राजीव गांधी की छब्बीसवीं बरसी पर भी यह सवाल बना हुआ है कि उनकी हत्या की साजिश में कांग्रेस के किन-किन ने मदद की।
इसके लिए ‘जैन आयोग’ बनाया गया था। सालों की छानबीन और सुनवाई के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला। निकलता भी नहीं, क्योंकि जैन आयोग ने जांच को कांग्रेस नेताओं के इशारे पर भटकाया।
साजिश की ऐसी-ऐसी कहानियां चलाई, जिसका कोई सिर-पैर नहीं था। जिन दिनों जांच आयोग काम कर रहा था, उन्हीं दिनों की बात है। मुझे कुछ पक्के तथ्य मिले। उन आधारों पर ‘जनसत्ता’ में खबर दी, जो छपी। उसका शीर्षक था- ‘सोनिया बताएं, राजीव गांधी की हत्या का राज क्या है?’
उस खबर में दो सूचनाएं थीं। पहली यह कि लिट्टे का एक प्रतिनिधिमंडल राजीव गांधी से मार्च में मिला था। दूसरा प्रतिनिधिमंडल कुछ दिनों बाद मिला। पहला तो सीधे दस जनपथ ही पहुंचा था। वहीं बात हुई। दूसरे से भेंट हुई अशोक होटल में।
इन वार्ताओं में पहली बार हिन्दू अखबार के एन. राम और दूसरे में मालिनि पार्थसारथी साथ में थीं। जैन आयोग के पास जनसत्ता की खबर थी। इसके बावजूद आयोग ने सोनिया गांधी को ‘आठ बी’ की नोटिस देकर गवाही के लिए नहीं बुलाया।
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जरूरत है, राजीव गांधी की हत्या में हुए षड्यंत्र को उजागर करने की। यह अजीब बात है कि कांग्रेस इस सवाल पर गहरी चुप्पी साधे हुए है। आखिर क्यों?
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जैन का तर्क था कि सोनिया गांधी घरेलू महिला हैं। वह तर्क कितना हास्यास्पद है, यह बताने की जरूरत नहीं है। अगर जैन आयोग उन्हें बुलवाता तो वे उस बातचीत का खुलासा कर सकती थीं। जिससे जांच सही दिशा में बढ़ती। साजिश से पर्दा हट सकता था।
जस्टिस जे.एस. वर्मा ने हत्या की जांच की थी। उन्होंने साजिश की जांच के लिए आयोग की सलाह दी थी। उसी पर जैन आयोग बना था। साजिश का संदेह इस आधार पर हुआ था कि राजीव गांधी की श्री पेरूम्बदुर यात्रा की कोई योजना नहीं थी।
वे उड़ीसा जाने वाले थे। उनकी यात्रा कांग्रेस के दफ्तर में बदली गई, जबकि राज्यपाल भीष्म नारायण सिंह ने प्रत्यक्ष और परोक्ष चेतावनी सही जगह पहुंचवाई थी कि राजीव गांधी तमिलनाडु की यात्रा न करें। बड़ा खतरा है। यह जानते हुए भी उन्हें वहां किसने भिजवाया? यही वह सवाल है जो अब तक हल नहीं हुआ है।
राजीव गांधी नेक इंसान थे। यह अपने अनुभव से कह सकता हूं। महासचिव बनने से पहले वे अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर आए थे। मुख्यमंत्री गेगांग अपांग के कहने पर उनसे खासकर अरुणाचल प्रदेश और उत्तर पूर्वी राज्यों की समस्याओं पर लंबी बातचीत हुई थी। उससे ही उनके निर्मल मन की थाह लगी। लेकिन राजनीति में वे अनुभवहीन साबित हुए।
यह घटनाओं से स्वयं सिद्ध है। उन्हें जैसे सहयोगी मिले, वैसे वे बन गए। जब उनके सहयोगी ईमानदार और दूरदर्शी थे, तब उन्होंने जो बोला और किया, वह आज भी याद रखने लायक है। कांग्रेस शताब्दी के अधिवेशन में उनका भाषण कभी भुलाया नहीं जा सकता।
लेकिन वही राजीव गांधी जब भ्रष्ट लोगों से घिर गए, तब बोफोर्स कांड में फंसे। जहां से उनका पराभव प्रारंभ हुआ। इसी तरह जब वे 1991 के चुनाव में सरकार बनाने के इरादे से कूदे थे, तब उनके ही सहयोगियों ने उन्हें लिट्टे के जाल में फंसा दिया।
परिणाम क्या हुआ, किसे नहीं पता। जरूरत है, राजीव गांधी की हत्या में हुए षड्यंत्र को उजागर करने की। यह अजीब बात है कि कांग्रेस इस सवाल पर गहरी चुप्पी साधे हुए है। आखिर क्यों?