अयोध्या अद्भुत है। विष्णु लोक सदृश्य है। अयोध्या अजेय है। यह रहस्य और रोमांच से भरी है। यहां की माटी कुछ अलग है। सृजन इसकी आदत में है। देवी भी इसकी संज्ञा है। इसके दो रूप दिखते हैं। भौतिक और आध्यात्मिक। ऊपर से भूलोक। गहरे उतरे तो डूबते चले जाएंगे। चौरासी कोस इसकी सांस्कृतिक परिधि है। सूक्ष्म लोक में यह हवन कुंड है। ज्ञान, भक्ति, वैराग्य इसके परिणाम हैं। यह अयोध्या की सतत् प्रक्रिया है। अयोध्या अपने राजपुत्रों को गढ़ती है। इनसे भूलोक की संतानों का मार्गदर्शन कराती है। सिलसिला आदि मनु स्वायम्भुव से शुरू होता है। कालखंड बदलते हैं।
राजर्षि पुत्रों की उत्पत्ति होती है। उद्देश्य अलग होते हैं। भाव, लोक कल्याण का निहित होता है। कभी मान्धाता के रूप में तो कभी हरिश्चंद्र के रूप में।
मान्धाता धर्म देश और काल को ईश्वर समझते हैं। त्याग, भोग को विवेक आधारित कहते हैं। दूसरे की संपत्ति त्याज्य बताते हैं। हरिश्चंद्र सत्यवादी हैं। सत्य के लिए पत्नी और पुत्र के रिश्तों की बलि दे देते हैं। यह अयोध्या है। राजा सगर अयोध्या की संतान हैं। सौ वर्षों तक तपस्या करते हैं। सागर की रचना करते हैं। राजा दिलीप अयोध्या राजवंश के हैं। लोक में गो सेवा को प्रतिष्ठित करते हैं। राजा भगरीथ, रघु, अज अयोध्या की ही संतान हैं। नए कीर्तिमान बनाते हैं। पुरुखों के प्रति समर्पित हैं। गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतार लेते हैं। मकसद अयोध्या और उसकी संतानों के मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करना।
पक्षी की जीवन रक्षा को शरीर का मांस देते हैं। यह लाखों वर्ष का इतिहास है। अयोध्या का भौतिक स्वरूप बदला अंतर्धारा यथावत रही। हर कालखंड में तपस्या भाषित रही। यह अयोध्या की पृष्ठभूमि है। ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी, ब्राह्मण पूज्य रहे। इनकी ऊर्जा अयोध्या को पोषित करती थी। श्रीहरि विष्णु के अवतारों का मार्ग प्रशस्त करती थी। दानवी रक्ष संस्कृति के विनाश को प्रेरित करती थी। अयोध्या भगवान विष्णु की लीला स्थली है। यह अयोध्या है। छह अवतारों से जुड़े होने के संकेत है। दानवी संस्कृति का विनाश परम लक्ष्य है। पृथ्वी के जीवों का कल्याण शामिल है। वाराह अवतार से निकृष्ट समझे जाने वाले जीवों, वाराह (सूकर) को प्रतिष्ठा मिली। भगवान कपिल से मुनि परंपरा प्रतिष्ठित हुई। भगवान परशुराम से शिक्षा, गुरु, परंपरा की रक्षा प्रमुख उद्देश्य मिला। अयोध्या भगवान वेद व्यास की पितृ भूमि। अयोध्या भविष्य का भी संकेत देती है। आठवें मनु की घोषणा करती है। घोषणा भगवती पारम्बा के रूप में करती है। भविष्य गढ़ती है। स्वारोचिष मनवंतर के राजा सुरथ आठवें मनु सावर्णिक होंगे।
युग बीते। नारायण की नगरी अयोध्या की लीला जारी रही। चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ अयोध्या की ही संतान हैं। पूर्वकाल में मनु थे। अयोध्या नया इतिहास रचने के मुहाने पर। ऊर्जा प्रभावित हुई। अयोध्या मंत्र, तंत्र, यंत्र, तत्वज्ञों को बुलाती है। चेतना के गौरीशंकर खिंचे चले आते हैं। सप्त ऋषियों संग जगत के महामानव की मौजूदगी। नए इतिहास का सूत्रपात। एक और अवतार की पृष्ठभूमि। लीलाधारी श्रीहरि विष्णु की माया। आर्यावर्त की अयोध्या फिर धन्य हुई। श्रीराम अवतरित हुए। श्रीराम की लीलाएं जीवंत हैं। आदर्श मानवीय गुण इसकी पृष्ठभूमि है। मानवता का कल्याण उद्देश्य। बदलते सामाजिक ढांचे में एकरूपता लक्ष्य। श्रीराम ने वर्षों तपस्या की। स्वरूप भिन्न था। वन भ्रमण तपस्या ही तो थी। रक्ष संस्कृति विनष्ट हुई। नए युग का सूत्रपात हुआ। मानव रूपी श्रीराम की लीला पर विहंगम दृष्टि की जरूरत है। सतह पर श्रीराम की लीला, अंतर्धारा में बहुत कुछ।
