कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा था, जैसे सीमा शुल्क का मसला, उनके उत्सवों और त्योहारों पर प्रतिबंध, उन्हें सरकारी ओहदों से हटाना और मुगल साम्राज्य की घोषित नीति के तहत उनका बड़े पैमाने पर धर्मांतरण। उन्हें हिंदू होने की वजह से ‘जजिया’ कर अदा करना पड़ता और यह भी तब, जबकि हिंदुओं कीतादाद कुल आबादी की तकरीबन अस्सी फीसदी थी।
शिवाजी इस्लाम की सूफी परंपरा का बहुत सम्मान करते थे और महान सूफी संत बाबा शरीफुद्दीन की दरगाह में अक्सर प्रार्थना करने जाया करते थे। उन्होंने एकऔर सूफी संत, कोंकण के शेख याकूब के दर पर जाकर उनसे आशीर्वाद लिया। मुगल इतिहासकार कफी खान और एक फ्रांसीसी पर्यटक बर्नियर ने उनकी धार्मिक नीतियों की प्रशंसा की है। शिवाजी ने अपने राज्य की महिलाओं के प्रति बेहद मानवीय और उदार नीति अपनाई।
शिवाजी की भावनाएं उनके द्वारा औरंगजेब को लिखे गए एक पत्र में झलकती है- ‘वस्तुत: इस्लाम और हिंदुत्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इनका इस्तेमाल सच्चे ईश्वरीय चित्रकारों द्वारा विभिन्न रंगों के सम्मिश्रण से रूपरेखा तैयार करने में किया जाता है। यदि कोई मस्जिद है तो उसमें होने वाली नमाज में उस परालौकिक शक्ति को ही याद किया जाता है।’ यदि किसी मंदिर की बात है, तो उसमें गूंजने वाली घंटियां भी उन्हीं को याद करती हैं। ऐसे में सभी भारतीयों को शिवाजी महाराज जैसे अपने महान विजेता के बारे में स्मरण कराने के लिए आखिर क्या किया जाए?
मुझे गर्व है कि मेरी संस्था ‘फैक्ट’ ने शिवाजी पर एक प्रदर्शनी आयोजित की है और आधुनिक भारत के लिए शिवाजी की प्रासंगिकता पर एक किताब भी इस साल के अंत तक प्रकाशित करने की योजना है। यह एक विदेशी का छोटा सा योगदान है, जो भारत से प्यार करता है और सोचता है कि यह महान नायकों से सजा एक महान देश है। जागो मेरे भारतीय भाई-बहनों! आप महान देश के निवासी हैं जिसमें कई महान नायक पैदा हुए हैं। शिवाजी उन्हीं में से एक हैं, जिन्हें हर कोई प्यार करता है। एक महान विभूति, भगवान का अवतार, जिसने भारत की इस पवित्र माटी में जन्म लिया, निर्भीक किंतु दयालु, एक महानायक, जिस तक हर कोई पहुंच सकता था। वे सच्चे मायनों में आधुनिक भारत के हीरो थे।
(लेखक फ्रांसुआ गौशिये पेरिस-स्थित ‘ल रेव्यू दलाइंड’ के प्रमुख संपादक हैं। यह लेख ‘दैनिक भास्कर’ (5 मई,2008) से साभार )