केंद्र सरकार ने आयकर विभाग के मुख्य आयुक्त, प्रधान आयुक्त सहित 12 वरिष्ठ अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी है। इन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे, जबकि इनमें से एक संजय श्रीवास्तव पर दो महिलाओं ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया था, फिर भी कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से संजय श्रीवास्तव को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने पर सवाल उठ रहे हैं।
सं जय श्रीवास्तव उन 12 अधिकारियों में शामिल है जिन्हें केंद्र सरकार ने जबरन सेवा मुक्त किया है। इसका कारण भ्रष्टाचार को बताया जा रहा है। लेकिन यह आरोप महज 11 अधिकारियों पर है। मगर 12वें अधिकारी की सेवानिवृत्ति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जो स्वभाविक भी है। वह इसलिए क्योंकि जिस आधार पर संजय श्रीवास्तव को हटाया गया है, वो किसी के गले नहीं उतर रहा है। आपके भी गले नहीं उतरेगा। उन पर महिला सहकर्मी के साथ छेड़छाड़ का आरोप है। यही उनको सेवामुक्त करने का आधार है। इस आरोप में कोई दम नहीं है। ऐसा कहने की वाजिब वजह है। जिन दो महिलाओं ने संजय श्रीवास्तव पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया, उनमें से एक आसिमा नेब हैं। उनके खिलाफ हाल में एक आदेश पारित हुआ है। क्यों हुआ? उन्हें छेड़छाड़ का आरोप लगाने की बीमारी लग ग ई है। वे सबको धमकाते चलती हैं कि अगर किसी ने मेरे खिलाफ कोई कार्रवाई की तो छेड़छाड़ के आरोप में फंसा दूगी।
इस वजह से उनके गलत काम पर कोई सवाल नहीं करता था। एक दिन किसी ने आसिमा नेब के खिलाफ बोर्ड में शिकायत कर दी। तो उसने आसिमा के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने की बात कही है। कहने का मतलब यह है कि आसिमा नेब और उनकी सहेली का यह स्वभाव रहा है। वे पहले भी इस तरह का आरोप लगाती रही हैं। संजय श्रीवास्तव इसका उदाहरण हैं। इन पर आरोप लगाया। आरोप झूठा है जानते सभी हैं। पर किसी ने कुछ किया नहीं। विभाग ने असिमा नेब और उनकी सहेली से इस बाबत सवाल पूछना मुनासिब नहीं समझा। बस संजय को घेरने में विभाग लगा रहा। इससे आसिमा और उनकी सहेली का हौसला बढ़ा। उन्हें लगा किसी को भी झूठे आरोप में फंसा कर बाहर करवाया जा सकता है। संजय की जबरन सेवानिवृत्ति इसका प्रमाण है। यही वजह है कि जो लोग ईमानदार हैं, वे आहत हैं।
इस मामले में एस. गुरुमूर्ति ने ट्विटर पर लिखा कि संजय श्रीवास्तव को भ्रष्ट अधिकारियों के साथ जोड़ना बेहूदा मजाक है। उनके जैसे काबिल अधिकारी बहुत कम हैं। वे बेहद ईमानदार और साहसी हैं। वे आगे लिखते हैं कि संजय को एक ऐसी महिला के आरोप पर सेवामुक्त कर दिया गया, जो विभाग में सबको छेड़छाड़ के आरोप में फंसाने का भय दिखाती है। सवाल यह है कि संजय श्रीवास्तव को आसिमा नेब और उनकी सहेली ने छेड़छाड़ के आरोप में फंसाया क्यों? यह जानने के लिए 12 साल पीछे चलना होगा। बात उन दिनों की है जब संजय के पास केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के खुफिया विंग की कमान थी। अपने काम के दौरान उन्हें एनडीटीवी के बारे में खुफिया सूचना मिली, जिसके मुताबिक कंपनी ने कर चोरी की थी। इसमें विभाग के कई अधिकारी भी थे। उसमें राजस्व अधिकारी सुमना सेन का नाम सबसे ऊपर था। उन्होंने सरकार को गुमराह किया था। वे एनडीटीवी के खर्चे पर यूरोप टहलने गईं। पर सरकार को बताया कि कम्पनी ने उनके पति को परिवार के साथ छुट्टी मनाने कि लिए भेजा था।