श्रीराम के आदर्श और परिणाम सामने हैं। मंथन में परिणाम झलकता है। निश्चरों के विनाश के पीछे लोक कल्याण। श्रीराम महामानव थे। जन नायक थे। कर्मयोगी थे। कर्म की शिक्षा लीला में निहित है। राष्ट्र और धर्म दो प्रमुख बिंब हैं। इनका सत्ता पर आरोहण मकसद था। श्रीराम शीलवान हैं। करुणापति हैं। संस्कृति उनको आकर्षित करती है। विनष्टि का प्रयास नहीं भाता। कठोरता पूर्वक दमन करते हैं। जिनको कोई नहीं पूछता वह प्रिय हैं। वनवासी, गिरिवासी वही तो हैं। वनवासी जीवन को गरिमा प्रदान करते हैं। इनकी समृद्धि निहित उद्देश्यों में है। खेती करना बताते हैं। रोग से मुक्ति को तुलसी का बिरवा लगवाते हैं। वनवास श्रीराम का बड़ा उद्देश्य है। बिखरी शक्ति का संगठन शामिल है। सबको एक सूत्र में पिरोते हैं। विधिता में एकता रचते हैं। असंभव में संभव हैं।
ऋषि, मुनि, योगी, तपस्वी, साधक, ब्राह्मण अति प्रिय हैं। दर्शन और उपदेश ग्रहण करते हैं। प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। सृजन करने वालों को अभय। धर्म की रक्षा करते हैं। नारी सम्मान उनका आभूषण है। कलंकित करने वालों पर भृकुटि तनती है। दमन के लिए पराक्रम की परकाष्ठा तक पहुंच जाते हैं। मर्यादा की स्थापना करते हैं। संस्कार का संदेश देते हैं। समदृष्टि भाव का सृजन करते हैं। समत्व, ममत्व भाव के उद्घोषक हैं। शक्ति, सौेदर्य और शालीनता के त्रिवेणी हैं। खुद अंधेरा पीते हैं, रोशनी उगलते हैं। जन-जन के मन में रमण करते हैं। माता-पिता, भाई, पत्नी की मर्यादा बताते हैं। लोक को प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। स्वयं मर्यादा की पराकाष्ठा हैं। मातृभूमि अतिप्रिय है। आदर्श राज्य का संदेश देते हैं। वह विराट पुरुष हैं। उनके कार्य मानक गढ़ते हैं। वह विश्वव्यापी हो जाते हैं। अनुकरणीय हैं। सीमाएं बांध नहीं पाती। जम्बू द्वीप लीला स्थल होता है। अन्यत्र लीला का प्रभाव। यह आज भी विद्यमान है। आधुनिक विश्व के शीर्ष पर हैं। काल के परे हैं। प्रासंगिक हैं। राष्ट्रों की आंखें उन्हें देखती हैं। अनुकरण करती हैं। आदर्श राज्य की परिकल्पना लेती हैं। संस्कृति और संस्कार को भरसक अपनाती हैं।
यह अयोध्या है। अतीत को भुलाती नहीं। परंपराएं जीवित रहती हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, संस्कृति, संस्कार, सरोकार को हस्तांतरित करती हैं। धर्म, समुदाय बाधक नहीं होते। अयोध्या की अलग महिमा है। अलग ऊर्जा है। यह आकर्षित करती है। काल परिवर्तन के साथ महामानवों को बुलाती है। उन्हें रिझाती, लुभाती है। पंथ-संप्रदाय के प्रवर्तक-साधक तभी तो यहां धूनी रमाते हैं। ऊर्जा संचित करते हैं। मानव कल्याण के लिए बांटते हैं। परंपरा लंबी है। शताब्दियों से चल रही है। यह अयोध्या है। यहां ज्ञान का स्रोत फूटता है। भावना की कलियां खिलती हैं। अध्यात्म का कमल विकसित होता है। वैराग्य घटता है। मानव से महामानव बनने की प्रक्रिया है। तभी तो यहां संतों की परंपरा अनूठी है। अलहदा है। अविस्मरणीय है। ऊपर से सब कुछ सामान्य। भीतर ही भीतर अध्यात्म की धारा। डूबने वालों की अलग जमात है। जो डूबा, पार हो गया। ऐसे एक नहीं, हजारों को अयोध्या ने गढ़ा। वे खुद तरे और औरों को भी तार गए।
यह अयोध्या है। इसने कई को जना। कई का कायाकल्प किया। यहां नाद है। यह नाद ब्रह्म से नादाष्ठित है। स्वर और ताल साधक हैं। विरत बहुकर्मा है। स्वर और ताल की धूनी रमाते है। विग्रह इष्ट है। स्वर-ताल तपस्या है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड इससे गूंजता है।
अयोध्या गतिमान है। प्रेरित कर रही है। मानस मंथन के लिए बाध्य कर रही है। संस्कारों की याद दिला रही है। सरोकारों को जीवंत बता रही। अतीत की धवल परंपराओं के अनुकरण को लक्ष्य बना रही है। अयोध्या निर्विकार है। कल्याण के मूल में है। अयोध्या को धारण करना होगा। आदर्श मानवीय गुण पीढिय़ों में हस्तांतरित होंगे। राष्ट्र का निर्माण होगा। क्योंकि अयोध्या जीवंत है… अद्भुत है…… अयोध्या शाश्वत है……………