कुलदीप नैयर जनांदोलन और सत्ता दोनों के बीच गहरी पैठ रखते हुए लोकतंत्र को मजबूती देने का जो काम उन्होंने किया, वह इतिहास में याद किया जाएगा। भारत-पाकिस्तान दोस्ती के वे प्रबल पक्षधर रहे और उनका मानना था कि दोनों मुल्कों के बीच शांतिपूर्ण और दोस्ताना रिश्ते ही दोनों मुल्कों के हक में हैं। उन्होंने हमेशा ही धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को भारत के लिए जरूरी माना और इसके लिए संघर्षरत रहे। मानवाधिकार आंदोलनों को मजबूत बनाने में उनकी भूमिका एक पत्रकार से अधिक आंदोलनकारी की थी। इसलिए मैं यह समझता हूं कि कुलदीप नैयर का सामाजिक जीवन, पत्रकारिता और मानवाधिकार का पहलू इतना व्यापक और वृहत्तर इसलिए हो पाया, क्योंकि उन्होंने कभी किसी विचारधारा से छुआछूत नहीं रखा। वे देश के पहले पत्रकार थे, जिन्होंने दिल्ली के प्रेस क्लब में जाकर इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल का विरोध किया, विचारों से समझौता नहीं किया और गिरफ्तार हुए।
कुलदीप नैयर से मेरा परिचय जयप्रकाश नारायण द्वारा छेड़े आंदोलन के वर्ष 1974 से था। उस समय मैं इस आंदोलन का सक्रिय कार्यकर्ता और कुलदीप नैयर इंडियन एक्सप्रेस में पत्रकार थे। नैयर आजीवन मानवाधिकार, राजनीति और वैश्विक संबंधों को लेकर उतने ही सक्रिय रहे, जितने की पत्रकारिता को लेकर। उनके पत्रकारीय जीवन में कई बार ऐसा हुआ जब उन्होंने अपने राजनीतिक संबंधों के कारण कई ऐसे खुलासे किए, जिसने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी। उसमें सबसे महत्वपूर्ण था लाल बहादुर शास्त्री का प्रधानमंत्री बनना। खैर इस बात की चर्चा मैं आगे करता हूं। हाल के आखिरी दिनों में 8 और 9 जून को लगातार उनसे मेरी दो मुलाकातें हुईं। मुलाकातें भाजपा अध्यक्ष द्वारा चलाए जा रहे ‘संपर्क फॉर समर्थन’ अभियान के तहत थीं।
करीब ढाई-तीन घंटे अमित शाह कुलदीपजी के साथ रहे। उन्होंने भाजपा की नीतियों, धर्मनिरपेक्षता और मुस्लिमों को लेकर पार्टी व सरकार के रवैये पर अमित शाह से बातचीत की। उसके बाद उन्होंने एक अखबार में इस संबंध में कॉलम भी लिखा और भाजपा अध्यक्ष की साफगोई की तारीफ भी की। दोनों की बातचीत के दौरान मैं मौजूद था। उन्होंने शाह से पूछा कि आप लोग मुसलमानों को लेकर कैसे नीतियां बनाते हैं, कैसा नज़रिया रखते हैं। इस पर भाजपा अध्यक्ष का जवाब था, ‘हम नीतियां मुसलमान-हिंदू के आधार पर नहीं गरीबी और जरूरत के अनुसार बनाते हैं।’ लेकिन 8 जून को जब मैं कुलदीप नैयर से मिला तब मेरे पास आई एक पांडुलिपी की चर्चा की। मैंने उनसे कहा कि मेरे पास जो पांडुलिपी आई है उसमें लिखा है कि देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में हत्या हुई थी। लेखक ने किताब में हत्या का संदर्भ उनकी पत्नी ललिता शास्त्री के हवाले से दिया है। इस बारे में आपकी क्या राय है? मैं यह सवाल आपसे इसलिए पूछ रहा हूं, क्योंकि आप उस समय शास्त्रीजी के प्रेस सचिव थे और ताशकंद यात्रा में आप भी साथ थे।
