यह पहला कदम है। रास्ता लंबा है। मंजिल मिलेगी, एक-एक कदम चलकर। नरेंद्र मोदी सरकार ने संवैधानिक प्रक्रिया से संबंधित पहली बड़ी बाधा बेहद आसानी से पार कर ली है। आश्चर्य तो इस बात का है कि यह कदम पहले क्यों नहीं उठाया गया।
जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरा विलय हो गया है। जो सवाल थे वे समाधान के रास्ते बता रहे हैं। आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर पर विवादों की छाया रही है। पहला अनसुलझा प्रश्न रहा है कि क्या जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है? इसे संविधान के प्रावधान का हवाला देकर उठाया जाता रहा है। वह प्रावधान अनुच्छेद 370 में था। नरेंद्र मोदी सरकार ने सुविचारित रीति से उसे हटाने का फैसला कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। संदेह था कि राज्यसभा में ही अड़चन आ जाएगी। ऐसा नहीं हुआ। इससे उम्मीद बनी कि संसद से वह संकल्प पारित हो जाएगा जिसे राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश से जारी किया है। वह उम्मीद पूरी हुई। संसद ने सरकार के प्रस्तावों को मंजूरी दी। इस तरह एक संवैधानिक प्रक्रिया से जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय पूरा हुआ है।
जो असंभव दिखता था वह संभव हो गया है। यह पहला कदम है। रास्ता लंबा है। मंजिल मिलेगी, एक-एक कदम चलकर। नरेंद्र मोदी सरकार ने पहली बड़ी बाधा पार कर ली है। वह संवैधानिक प्रक्रिया से संबंधित थी। आश्चर्य तो इस बात का है कि यह कदम पहले क्यों नहीं उठाया गया! अनुच्छेद 370 अस्थाई है, इसे नेहरू भी कहते रहे हैं। ऐसे में एक अस्थाई अनुच्छेद कैसे स्थाई समस्या बन गया था? इसे जानना हो तो राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के उस आदेश को ध्यान से पढ़ना चाहिए जो उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर 1954 में जारी किया था। वह संविधान के परिशिष्ट का अंग है। यह तथ्य भी अब सामने आ रहा है कि डा. राजेंद्र प्रसाद ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को समय-समय पर उस आदेश में नई बातें जोड़ने के उनके अधिकार पर अनेक प्रश्न उठाए थे। यह कौन जानता था? इसलिए यह बात जानकारी में नहीं थी क्योंकि इसे छिपाया जाता रहा है।
वास्तव में कुछ साल पहले तक यह एक अज्ञात रहस्य था। बड़े-बड़े वकील तक ने कभी गौर नहीं किया था कि राष्ट्रपति का आदेश क्या अर्थ रखता है। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा जहां अनुच्छेद 370 से प्राप्त होता है वहीं उस आदेश से उस पर अमल होता है। उस आदेश पर ध्यान न देने के कारण भारत सरकार अपनी बनाई हुई समस्याओं में अब तक उलझी हुई थी। उससे निकलने का रास्ता था तो आसान लेकिन उसे खोजने के लिए कोई प्रयास इससे पहले नहीं हुआ। यह तो बहुत बाद में पता चलेगा कि किसकी सूझबूझ थी। इतना तो स्पष्ट हो गया है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के 5 अगस्त के अध्यादेश से एक ऐतिहासिक कदम भारत सरकार ने उठा लिया है। इससे अनुच्छेद 370 के वे प्रावधान समाप्त हो गए हैं जो विलय में बाधक थे। हालांकि यह भी सच है कि निरंतर उन प्रावधानों का क्षरण भी होता रहा है जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देते थे। यह कैसे हुआ और क्या होना चाहिए? इन बातों पर बहस पहले भी होती रही है और आगे भी चलेगी।
लेकिन इतना स्पष्ट हो गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया है। राज्यपाल में विधानसभा की शक्ति निहित है क्योंकि जम्मूकश्मीर में राष्ट्रपति शासन है। राज्यपाल की सहमति से राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी किया। जिसे संसद ने मंजूरी दी। इस तरह एक ऐसा कार्य संपन्न हो सका है। जो कल्पना से परे था। इसके संपन्न होने से यह भाव भी पैदा हुआ है कि यह कार्य तो आसान था। पहले भी हो सकता था। जरूरत इस बात की थी कि राजनीतिक नेतृत्व पक्के इरादे और नेक नियत से निर्णय करने का माद्दा दिखाए। जो नरेंद्र मोदी ने दिखाया है। अनुच्छेद 370 को अप्रभावी बना देने के बाद जो चुनौतियां उपस्थित हुई हैं उनके समाधान खोजने के लिए भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन का निर्णय किया है। यह संविधान सम्मत निर्णय है। संसद से पारित हो गया है। इससे दो केंद्र शासित प्रदेश बने हैं। लद्दाख और जम्मू-कश्मीर। लद्दाख की यह पुरानी मांग थी जो अब पूरी हुई है। इसका लद्दाखियों ने भरपूर स्वागत किया है। उनकी यह आवाज लोकसभा में भी गूंजी जिसे पूरे देश ने सुना। यह अनुभव किया गया कि लद्दाख के साथ हो रहा अन्याय दूर हो गया है।
जम्मू-कश्मीर के बारे में प्रश्न जो स्वाभाविक रूप से था कि क्या यह हमेशा के लिए केंद्र शासित राज्य होगा? इसका सही समय पर सटीक उत्तर गृहमंत्री अमित शाह ने संसद के माध्यम से सबको दे दिया है कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। वह समय कब आएगा? यह प्रश्न है और इसके इर्दगिर्द लोग अपना-अपना अनुमान लगाते रहेंगे। एक नई परिस्थिति पैदा हुई है। क्या जम्मूकश्मीर के लोगों का समर्थन और सहयोग केंद्र को मिलेगा? इसकी जमीनी हकीकत को जानने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कश्मीर घाटी में लोगों से मिल रहे हैं। उनसे बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को संदेश दिया है कि वे उज्जवल भविष्य के लिए संकल्प करें। इसका जम्मू-कश्मीर में स्वागत हुआ है। एहतियाती कदम के तौर पर कश्मीर घाटी में सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं। इसे दूसरे तरह से भी कहा जा सकता है।
370 पर भारत सरकार अपनी बनाई हुई समस्याओं में अब तक उलझी हुई थी। उससे निकलने का रास्ता था तो आसान लेकिन उसे खोजने के लिए कोई प्रयास इससे पहले नहीं हुआ।
वह यह कि जो उत्पाती लोग हैं उन्हें फिलहाल पुलिस के पहरे में रखा गया है। जल्दी ही, जम्मू-कश्मीर के लोग शोषण से मुक्ति का पर्व मनाएंगे। वे विवश थे अब उनकी मजबूरी ताकत के रूप में सामने आएगी। आतंकियों को वे ही सबक सिखाने के लिए कमर कसेंगे। सुरक्षा में लगे जवान उनकी मदद करेंगे। कुछ दिनों पहले गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर घाटी में गए थे। उन्होंने कहा था कि ‘यह सरकार जम्मूकश्मीर के विकास के लिए, मगर समविकास के लिए प्रतिबद्ध है। अब समय आ गया है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों के समविकास के लिए काम किया जाए।’ उन्होंने जो कहा उसे संकल्प के रूप में उन्होंने संसद से पारित करा कर राष्ट्रपति से आदेश प्राप्त कर लिया है। उन्होंने 1 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में जो लंबा भाषण दिया था उसमें भविष्य के संकेत तो थे लेकिन यह किसी को भी अनुमान नहीं था कि केंद्र सरकार का अगला कदम वास्तव में क्या होगा।
उन्होंने लोकतंत्र, जनाधिकार, खुशहाली और शांति के लिए भारत सरकार की प्रतिबद्धता को निशान लगाकर बताया था। जम्मू-कश्मीर के बारे में अमित शाह के भाषण का एक शब्द अगर चुने तो वह समविकास है। जिसका उन्होंने आश्वासन दिया। वह समविकास कैसे होगा? यही वह बड़ा प्रश्न है जिसके लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने राज्य का पुनर्गठन किया है। पिछले कुछ महीनों से जम्मूकश्मीर में जो कुछ चल रहा था उससे परिवर्तन की आहट मिल रही थी। उन बातों को केंद्र सरकार के इस फैसले से जोड़कर देखने पर पूरी तस्वीर सामने आ जाती है। यह भी समझ में आता है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर की खुशहाली के लिए क्रमिक रूप में कदम उठाए हैं। इसके लिए यह उदाहरण बताना जरूरी है। वह यह कि 2018 में यानी पिछले साल लंबे अर्से के बाद जम्मू-कश्मीर में पंचायतों के चुनाव कराए गए। उससे ग्राम पंचायतों का विधिवत गठन किया गया है। चुनाव से पहले पंचायती राज अधिनियम में भारी बदलाव किए गए। जिससे जम्मू-कश्मीर पहला राज्य बन गया जहां आदर्श पंचायत राज व्यवस्था कायम हुई है।
सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ है। गांव के निर्वाचित पदाधिकरियों को अपने क्षेत्र में विकास के अधिकार मिले हैं। उसके लिए उन्हें संसाधन भी उपलब्ध कराए गए हैं। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में संतुलित विकास के लिए एक साल पहले से ही कार्य कर रही थी। राज्य के पुनर्गठन से उसे बल मिलेगा। जम्मूकश्मीर में एक ग्राम पंचायत क्षेत्र की आबादी की अधिकतम सीमा तीन हजार है। पहाड़ी क्षेत्र में एक ग्राम पंचायत को नौ से ग्यारह वार्डो में बांटा गया है। कानूनन अब वार्ड सभा को ही ज्यादातर अधिकार दिए गए हैं। इससे स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर परिवर्तन का प्रारंभ एक साल पहले हो गया था। उसे सुव्यवस्थित करने के लिए केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के बारे में निर्णय किया है। जम्मू-कश्मीर वह राज्य है जिसने दो राष्ट्र के सिद्धांत को अस्वीकार किया। जिसका श्रेय महाराज हरि सिंह को है। उन्होंने ही कश्मीरियत की राह दिखाई।
इस्लामिक राज्य को नकारा। कश्मीरियत एक ऐतिहासिकता है। जिसका सांस्कृतिक आधार सदियों से बना हुआ है। जम्मूकश्मीर का इतिहास बहुत पुराना है। जो कल्हण की राजतरंगिणी में वर्णित है। लेकिन जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक अध्याय 1846 से शुरू हुआ। उसमें ही नया अध्याय जुड़ा 26 अक्टूबर, 1947 को। 7 अगस्त, 2019 से जम्मू-कश्मीर की राजनीति का जो अध्याय शुरू हो रहा है वह अब तमाम झंझावातों को पार कर एक आशाप्रद भविष्य का संदेश दे रहा है।