चुनौती नदी बचाने की

 

रामबहादुर राय

सद्गुरु जग्गी वासुदेव का नदी अभियान विनोबा के भूदान आंदोलन सरीखा है। विनोबा ने तब के सबसे बड़े सवाल पर जनमत जगाया। वैसे ही आज सबसे बड़ी चुनौती नदी को बचाने की है।

यह हाथों हाथ होने वाला काम नहीं है। इसे समझकर ही एक संत भारत यात्रा पर निकल पड़ा है। ऐसा अचानक नहीं हुआ। अचानक कुछ होता भी नहीं है। हर घटना में एक इतिहास भी छिपा रहता है। जिस संत की यात्रा का यहां उल्लेख हो रहा है, वे सद्गुरु जग्गी वासुदेव हैं।

ये हैं अनोखे। लीक से हटकर चलने और चलते रहने के लिए देश-दुनिया में जाने जाते हैं। पुराने शब्दों पर नए अर्थ की कलम चलाना इन्हें आता है। अकर्म में जीते हैं। इसलिए हर कर्म उनके लिए सुकर्म और सहज हो जाता है। अनेक नई पहल के वे पर्याय हो गए हैं। ऐसी ही पहल कोयंबटूर में हुई। जहां से नदी यात्रा उन्होंने शुरू की।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने यात्रा को हरी झंडी दिखाई। पंजाब के राज्यपाल वीपी सिंह बदनौर, खिलाड़ी वीरेन्द्र सहवाग, नारायण कार्तिकेयन और मिताली राज वहां उपस्थित थे। जिससे प्रकट होता है कि इस अभियान को भारत सरकार का जहां समर्थन प्राप्त है, वहां जनसहयोग भी उपलब्ध है।

क्यों नहीं मिलेगा सहयोग, जरूर मिलेगा, क्योंकि यह जन-जन को गहरे मथने वाला विषय जो है। यात्रा प्रारंभ करने से दो दिन पहले सद्गुरु दिल्ली आए। इंडिया गेट पर पहुंचे। पूरे देश से अपील की कि नदी बचाओ अभियान में अपना-अपना सहयोग दें। उनसे प्रेरित युवा उस समय सड़क पर थे। उनके हाथों में सद्गुरु का संदेश लहरा रहा था।  वह दृश्य उभरती नई चेतना का था।

               सद्गुरु नदी और जीवन के योग का मर्म समझाने निकल पड़े हैं। नदी ही
               जीवन कापर्याय है। वही इस समय संकट में है। भारत में करीब 400 नदियां 
            हैं, जिनका उद्गम जो भी हो और जहां भी हो, पर मंजिल एक है। सागर से 
          मिलना। यही वह चक्र है,  जो नदी को प्रवाह देता है और बदले मे  नदी समाज              को जीवन देती है।

सद्गुरु के इस मिशन का अपना इतिहास है। उनकी एक संस्था ऐसी है जो पर्यावरण को सुधारने में लगी है। उस संस्था ने तमिलनाडु में बढ़ते रेगिस्तान के खतरे को कम कर दिया है। वह ‘प्रोजेक्ट ग्रीन हैडंस’ है। जिसे तमिलनाडु में हर कोई जानता है। उसे सद्गुरु ने बनाया।

लगातार छह साल तक पौधे लगाने का अभियान चलाया। करीब तीन करोड़ पौधे लगाए गए। इससे तमिलनाडु के उन इलाकों में हरा-भरा क्षेत्र बना। उस कार्य को सराहना मिली।

जिसे दुनिया योगी के रूप में जानती और मानती है, उस सद्गुरु की विलक्षणता उनके विविध कार्यों में दिखती है। वे अपनी उम्र के साठवें पड़ाव की तरफ बढ़ रहे हैं। बचपन में ही सधुक्कड़ी की ओर मुड़े। योग की कुछ क्रियाएं सीखीं। उसे प्रयोग और प्रयास में बदला। अपने अनुभव से बढ़ते गए।

नया मोड़ आया, जब कोयंबटूर में इशा योग केंद्र बनाया। जहां इसी साल 112 फीट ऊंची आदि योगी की प्रतिमा स्थापित की। वह पूरी दुनिया में एक जाना-माना स्थान बन गया है। वहां 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे। वह एक बड़ा अवसर बन गया।

इस समय सद्गुरु योग को नया अर्थ दे रहे हैं। नदी और जीवन के योग का मर्म समझाने निकल पड़े हैं। इसे ही कहते हैं- पुराने शब्द पर नए अर्थ की कलम चलाना। नदी ही जीवन का पर्याय है। वही इस समय संकट में है। भारत में करीब 400 नदियां हैं, जो अपनी लंबाई में दो लाख किलोमीटर में फैली हुई हैं। जिनका उद्गम जो भी हो और जहां भी हो पर मंजिल एक है, सागर से मिलना।

यही वह चक्र है जो नदी को प्रवाह देता है और बदले में नदी समाज को जीवन देती है। इस परस्परता की रक्षा के लिए जैसी सचेत सामाजिक चेतना चाहिए, वह निरंतर लुप्त हो रही है। उसे ही सद्गुरु जगाने निकले हैं।

यह प्रयास सराहनीय तो है ही, एक नई समझ की मांग भी करता है। नदियों का संकट समय की सीमा में है। लेकिन नदी चेतना समय के पार जाती है। इसे अगर समझ लें तो नदी का संकट समय रहते ही दूर किया जा सकता है। यही सद्गुरु समझाएंगे।

बीते तीन साल से वे समय-समय पर यह बताना नहीं भूलते कि भारत का गौरव लौटाने के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिए। उनमें ही एक है नदी चेतना। जो भारत को समझ लेगा वह नदी चेतना से ओत-प्रोत हो सकता है।

भारत क्या है? इसे सद्गुरु ने अपने एक लेख में समझाया है। वे लिखते हैं कि ‘भा-र-त’ से बनता है ‘भारत’। ‘भा’ यानी ‘भाव’, ‘र’ से ‘राग’ और ‘त’ से ‘ताल’। यही है संगीत का मूलमंत्र। जिससे जीवन की कला का विस्तार होता है। उसका संबंध नदियों से भी है।

जरूरी हो गया है, नदियों की संगीत लहरी फिर से गूंजे। अगर नदियां संकट में हैं तो सद्गुरु बता रहे हैं कि भारत पर भी संकट आ सकता है।

 

 

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *