गृह मंत्रालय महीनों से चीनी जूम एप से लोगों को आगाह कर रहा है। यह एप विश्वसनीय नही हैं। इसके इस्तेमाल से आपका डाटा सुरक्षित नही। इस तरह भारत की सुरक्षा एजंसियों ने भी सरकार से कहा है कि या तो जूम सहित चीन से जुड़े 52 एप्लिकेशन को ब्लाक कर दिया जाए या लोगों को इनका इस्तेमाल न करने की सलाह दी जाए। क्योंकि इनका इस्तेमाल करना सुरक्षित नही है। ये ऐप बड़े पैमाने पर डेटा को बाहर भेज रहे हैं। साथ ही चीन की हरकतो से नाराज देश का जनमानस चीनी समान का बहिष्कार का अभियान चला रखा है। लेकिन स्वदेशी की वकालत करने वालो को इसकी परवाह कहां। वो लोगों से अपील कर रहे हैं, और खुद जूम की धुन पर झूम रहे हैं। उमेश सिंह की रिपोर्ट..
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारों में… हिंदुस्तानियों के दिलों और घरों में – चीन हर जगह है. साथ ही हर जगह हैं चीन से नफ़रत और मुहब्बत करने वाले भी। चीन के उत्पाद हमसे बहुत करीब हैं लेकिन राष्ट्रवाद का बाजा जब दिलो-दिमाग पर बजता है या बजाया जाता है हमारे अंग-फड़क उठते है। हमारे रोम-रोम में वह बाजा बजने लगता है। बाजार और उपभोक्ता दोनों पशोपेश में हैं लेकिन अजब गजब हालत तो भगवा राष्ट्रवाद के आराधको-साधकों और स्वदेशी संकल्प वानो का है। स्वदेशी जागरण भावधारियो मे परदेशी प्रेम उमड़ घुमड़ रहा है।
भाजपाई इन दिनों अजब गजब हरकत कर रहे हैं। चीन की चाल को मात देने के लिए चीनी उत्पादों के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ रखा है लेकिन उसके बिना जिया भी नहीं जाता है। चीनी सामानों के भाजपाई बहिष्कार की महादशा में स्वीकार की अंतर्दशा चल रही है। कोरोना के आतंक में संगठन का आधार जूम एप है ,जो चीनी है। बीजेपी चीनी ई-तकनीक के जरिए प्रदेश के सांगठनिक कार्यक्रमों को चला रही है साथ ही में चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील भी बड़े ही धूमधाम के साथ कर रही है। खुद के जीवन में अमल हुआ नहीं तो ऐसे लोगों की अपील पर जनता पर कितना असर पड़ेगा , इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश भाजपा मुख्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक हर जगह जूम एप का प्रयोग किया जा रहा है। इसी के सहारे नेताओं का कार्यकर्ताओं से पारस्परिक संवाद चल रहा है। नीचे के काडर को संगठन का दिशा निर्देश दिया जा रहा है। मतलब क्या उत्तर प्रदेश भाजपा कार्यकर्ताओं का पूरा विवरण चीनी जाल में जा रहा है
मशीन हो या मनुष्य, निष्कर्म स्थिति में उसमें जंग लग जाती है। जंग लगे हथियारों से लड़ाई नहीं लड़ी जाती। भाजपा अपने कार्यकरताओ को हमेशा सक्रिय रहने की रणनीति पर चलती है। कोरोना काल में यही चीनी ई-तकनीक भाजपाइयों का सहारा बन गई है और उसी चीनी माध्यम से भाजपाई पारस्परिक संपर्क को साध रहे हैं और साथ में बहिष्कार का भी आह्वान कर रहे हैं। स्वीकार और बहिष्कार, आखिर एक साथ कैसे संभव है। चीनी सामानों के बहिष्कार का आंदोलन कितना सफल होगा इसका अंदाजा बहुत आसानी और सरलता से लगाया जा सकता है।
