ठंडी ज़मीन के टुकड़े के भीतर बच्चियों की लाश तलाशने की कोशिश नाकाम रही. कोई नहीं जानता कि वाक़ई उस बच्ची की बलात्कार करके हत्या की गई या नहीं. मैं मुज़फ़्फ़रपुर की उन 44 बच्चियों की बात कर रही हूं जिनका 2013 से कथित तौर पर लगातार बलात्कार हो रहा था.
मैं उन बच्चियों से नहीं मिली हूं लेकिन मेरी रूह वहीं पड़ी है. मैं देख पा रही हूं उन्हें अपने भीतर. उनके सारे पंख लहूलुहान हैं. वे दबी ज़ुबान में चीख रही हैं. सलाखों वाली ऊंची खिड़कियों से आ रही तेज़ रौशनी में उनके चेहरे के सारे रंग उड़ गए हैं. एक लेखक के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी कि बार-बार उसे अमानवीय घटनाओं से गुज़रना पड़े.
बालिका अल्पावास गृह की 44 लड़कियों में से 34 के साथ बलात्कार की पुष्टि हो चुकी है. तीन लड़कियां गर्भवती हैं. दो लड़कियां बीमार हैं जिसकी वजह से उनकी मेडिकल जांच नहीं हो पाई है. गर्भवती लड़कियों को लेकर दो अलग-अलग रिपोर्ट हैं. पटना सिटी के गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल की रिपोर्ट में इन लड़कियों के गर्भवती होने की पुष्टि की है, पर पीएमसीएच के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं हुई है.
मुख्य अभियुक्त ब्रजेश सिंह के ‘स्वाधार गृह’ से 11 लड़कियां लापता हैं. मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह का मामला अब सीबीआई को सौंपा जा चुका है. पर ये भरोसा बनता नहीं है कि उन बच्चियों को न्याय मिल पाएगा.
मैं जिस दुनिया का सोग मना रही हूं वो पहले से ही बीमार है. अब वो मर चुकी है. जब औरतों की देह पर हमला हो या बच्चियों के बदन से उनका मांस नोच लिया जाए तो ये समझना होगा कि इसके पीछे पूरा विचार है. सत्ता और अश्लील पूंजी का खेल है. पता नहीं कैसी-कैसी भयानक बातों के आसार हैं. ये कल्पना का अंत है. ये वीभत्स विचारधारा बैठकों में, बदबूदार बिस्तरों में जन्म लेती है. हमारा सामान्य व्यवहार, हमारा समाज हमारे सपने तक आरंजित हैं.
इस घटना ने देश की सत्ता को पूरी तरह उधेड़ दिया है. काश कि हमारा देश उबल पड़ता. आग लग जाती, खेत-खलिहान जल उठते. इन बच्चियों की अंतहीन अंधेरी यातना भरी रात का अंत भी हो जाता. पर नहीं मालूम कि अभी और कितने दर्द और ख़ौफ़ के बीच इन्हें गुज़रना है. कोर्ट-कचहरी में हर बार अपने साथ हुए बलात्कार का बयान करना है.
फ़िलहाल मामला सीबीआई के पास है. हमारे देश में सीबीआई की भूमिका किसी से छुपी नहीं है. पिछले तमाम मामलों में सीबीआई ने क्या किया? मुज़फ़्फ़रपुर का ही नवरुणा कांड हो या कठुआ का मामला सीबीआई किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.
महिला संगठनों की लगातार मांग थी कि मुज़फ़्फ़रपुर समेत तमाम बाल गृहों और आश्रय गृहों की जांच हाईकोर्ट के जज की अध्यक्षता में कराई जाए. 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बालिका गृह मसले पर स्वत: संज्ञान लिया और केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेजा है. सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला महिला संगठनों के संघर्ष की जीत है.
पहली बार इस मामले को लेकर पटना के सभी महिला संगठनों ने प्रदर्शन किया था. उनके प्रदर्शन को किसी स्थानीय अख़बार ने नोटिस नहीं लिया.
इतनी भयानक ख़बरों पर अख़बार की चुप्पी कोई साधारण चुप्पी नहीं है. इसके पीछे पूरा तंत्र है. अख़बारों की भूमिका पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं, पर इस बार अख़बारों की भूमिका पर संदेह भी है. क्योंकि बालिका गृह चलाने वाले ब्रजेश ठाकुर भी पत्रकार रहे हैं. पत्रकारिता को शर्मसार करने की कहानी लंबी है और इसकी शुरुआत उनके पिता के समय से हुई.