कोरोना के कहर से देश ठप है। कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। खेती किसानी तथा कृषि पर आधारित अन्य गतिविधियों में लगे लोगों के समक्ष गम्भीर संकट खड़ा हो गया है। केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा कृषि अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अभी तक जो भी उपाय किये गए हैं, वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। विपक्षी दलों द्वारा केंद्र व प्रदेश सरकारों से किसानों, खेतिहर मजदूरों, पशुपालको के लिए विशेष आर्थिक पैकेज देने की मांग की जा रही है। उलेखनीय है कि अप्रैल माह रवि की फसल की कटाई तथा मड़ाई का है। लेकिन लाकडाउन के चलते चना, मटर, सरसो, गेहूं, जौ आदि की कटाई और मड़ाई का काम अटका हुआ है। इसी तरह आलू, प्याज, लहसुन आदि का न तो भण्डारण ही हो पा रहा है और न ही मंडियों में ही पहुँच पा रहा है। जायद की खेती अलग से पिछड़ती जा रही है।
उरद, मक्का, पशु चारा और सब्जियों की बुआई के लिए बीज, खाद आदि उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में किसानी ठप है। उत्तर प्रदेश सरकार ने लाकडाउन में बीज, खाद की दुकानों को खोलने की सुविधा दी हुई है, लेकिन किसान उसे खरीदने शहर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक शहरों की दुकानो पर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की दुकानों पर भी बीजों और आवश्यक रसायन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। दूसरी ओर बीज, खाद और रसायन की मनमानी कीमतें वसूली जा रही है। उत्तर प्रदेश में सरसों की फसल तो जैसे तैसे खलिहान या घर तक पहुंच गयी लेकिन गेहूं की कटाई का काम अब शुरू हुआ है।
लाकडाउन के चलते हार्वेस्टर और कम्पाइन भी अभी खेतों तक नही पहुंच पाए हैं। गांव के मजदूर कोरोना की दहशत के चलते खेतों में जाने की हिम्मत नही जुटा पा रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में मौसम का रोज-रोज बदलता मिजाज किसानो को अलग से परेशान कर रहा है। लाकडाउन का दुष्प्रभाव जायद की फसलों पर बुरी तरह से पड़ा है। ज्यादातर किसान बीज और खाद की अनुपलब्धता के चलते सब्जियों, चारा और मूंग, उरद आदि की बोवाई ही नही कर पाए हैं। जिन किसानों ने सब्जियों आदि की अगेती फसलें तैयार की हैं, उसे मंडी तक नहीं ले जा पा रहे हैं। प्रयागराज के गंगापार और द्वाबा में सब्जियों के साथ तरबूज और खरबूजे की सघन खेती होती है। यहां की खुल्दाबाद, शिवगढ़ जैसी बड़ी मंडियों में सन्नाटा पसरा है। किसानों को अपना उत्पाद बेचने के लिए बाजार नही मिल रहा है।
इसी तरह उन्नाव, सीतापुर, हरदोई और बाराबंकी के किसान भी हलाकान हैं। फूल उत्पादक किसानो की आजीविका भी संकट में है। शादी-व्याह का मौसम होने के कारण आजकल फूलों की मांग अधिक होती है। लाकडाउन के कारण मांगलिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए हैं। खेतों में तैयार फूल मुरझा रहे हैं। मलिहाबाद निवासी रामनरेश सैनी कहते हैं कि इस सीजन में अब कोई उम्मीद नही बची है। बरसात के मौसम में वेसे ही मांग कम होती है। ऐसे में मसलियों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है। सबसे खराब हालात भूमिहीन किसानों की है। भूमिहीन किसान रेहन या अधिया पर खेती करते हैं। आपदा के समय प्रायः उन्ही किसानों को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली राहत मिलती है, जिनके नाम खेत होता है। ईद बार भी भूमिहीन किसानों के साथ ऐसा ही वर्ताव होगा। खेती में लागत लगाने के बाद वेसे ही इनका हॉथ खाली है।
लाकडाउन के चलते पशु पालकों तथा कुकुट पालकों के सामने भी गम्भीर संकट है। पोल्ट्री फार्म तो बर्बादी ही हो चुके हैं। इस समय बाजार में मुर्गों तथा अंडों की मांग में तेजी रहती है चूजों पर खासा खर्च करने के बाद उनकी बिक्री से पहले ही लॉक डाउन हो गया। इस तरह यह पूरा कारोबार ही चौपट हो गया। इसी तरह लाखों पशुपालकों के समक्ष गम्भीर संकट पैदा हो गया है। दूध, खोया, पनीर, छेना आदि की खपत लगभग शून्य हो गयी है।दूध की खपत घटने के कारण कीमत भी घट गई है। उधर भूसे की आपूर्ति न होने के कारण इसका दर 1500 से 2000 रूपये प्रति कुंतल कर भाव से बिक रहा है। इसी तरह चूनी, चोकर, खली आदि की कीमतों में इजाफा हुआ है। खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था ही देश की आजीविका का आधार है। इसलिए केंद्र व प्रदेश सरकार को इस क्षेत्र में विशेष ध्यान देना चाहिए। फ़ौरीतौर पर कटाई एवं मड़ाई के लिए नकद धनराशि के साथ ही आगामी फसल के लिए खाद-बीज मुफ्त देने की कार्य योजना बनाना चाहिए। इसी तरह सभी प्रकार के देय वसूली को स्थगित कर देना ग्रामीण अर्थव्यवस्था के हित में होगा।