महात्मा गांधी ने कहा था, कि हमें विदेशी वस्तुओं के उपयोग से मुक्त होने की जरूरत है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसा तभी होगा, जब हम खुद अपनी चीजें बनाएंगे। महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ में भी विदेशी निवेश हो रहा है, फिर बहिष्कार की बात नाकाफी दिखती है। चीन को केवल हम उसके टिकाऊपन के खिलाफ मात दे सकते हैं। त्योहारों के सीजन में चीनी झालरों और पटाखों के इस्तेमाल न करने से केवल हम बहिष्कार की मुहिम नहीं चला सकते हैं। भारत में स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण की प्रक्रिया कुंद-सी पड़ गई है। भारत निर्यात की तुलना में सात गुना ज्यादा माल चीन से आयात करता है।चीन भारत का सबसे बड़ा कारोबार सहयोगी है। पिछले साल भारत ने चीन से 61 अरब डॉलर का साज़ोसामान आयात किया था, जबकि भारत ने चीन को महज़ नौ अरब डॉलर का निर्यात किया. भारत में आयात किए जाने वाले सामान में गिफ़्ट आइटम्स, टीवी, कम्प्यूटर के सामान, फ़ोन और लैंप्स वगैरह शामिल हैं।
चीन भारत के लिए ही नहीं दुनिया के बड़े ब्रांडस का मैन्युफेक्चरिंग हब बन चुका है। नामीगिरामी कम्पनियों के ज्यादातर उपकरण चीन से ही निर्मित होते हैं। चीनी उत्पादों के दाम सस्ते होने के कारण भारत के बहुत सारे उत्पादक वर्तमान में केवल और केवल ट्रेडर्स बनकर रह गए हैं। दरअसल दिक्कत यह है कि जितने मूल्य में भारत में उत्पाद बनता है, उससे कम दाम में वह ‘मेक इन चाइना’ के ठप्पे के साथ बाजार में आ जाता है। अगर बात की जाए तो प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था समतुल्य नहीं रहती है। अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता रहता है। अगर नजर डालें तो हमें पता चलेगा, कि 1960 और 70 के दशक में जापान विश्व बाजार पर अपना आधिपत्य स्थापित कर चुका था। इसके बाद 80 का दशक कोरिया का रहा। उसने दिन दोगुनी, रात चोगुनी उन्नति की और विश्व के लिए बाजार बनकर सामने आया। इसके बाद चीन का समय आया और उसने कब्जा जमाया। अब अगर भारत, पाकिस्तान के साथ चीन को जवाब देने को तत्पर नजर आ रहा है, तो उसे चीन को उसके पायदान से बेदखल करना होगा, इसके लिए भारत को अपने उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाना होगा। चीन के सामान गुणवत्ता और टिकाऊपन के क्षेत्र में कमजोर होते हैं, इस क्षेत्र में अच्छा काम करके भारत अपना स्थान बना सकता है। अगर लंबे समय के गुणवत्तापूर्ण सामान की बात करेंगे तो जर्मनी का नाम आएगा। जर्मन मशीनरी का अभी तक कोई सानी नहीं है। चीन ने भले ही सस्ते सामान बनाकर विश्व बाजार में स्थान बना लिया है, लेकिन गुणवत्ता के मामले में बहुत पीछे है। भारत को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
भारत, चीन के माल का बहिष्कार नहीं कर सकता, क्योंकि व्यापार भावनाओं पर नहीं होते, सस्ते उत्पादों और मुनाफों पर टिके होते हैं। वैश्विक दौर में किसी भी देश के लिए किसी अन्य देश के उत्पाद पर रोक लगा पाना संभव नहीं है।जिस तरह का उग्र राष्ट्रवाद भारत में चीन से व्यापारिक संबंध तोड़ने की बात कर रहा है, चीन भी अपने हित के लिए कर सकता है। भारत को पहले अपनी उत्पादकता बढ़ानी होगी, जिससे चीन की बराबरी की जा सके। जब तक भारत मूलभूत और देश की व्यवस्था के लिए नितांत आवश्यक चीजों के लिए चीन पर निर्भर रहेगा। भारत दीपावली की झालरों, पटाखों के सामान पर प्रतिबंध लगाकर सम्पूर्ण व्यापार बंद नहीं कर सकता है। अगर चीन को पाकिस्तान प्रेम की सजा सुनाना है, वह भी व्यापार बंद करके, तो इसके लिए जरूरी बुनियादी स्तर पर उद्योग-धंधों को विकसित करना होगा। स्वदेशी पर बल देना होगा।महात्मा गांधी, स्वदेशी व्रती दत्तोपंत ठेगडी आदि विचारकों की दिखाई गई राह पर चलना होगा।