खेती किसानी के बेहतर भविष्य को आकार देती मोदी सरकार
एमएस स्वामीनाथन
साल 2004 में भारत सरकार कृषि मंत्री राजनाथ सिंह थे। इसी साल में आजाद भारत ह नही औपनिवेशिक भारत के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) का गठन किया गया। इसका उद्देश्य किसानों के परिवारों की समस्याओं पर गौर करना और खेती को ज्यादा आमदनी अर्जित करने लायक बनाना था। साथ ही युवा पीढ़ी के लिए आकर्षक बनाने के वास्ते सुझाव देना था।
साल 2006 में राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट में न सिर्फ खेती के विकास, बल्कि कृषि को आर्थिक लिहाज से बेहतर बनाने के सुझाव भी दिए गए थे। राष्ट्रीय किसान आयोग ने कृषि की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार के माध्यम से किसानों के लिए ‘न्यूनतम सकल आमदनी’ सुनिश्चित करने का एक अहम लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस कृषि प्रक्रिया का आकलन अग्रिम तौर पर आमदनी में सुधार का आकलन करके किया गया।
अन्य अहम लक्ष्यों में सभी कृषि नीतियों और कार्यक्रमों में स्त्री पुरूष को मुख्य धारा में लाना और टिकाऊ ग्रामीण आजीविका; भूमि सुधारों के अधूरे एजेंडे को पूरा करना और व्यापक संपत्ति एवं पारिवारिक सुधार की शुरुआत करना; और किसानों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली और सहयोगी सेवाओं का विकास शामिल है।
इसके साथ ही संरक्षण में आर्थिक हिस्सेदारी के द्वारा बड़ी कृषि प्रणालियों की उत्पादकता, लाभपरकता और स्थायित्व में टिकाऊ विकास के लिए भूमि, जल, जैव विविधता और जलवाय संसाधनों की रक्षा और सुधार आवश्यक है। फसलों, पशुओं और जंगलों में पेड़ों की जैव विविधता से किसानों के परिवारों के कामकाज और आमदनी की सुरक्षा के साथ ही राष्ट्र के स्वास्थ्य और व्यापार सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। इसी प्रकार ग्रामीण भारत में केंद्रीय खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा प्रणालियों को बढ़ावा दिए जाने से हर बच्चे, महिला और पुरुष के स्तर पर पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
युवाओं को खेती की ओर आकर्षित करने के लिहाज से किसान आयोग ने उत्पादन और खेती में फसल के बाद के चरणों में छोटे और सीमांत किसानों को आर्थिक ताकत देकर इसे बौद्धिक तौर पर प्रेरक और आर्थिक तौर पर पुरस्कृत करने वाला बनाने का सुझाव भी दिया। इसके साथ ही हर कृषि और गृह विज्ञान स्नातक को उद्यमी बनने में सक्षम बनाने के लिए कृषि पाठ्यक्रमों और शैक्षणिक पद्धतियों के पुनर्गठन व कृषि शिक्षा को लिंग संवेदनशील बनाने पर भी जोर दिया गया है।
इस प्रकार टिकाऊ कृषि और जैव प्रौद्योगिकी और आईसीटी के माध्यम से विकसित उत्पादों और प्रक्रियाओं के लिए जरूरी वस्तुओं के उत्पादन और आपूर्ति के लिए भारत को ग्लोबल आउटसोर्सिंग हब बनाने का लक्ष्य तय किया गया है।
किसान आयोग की रिपोर्ट भले साल 2006 में जमा कर दी गई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली मौजूदा सरकार के कमान संभालने तक इस पर काफी कम कार्य किया गया है। खुशकिस्मती से बीते चार साल के दौरान किसानों की स्थिति और आमदनी में सुधार के लिए कई अहम फैसले किए गए हैं।
कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय करके कृषि के विकास को किसानों के कल्याण के लिए अहम उपाय माना गया है। सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना खासा अहम है, क्योंकि पौधे की सेहत के लिए मृदा का स्वास्थ्य बुनियादी तत्व है और मानव स्वास्थ्य के लिए पौधे का स्वास्थ्य बुनियादी तत्व है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए बजटीय और गैर बजटीय दोनों संसाधनों का आवंटन किया गया है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से मवेशियों की स्वदेशी नस्लों के संरक्षण और टिकाऊ इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने पहली अंतरराष्ट्रीय कृषि जैव विविधता कांग्रेस का शुभारंभ भी किया।
इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार को प्रोत्साहन दिए जाने से विभिन्न कृषि बाजारों को एक साथ लाने में मदद मिल रही है। इसी प्रकार ग्रामीण कृषि बाजारों से खुदरा और थोक प्रारूप में सीधे बिक्री के अवसर भी मिलेंगे। वहीं कृषि क्षेत्र को संगठित कर्ज बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट सिस्टम के द्वारा समर्थिक कृषि उत्पाद और मवेशी विपणन अधिनियम, 2017 और कृषि उत्पाद और मवेशी अनुबंध कृषि सेवा अधिनियम, 2018 को भी पेश किया गया।
इसके साथ ही किसान आयोग की सिफारिशों के आधार पर एमएसपी तय किया जाना और ज्यादा से ज्यादा फसलों की एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित करना भी उल्लेखनीय कदम है। पीडीएस, मध्याह्न भोजन योजना और आईसीडीएस सहित कई कल्याणकारी कार्यक्रमों में प्रोटीन से भरपूर दालें और पोषण से संपन्न बाजरा को शामिल किया जाना अहम कदम है।
अतिरिक्त रोजगार पैदा करने और किसान परिवारों की आमदनी बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती, बांस उत्पादन, कृषि वानिकी, वर्मी कम्पोस्टिंग और कृषि प्रसंस्करण को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने भी सुझाव दिया है कि हमें ऐसी पद्धतियों का विकास करना चाहिए, जिससे किसानों की आमदनी पांच सालके भीतर दोगुनी हो जाए। इसके साथ ही मौजूदा सिंचाई उत्पादन को पूरा करने, आधुनिकीकरण और दुग्ध सहकारी समितियों में बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण और अंतर्देशीय व समुद्र जलीय कृषि को मजबूत बनाने कई तरह के कोष बनाए जा रहे हैं।
इन सबके अलावा एनसीएफ की सिफारिश पर लाभकारी मूल्य आधारित हाल की घोषणा कृषि को आर्थिक तौर पर व्यावहारिक बनाने के लिहाज से एक अहम कदम है। सरकार ने अपनी अधिसूचना में सुनिश्चित किया है कि खरीफ, 2018 से अधिसूचित फसलों का एमएसपी उत्पादन लागत का न्यूनतम 150 प्रतिशत होगा, जो मोटे अनाज के लिए 150-200 प्रतिशत के दायरे में होगा।
हाल में हुए किसानों के आंदोलनों की बड़ी मांगों में कर्ज माफी और एमएसपी पर एनसीएफ की सिफारिशों को लागू करना शामिल है। इन दोनों समस्याओं पर इन दिनों खासी चर्चा हो रही है और काम हो रहा है।
जय किसान की अवधारणा को महसूस करते हुए ये इस दिशा में उठाए गए कुछ कदम हैं। यदि ये सभी योजनाएं राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा प्रभावी तौर पर लागू कर दी जाती हैं तो इससे भारत को खाद्य और पोषण सुरक्षा के मामले में प्रमुख देश बनाने और कृषि व किसानों के भविष्य को नया आकार देने में मदद मिलेगी। इन सबके अलावा प्रधानमंत्री ने तीन साल के लिए 9,000 करोड़ रुपए के बजट के साथ राष्ट्रीय पोषण मिशन का शुभारंभ किया। उनका जोर कृषि को ग्रामीण भारत के प्रमुख उद्योग के तौर पर स्थापित करने के साथ ही कृषि को आमदनी का स्रोत और राष्ट्र गौरव बनाने की दिशा में हर संभव कोशिश करने पर है:
टाइम्स आफ इंडिया से साभार
लेखक राष्ट्रीय कृषक आयोग के अध्यक्ष हैं