किस नियम के तहत रिटायर किए गए ये अफसर? सेंट्रल सिविल सवेर्सेज पेंशन रूल्स-1972 के नियम 56जे के तहत केंद्र सरकार कंपल्सरी रिटायरमेंट दे सकती है। इंडिया टुडे के मुताबिक इस नियम के तहत सिविल सर्वेंट्स को जबरन रिटायरमेंट दिया जाता है। नियम के तहत 50 से 55 साल साल की उम्र के और 30 साल नौकरी कर चुके अफसरों को रिटायर किया जा सकता है। ये नियम काफी पहले से प्रभावी है। माना जा रहा है कि मोदी सरकार आने वाले दिनों में कुछ और अफसरों पर ऐसी कार्रवाई कर सकती है।
दूसरा सरकार को जानकारी दी कि वह एनडीटीवी की एसेसिंग अधिकारी कभी थी ही नहीं। इन दोनों ही बातों को संजय गलत पाते हैं। यूरोप जाने का प्रस्ताव कम्पनी ने सुमना को दिया था। दूसरा सुमना के पति अभिसार शर्मा एनडीटीवी में 2003-2007 के बीच विशेष संवावादाता के रूप में कार्यरत थे। इसी दौरान वह एनडीटीवी की एसेसिंग अधिकारी भी थीं। लेकिन इसकी जानकारी सुमना ने आयकर विभाग को नहीं दी। जबकि नियम के अनुसार ऐसा करना अनिवार्य होता है। जब संजय ने खुफिया सूचना को अपनी आरम्भिक छानबीन में सही पाया, तो उन्होंने सीबीडीटी से सम्पर्क किया। उसे सारी प्रारम्भिक रिपोर्ट दी और इस पूरे मामले की छानबीन करने की अनुमित मांगी। सीबीडीटी ने उन्हें इसकी अनुमति दे दी। उस छानबीन में एनडीटीवी की 300 करोड़ रुपये की कर चोरी का मामला सामने आया। उस जांच के अनुसार सरकार को गलत जानकारी देकर कर चोरी की गई थी।
कैसे लगा आरोप ? आगे की छानबीन में संजय श्रीवास्तव को पता चला कि पी. चिदंबरम की काली कमाई को सफेद करने का धंधा एनडीटीवी करता है। इसके लिए सब्सिडरी कंपनियों को हथियार बनाया गया। इसकी पूरी जानकारी संजय के पास थी। वह चिदंबरम, एनडीटीवी, सुमना सेन और आसिमा नेब को बेनकाब करने की स्थिति में थे। इसलिए उन पर नकेल कसना जरूरी था। पहला काम यह किया गया कि उनके फोन को सर्विलांस पर डाल दिया गया। इसके लिए सीबीआई और सीवीसी को निर्देश दिया। जब इसमें सफलता नहीं मिली तो संजय श्रीवास्तव को इस मामले से हटाने की नई तरकीब निकाली गई। उनका मंगलौर तबादला कर दिया गया। इसे संजय ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (सीएटी) में चुनौती दी, तो उनका तबादला रोक दिया गया। इससे चिदम्बरम के माथे पर बल पड़ना स्वभाविक था। क्योंकि दिल्ली में संजय के रहने का मतलब था एनडीटीवी की जांच। इससे चिदम्बरम फंस जाते। इसलिए चिदम्बरम ने उन्हें हटाने का दूसरा रास्ता निकाला। दोनों महिला राजस्व अधिकारियों ने संजय पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। इसी आरोप को आधार बनाकर 2007 में पी. चिदंबरम ने संजय को निलंबित करवा दिया। वे 2010 तक निलंबित रहे। विभाग के नियमानुसार किसी अधिकारी को बिना वजह एक साल तक निलंबित नहीं रखा जा सकता है।
