महाराष्ट्र के किसान लाल साहेब देशमुख के पास कुल 60 एकड़ जमीन है ,उन्होंने पिछले वर्ष अपने कुल रकबे में से दस एकड़ रकबा में अनाज बोया था ,और तीस एकड़ में सोयाबीन का फसल बोया था |लेकिन इस फसल वर्ष में उन्होंने अनाज का फसल छोड़कर चालीस एकड़ क्षेत्र में सोयाबीन का फसल बोया है ,15 एकड़ क्षेत्र में गन्ने का फसल लगाया है , बचे हुए पांच एकड़ रकबे में उन्होंने फलों का बाग़ लगाया है |इसके पीछे उनका तर्क है कि हाल फिलहाल जो चीन अमेरिका में ट्रेड वार हो रहा है उससे सोयाबीन किसानों को फायदा होगा |महाराष्ट्र का लातूर जिला ,उज्जैन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक जिला है |
इसकी वाजिब वजह भी है, चीन दुनिया में सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक देश है। 2016-17 ( सितंबर-अक्टूबर) में चीन ने 93.49 मिलियन टन ये तिलहन खरीदा। चीन को सोयाबीन सप्लाय करने वाले देशों में अमेरिका( 36.84 मिलियन टन), ब्राजील( 45.34 मिलियन टन) और अर्जेंटीना( 6.67 मिलियन टन) सबसे बड़े देश हैं, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई व्यापार नीति के खिलाफ विरोध जताने के इरादे से चीन ने अमेरिका से आयात होने वाली सोयाबीन पर 6 जुलाई से 25 फीसद ड्यूटी लगा दी है।
चीन-अमेरिका के बीच छिड़ा ट्रेड वॉर
चीन ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने को 34 200 अरब डॉलर के चीनी आयात पर 10 फीसदी टैरिफ लगाया है। आपको बता दें कि पिछले साल ट्रंप ने 34 अरब डॉलर के चीनी आयात पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया था। जिसके बाद चीन ने भी जवाबी कार्रवाई की धमकी दी थी।
भारत के सोयाबीन उत्पादकों को होगा फायदा
चीन के इस कदम को उसी धमकी से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि दोनों मुल्कों के बीच छिड़े ट्रेड वॉर से दुनिया की अर्थव्यवस्था को भले ही नुकसान पहुंचने की आशंका हो, मगर भारत के लिए ये लड़ाई फायदेमंद साबित हो सकती है।
एमपी, राजस्थान के किसानों को हो सकता है फायदा
खासतौर पर मध्यप्रदेश और राजस्थान के सोयाबीन उत्पादक किसानों को इसका सीधा फायदा मिल सकता है। इनके लिए ये ट्रेड वॉर इसलिए भी अच्छी खबर है, क्योंकि केंद्र सरकार ने कुछ दिन पहले ही 2017-18 के लिए सोयाबीन के न्यूनतम समर्थन मूल्य को 3050 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 3399 रुपए प्रति क्विंटल किया है।
2012 में चीन ने भारत पर लगाया था ये प्रतिबंध
भारत ने आखिरी बार 2010-11 में चीन को डेड ऑयल केक(डीओसी) के जरिए तिलहन का निर्यात किया था। उस साल भारत ने 0.4 मिलियन टन रेपसीड ऑयल और 0.3 मिलियन टन सोयाबीन चीन को निर्यात किया था। मगर 2012 में भारत से कई रेपसीड ऑयल की खेप में केमिकल डाइ की मिलावट होने की शिकायत मिलने पर चीन ने सभी तरह के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
इस जुलाई से चीन ने सोयाबीन और उससे जुड़े उत्पादों पर लगने वाले तीन और पांच फीसद टैक्स को हटा दिया है। इसमें से ज्यादातर सोयाबीन एशिया पैसिफिक ट्रेड एग्रीमेंट के तहत आने वाले पांच देशों भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, दक्षिण कोरिया और लाओस से ही चीन आता है। हालांकि बाकी मुल्क भारत की तुलना में चीन को काफी कम मात्रा में सोयाबीन सप्लाय करते हैं।
इससे सोयाबीन प्रोसेसिंग से जुड़ी एसोसिशन काफी खुश हैं और ये उम्मीद जता रही हैं कि चीन जल्द ही कई और रियायतें दे सकता है। इसके लिए अलग-अलग एसोसिएशन ने कॉमर्स मिनिस्ट्री से भी इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा है।
ब्राजील, अर्जेंटीना को सोयाबीन बेचेगा अमेरिका
चीन की इस चाल का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर पड़ेगा। ऐसे में अमेरिका चीन द्वारा लगाए गए आयात शुल्क के बाद ब्राजील और अर्जेंटीना में ज्यादा सोयाबीन बेचेगा, जोकि सोयाबीन के बड़े उपभोक्ता देश हैं। ऐसे में ये देश फिर चीन को सोयाबीन का बड़े पैमाने पर निर्यात करेंगे, क्योंकि चीन ने इन पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है।
‘सोपा‘ को भारत के फायदे की उम्मीद
इंदौर में मौजूद सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन यानी सोपा के चेयरमैन देविश जैन ने अनुमान लगाया है कि, “भारत 2 मिलियन टन सोया उत्पाद और लगभग इतना ही रेपसीड चीन को सप्लाय कर सकता है।”
इंदौर में एमएसपी से ज्यादा में बिक रहा सोयाबीन
देश के कुल सोयाबीन उत्पादन 112.51 मिलियन टन में से मध्यप्रदेश में 58.45 मिलियन हेक्टेयर, महाराष्ट्र 35.84 मिलियन हेक्टेयर और राजस्थान 10.80 मिलियन हेक्टेयर सोयाबीन की खेती होती है। ऐसे में इन राज्यों के लिए ये अच्छी खबर है। उम्मीद इसलिए भी बढ़ी हुई है, क्योंकि इंदौर के गौतमपुरा बाजार में पिछले साल के 2850 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत से उलट इस साल सोयाबीन की कीमत 3500 रुपए प्रति क्विंटल जा रही है। ये कीमत सरकार द्वारा तय किए गए 3399 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ज्यादा है।
पिछले साल मध्यप्रदेश में सोयाबीन की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी 400-500 रुपए क्विंटल कम थी। इसे लेकर किसानों के विरोध के बाद शिवराज सरकार ने भावांतर भुगतान योजना की शुरुआत की, जिसके तहत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडियों में तय किए गए औसत भाव के बीच के अंतर का भुगतान किया गया। हालांकि इस बार स्थिति अलग है। पिछले साल का 1.3 मिलियन टन का स्टॉक अभी है।
वहीं नए सीजन में भी सोयाबीन की आवक एक मिलियन टन से भी कम रहने की आशंका है। ऐसे में स्थानीय बाजार और चीन से मांग बढ़ने की उम्मीद की वजह से इस बार सोयाबीन की कीमतें एमएसपी से भी ज्यादा रह सकती हैं। जिससे किसानों को ही फायदा होगा।