संविधान-75 पर संसद में बहस से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल ने बड़ा निर्णय लिया है। रामनाथ कोविंद कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित विधेयक को स्वीकार कर लिया है। इससे इसी संसद अधिवेशन में एक संविधान संशोधन विधेयक आ सकता है। यह भी अनुमान है कि यह संविधान संशोधन विधेयक संयुक्त संसंविधान-75 पर संसद में बहस से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल ने बड़ा निर्णय लिया है। रामनाथ कोविंद कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित विधेयक को स्वीकार कर लिया हैसदीय समिति को सुपुर्द कर दिया जाएगा। जिससे इस बड़े कदम पर संसद में और उससे बाहर देशभर में विमर्श हो सके और व्यापक सहमति से उसे कानून का रूप दिया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत बार एक देश, एक चुनाव के लिए आवाज लगाते रहे हैं। वे सिर्फ कहते नहीं हैं, करते भी हैं। इसका ही एक ताजा उदाहरण मंत्रिमंडल का निर्णय है। इस पर पक्ष और विपक्ष में खूब तर्क दिए जाएंगे।
जिस विधेयक को मंत्रिमंडल ने हरी झंडी दिखाई है वह वास्तव में चुनाव सुधारों में ‘रामबाण’ है। हर मर्ज की उसमें दवा है। इस विधेयक से जो कानून बनेगा वह एक साथ चुनाव का रास्ता साफ करेगा। जिसके रास्ते में आज बड़े-बड़े चट्टान हैं। उन्हें हटाने का साहस किसी प्रधानमंत्री ने पहले नहीं किया। ये चट्टान कब पड़े और किसने रखा या रखवाया? लोग जानना चाहेंगे। जिसे भी यह जानना हो उसे याद करना चाहिए कि पहले से चौथे तक जो आम चुनाव भारत में हुए वे एक साथ हुए।
उन चुनावों में बेहिसाब धन खर्च नहीं होता था। इंदिरा गांधी ने पहली बार 1971 में लोकसभा का चुनाव अलग करवा दिया। उस चुनाव में बेहिसाब खर्च की शुरूआत हुई। उसे देखा गया और अनुभव किया गया कि चुनावों में कई तरह की धांधली हुई। प्रो. बलराज मघोक तो आजीवन कहते रहे कि रूसी स्याही से वे चुनाव लड़े गए। उसी चुनाव के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने चुनाव सुधार की जरूरत समझी। उसके लिए उन्होंने जन-जागरण किया। भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी उस अभियान में बढ़-चढ़ कर सहभागी बने। चुनाव सुधार पर एक पुस्तक भी लिखी।
उस चुनाव से रास्ते में पहला चट्टान पड़ा। धीरे-धीरे हर तीन-चार महीने में कहीं न कहीं चुनाव होने लगे। एक अनुमान लगाया गया है कि साल में तीन सौ दिन चुनाव में चले जाते हैं। फिर तो हर चुनाव ने अपने रास्ते में चट्टान ही चट्टान रखने का रिकार्ड बनाया। ऐसी स्थिति में विकास और विकसित भारत का क्या होगा! यह प्रश्न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने आया होगा।
अनेक संवैधानिक संस्थाओं ने समय-समय पर अपनी संस्तुतियों में लिखा कि एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए। जनवरी, 2017 में नीति आयोग ने एक पर्चा बनाया। उसका शीर्षक था, ‘समकालिक चुनावों का विश्लेषण: क्या, क्यों और कैसे।’ उसमें एक साथ चुनाव कराने की एक रूपरेखा बनाई गई थी। उससे पहले भारतीय विधि आयोग ने अपनी तीन वार्षिक रिपोर्टों में एक साथ चुनाव की संस्तुति की थी। राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग ने भी ऐसी ही संस्तुति की। संसदीय स्थाई समिति रिपोर्ट ने 2015 में अपनी रिपोर्ट इसी लाइन पर दी थी। इनके आधार पर भारत सरकार ने 2 सितंबर, 2023 को एक उच्च स्तरीय समिति गठित की। जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बनाए गए। इस समिति की संस्तुतियों के आधार पर विधेयक का प्रारूप बनाया गया है।