यदि ऐसा होता है तो निलंबित अधिकारी बिना किसी रोक-टोक के काम पर वापस आ सकता है। पर संजय श्रीवास्तव के मामले में इस पहलू पर गौर नहीं किया गया। 2007-10 के बीच यौन उत्पीड़न आरोप की जांच पड़ताल तक नहीं की गई। न ही दोनों महिला अधिकारी ने कोई प्राथमिकी दर्ज कराई। इसकी कोई लिखित शिकायत भी कार्यालय को नहीं दी गई। यह सब पी. चिदंबरम के इशारे पर होता रहा, क्योंकि वे हर हालत में संजय श्रीवास्तव को जांच से दूर रखना चाहते थे। लेकिन, उनकी इस कोशिश पर सीएटी ने पानी फेर दिया। सीएटी ने संजय श्रीवास्तव का निलंबन निरस्त कर दिया। जब पी. चिदंबरम लगातार संजय को रास्ते से हटाने की कोशिश में असफल रहे तो उन्होंने 2013 में उन्हें पागल घोषित कराने का षंड्यंत्र रचा। इसके पीछे एक ही मकसद था कि संजय श्रीवास्तव की पूरी छानबीन को निरस्त घोषित करा दिया जाए।
हुआ यह कि कि अभद्र भाषा का प्रयोग करने के आरोप में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 4 जनवरी, 2013 को संजय श्रीवास्तव को 15 दिन के कारावास की सजा सुनाई। हालांकि, संजय ने इस सजा का विरोध किया था। उन्होंने न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप ने मुझे खासा परेशान कर दिया। यही वजह रही कि मैं मानसिक तनाव से गुजर रहा हूं। अत: मुझसे गलती हुई है। इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें चिकित्सीय जांच कराने का आदेश दिया। इसके लिए किसी सरकारी अस्पताल की जगह निजी क्षेत्र के अस्पताल विद्यासागर मानसिक संस्थान (वीआईएचएएनएस) को अधिकृत किया गया। इस संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में संजय को मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित कर दिया। यह भी कहा गया कि संजय समाज के लिए हानिकारक हैं। रिपोर्ट में वीआईएचएनएस ने लिखा कि पिछले 30 सालों से संजय रोजाना तीन पैकेट सिगरेट पीते आ रहे हैं और पिछले 40 सालों से रोजाना एक बोतल शराब पीते आ रहे हैं। जेठमलानी ने अपने पत्र में संजय श्रीवास्तव की उम्र 49 साल बताई है। मतलब यह है कि वे अपने 10 साल की उम्र से ही बड़ी मात्रा में शराब पीते आ रहे हैं। उस रिपोर्ट की सच्चाई आई जब संजय ने अपनी जांच एम्स, सफदरगंज, हिन्दू राव और आईएचबीएएस अस्पातल में कराई। इन अस्पतालों की रिपोर्ट ने वीआईएचएएनएस की रिपोर्ट का झूठ का पुलिंदा करार दिया। ताज्जुब की बात यह है कि भारतीय चिकित्सा परिषद के हस्तक्षेप के बाद वीआईएचएएनएस ने अपनी रिपोर्ट को वापस ले लिया। यह साजिश महज संजय को हटाने के लिए हो रही थी।
तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम के लिए वे खतरा बन चुके थे। एनडीटीवी भी चाह रहा था कि संजय को बर्खास्त किया जाए। यौन उत्पीड़न का आरोप और पागल घोषित कराने की कोशिश, चिंदबरम गैंग के अभियान का हिस्सा था। निशाने पर संजय थे। लेकिन तब चिदंबरम अपने षड़यंत्र में सफल न हो पाए। लेकिन भाजपा की सरकार में वे सफल हो ग ए। इसीलिए गुरुमूर्ति लिखते हैं कि सरकार में लुटियन, चिदंबरम और एनडीटीवी गैंग सक्रिय है।