इस बातचीत के दौरान नैयर साहब के बहू और बेटे भी बैठे थे। उन्होंने बताया भी कि ये कुछ इन दिनों की बातें भले भूल जाएं, पर पुरानी बातें जस की तस याद हैं। नैयर साहब ने कहा, ‘उस दिन मैं रात के 12 से साढ़े बारह बजे तक ताशकंद के होटल में शास्त्रीजी के साथ ही था। मेरा कमरा उनके कमरे के बगल का ही था। शास्त्री जी के कहने पर ही मैं सोने गया, उन्होंने कहा कि बहुत रात हो गई है, तुम सो जाओ। सुबह 6 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया और बताया कि प्रधानमंत्री शास्त्रीजी नहीं रहे। मैं अवाक। दौड़कर पहुंचा तो देखता हूं शास्त्रीजी की नाड़ियां बंद हैं और वहां दो रूसी खड़े हैं। शास्त्रीजी के पानी का थरमस उल्टा पड़ा हुआ है। इन सब स्थितियों से भी मुझे आशंका नहीं हुई, लेकिन जब भारत आया तो पीएन हक्सर कहने लगे कि आप प्रेस को बयान दीजिए कि प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत प्राकृतिक है, हत्या नहीं। हक्सर की यह बात मुझे बहुत अस्वाभाविक लगी और संदेह हुआ कि शास्त्रीजी के निधन को स्वाभाविक बताने के लिए मुझ पर इतना जोर क्यों डाला जा रहा है।’ पीएन हक्सर वे भारतीय अधिकारी हैं, जो बाद में इंदिरा गांधी की सरकार में मुख्य सचिव बने और बहुत से पदों पर रहे।
कुलदीप नैयर ने पत्रकारिता की शुरुआत उर्दू अखबार ‘अंजाम’ से की। ‘अंजाम’ के मालिक ने उन्हें इसलिए नौकरी पर रखा कि वे उसकी फंसी हुई प्रॉपर्टी को सरकार के कब्जे से छुड़ा सकें और मालिक के बच्चों को अंग्रेजी, गणित का ट्यूशन पढ़ा सकें। सियालकोट से अमृतसर और फिर दिल्ली पहुंचे नैयर साहब के पास कोई विकल्प भी नहीं था तो उन्होंने यह नौकरी स्वीकार कर ली। उन्होंने जब भारत सरकार के किसी अधिकारी से अखबार के मालिक की संपत्ति को लेकर बात की तो पता चला कि वह ‘एनिमी प्रॉपर्टी’ है, वह नहीं मिल सकती। इसके बाद नैयर साहब को मालिक ने अखबार से निकाल दिया। भारत विभाजन के बाद बहुत सी संपत्ति को एनिमी प्रॉपर्टी सरकार ने घोषित कर दिया गया, जिसके मालिकान विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए। अभी भी वह प्रॉपर्टी इसी नाम से जानी जाती है। अभी हाल में मोदी सरकार ने कुछ नया कानून बनाया है।
खैर, इसके बाद नैयर अमेरिका गए और पढ़ाई की। उसके बाद पीआईबी में उन्हें प्रेस सूचना अधिकारी की नौकरी मिल गई। बाद में वे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रेस सचिव बने। मेरी उनके साथ जेपी आंदोलन के दिनों की यादें हैं। उस दौरान वे इंडियन एक्सप्रेस में थे। उन दिनों पत्रकारिता में नैयर ऐसा नाम था, जो आंदोलनकारियों के बीच घुल-मिल जाते थे और सत्ताधीशों की भी इनके पास पहली खबर होती थी। वे जयप्रकाश आंदोलन की कमिटियों में थे, रणनीति बनाने में भागीदारी निभाते थे। उन गहमागहमी के दिनों में आपातकाल के बाद चुनाव होगा या नहीं होगा, या कब होगा, इसको लेकर पूरे देश के राजनीतिक माहौल में बड़ी आशंका थी। इसकी पहली खबर कुलदीप नैयर ने ब्रेक की, वह भी कांग्रेस नेता कमलनाथ के एक जवाब के आधार पर, जो संजय गांधी से जुड़ी थी।