बिहार में मुज़फ़्फ़रपुर के एक बालिका गृह में 34 बच्चियों के साथ यौन शोषण के मामले में शनिवार शाम 21 अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया और दो के निलंबन के लिए सिफ़ारिश की गई है.
समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद ने निलंबन की पुष्टि की. उन्होंने बीबीसी से कहा कि यह शुरुआती कार्रवाई है और आने वाले वक़्त में ऐसे और क़दम उठाए जा सकते हैं.
निलंबित होने वालों में बाल संरक्षण विभाग के 6 सहायक निदेशक और अन्य जूनियर अधिकारी शामिल हैं. इनमें बाल संरक्षण यूनिट मुज़फ़्फ़रपुर के सहायक निदेशक देवेश कुमार शर्मा भी हैं.
देवेश कुमार शर्मा ने ही टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (टिस) के सोशल ऑडिट की रिपोर्ट आने के बाद के बाद 31 मई को एफ़आईआर दर्ज कराई थी.
देवेश शर्मा के निलंबन आदेश में कहा गया है कि टिस की रिपोर्ट में बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार की बात आ चुकी थी फिर भी बालिका गृह के मालिक ब्रजेश ठाकुर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.
इसके साथ ही यह बात भी कही गई है देवेश शर्मा बालिका गृह की निगरानी करने भी जाते थे, लेकिन उन्होंने यह बात कभी नहीं बताई कि बच्चियों के साथ कुछ ग़लत हो रहा है.
हालांकि इन आरोपों के बारे में देवेश शर्मा का कहना है कि उनके पास जब टिस की रिपोर्ट तो उन्होंने तत्काल एफ़आईआर दर्ज की. शर्मा का कहना है कि उनके पास टिस की रिपोर्ट 29 मई को आई थी और 31 मई को एफ़आईआर दर्ज कराई थी.
निरीक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी बालिका गृह में क्यों नहीं मिली? इस पर देवेश शर्मा का कहना है कि बच्चियों ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. शर्मा का कहना है कि उनके अलावा वहां महिला आयोग के अधिकारी भी जाते थे, लेकिन महिला आयोग ने भी इस मामले में पहले कुछ नहीं कहा था.
जिन अधिकारियों को निलंबित किया गया है उनमें से एक ने बीबीसी से कहा कि “छोटी मछलियों को निशाना बनाया जा रहा है.”
टिस की रिपोर्ट को आधार बनाकर 31 मई को एफ़आईआर दर्ज की गई थी और उसी दिन मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ सेवा संकल्प को पटना में एक नया टेंडर दिया गया था. टेंडर लेटर पर समाज कल्याण विभाग के निदेशक राजकुमार के हस्ताक्षर हैं.
समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद से बीबीसी ने पूछा कि क्या सरकार छोटे अधिकारियों को निशाने पर ले रही है या उनकी भी जवाबदेही बनती है जो फ़ैसले लेते हैं? आख़िर समाज कल्याण विभाग के निदेशक राजकुमार पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई है जिन्होंने एफ़आईआर दर्ज होने के बाद ब्रजेश ठाकुर को टेंडर दिया था?
अतुल प्रसाद ने कहा, “कार्रवाई अभी शुरू हुई है. प्रशासनिक स्तर पर जो लापरवाही हुई है उसकी जवाबदेही तय की जाएगी. ब्रजेश ठाकुर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ होने के दिन नया टेंडर जो मिला था वो बल्क में मिला था. जैसे ही इसकी पता चला उसे रद्द कर दिया गया.”
लेकिन टिस की रिपोर्ट तो सरकार को 15 मार्च को ही मिल गई थी? इस रिपोर्ट में साफ़ लिखा हुआ है कि ब्रजेश ठाकुर के घर में जो बालिका गृह चल रहा है उसमें बच्चियों का यौन शोषण किया जा रहा है. तो फिर टिस की रिपोर्ट आने के बाद भी टेंडर क्यों दिया गया?
इस सवाल पर अतुल प्रसाद का कहना है कि टिस की रिपोर्ट 15 मार्च को नहीं बल्कि औपचारिक रूप से विभाग के पास 27 मई को आई थी. हालांकि बीबीसी के पास मौजूद दस्तावेज़ के अनुसार टिस की रिपोर्ट में सौंपने की तारीख़ 15 मार्च ही लिखी हुई है.