पढ़ने वालों को अटपटा लग सकता है लेकिन यह तथ्य सच है। समाज और राजनीति में जो तथ्य प्रचलित है,उसमें यह नाम कहीं दब सा गयाहै। परिस्थितिजन्य जिन तथ्यों पर धूल सी जमा कर दी गई, उन दबे तथ्यों को बाहर लाने की कोशिश की गई है। ये तथ्य संविधान के निर्माणऔर उसकी प्रकिया से संबंधित है। नौ दिसंबर को “ भारतीय संविधान-अनकही कहानी पुस्तक आने जा रही है,जिसमें अब तक की तमामअनकही कहानी दर्ज है।
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने कहाँ कि जो श्रेय मुझे दिया गया है, उसका वास्तव में मैं अधिकारी नहीं हूँ। उसके अधिकारी बेनेगल नरसिंह रावही हैं , जो इसे संविधान के संवैधानिक परामर्शदाता है और जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का एक मोटे रूप में मसौदाबनाया।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के इन शब्दों में बेनेगल नरसिंह राव की वह महत्वपूर्ण भूमिका स्पष्ट हो जाती है। उन्होंने “ इंडियाज़ कांस्टीट्यूशन इन दमेकिंग “ में लिखा है कि “ अपने ज्ञान अनुभव और प्रज्ञा के कारण बेनेगल नरसिंह राव संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार पद के लिएअपरिहार्य व्यक्ति थे, जिन्होंने संविधान को बनाने में बड़ी सहायता की। संवैधानिक सलाहकार बनते ही उन्होने संविधान सभा के सदस्यों केलिए आवश्यक सहायक सामग्री खोजी। उसे साधारण आदमी की समझ के लिए सरल शब्दों में प्रस्तुत किया। संविधान सभा के ज़्यादातरसदस्य स्वाधीनता सेनानी थे। उन्हें संविधान की जटिलताएँ नहीं मालूम थी। जो वकालत पेशे से थे, वे भी संविधान के विशेषज्ञ नहीं थे।संविधान निर्माण का कार्य अपने आप में विशेषज्ञता की माँग करता है। संविधान पर सामग्री की कमी नहीं थी, लेकिन उसका सही चयन औरउसकी उचित व्याख्या का कार्य चुनौतीपूर्ण था। दुनिया के लिखित और अलिखित संविधानों का गठन अध्ययन कर सांवैधानिक इतिहास सेभारत के लिए उपयोगी तथ्य और तर्क उन्होंने अपने दस्तावेज़ों में समय समय पर दिए। उसे सदस्यों के लिए उपलब्ध कराया। अनेक ब्रोसरबनवाए। पुस्तिकाएं बनवाई। सदस्यों के लिए ज़रूरी नोट्स बनाए और आवश्यक प्रचुर सामग्री उपलब्ध कराई। “
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने इसी पुस्तक में राव के बारे में कहा है “ अगर डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर संविधान निर्माण के विभिन्न चरणों में कुशलपायलट की भूमिका में थे , तो बेनेगल नरसिंह राव वे व्यक्ति थे, जिन्होनें संविधान की एक स्पष्ट परिकल्पना दी और उसकी नींव रखी।संवैधानिक विषयो के वे विशेषज्ञ थे , वही साफ़ सुथरी भाषा में उसे लिखने मे उन्हें एक कमाल की योग्यता प्राप्त थी। संविधान संबंधितकिसी भी विषय की वे तह तक जाते थे। किसी समस्या के हर पहलू की छानबीन करते थे। उस पर वे जो परामर्श देते थे, वह भ्रम निवारण मेंसहायक होता था। संविधान सभा की बहस में जब कभी विवाद के विषय उठे, तो उस पर उनका परामर्श सर्वथा उचित और संपूर्ण होता था, जो उनके गहरे अध्ययन पर आधारित होता था। संविधान सभा की जो उन्होंने सहायता की, उसकी भारत और विदेशों में सर्वत्र सराहना हुई।भारत के संविधान का इतिहास जब लिखा जाएगा, तब उसमें बेनेगल नरसिंह राव का महत्वपूर्ण स्थान होगा। “
कौन थे बेनेगल नरसिंहराव …
बेनेगल नरसिंह राव कार जन्म कर्नाटक के साउथ क्वेरी ज़िले के कारकल में 26 फ़रवरी 1887 को हुआ। वे बचपन से ही अत्यंतप्रतिभाशाली थे। उनकी पढ़ाई लिखाई अपने मामा की देख रेख में मद्रास में हुई। भारत सरकार की स्कालरशिप की मदद से लंदन के कैंब्रिजविश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ाई की।
इन्हीं दिनों इसी कालेज मे जवाहर-लाल नेहरू भी छात्र थे। उन्होंने अपने पिता मोतीलाल नेहरू को छात्र बेनेगल नरसिंह राव के बारे में लिखाकि यह ब्राह्मण लड़का अत्यंत चतुर है इसे सिर्फ़ हाल और कक्षा में आते जाते ही देखता हूँ। मेरा विश्वास है कि यह अपना समय अध्ययन मेंही व्यतीत करता है। उनके निधन पर प्रधानमंत्री जवाहर-लाल नेहरू ने लोक सभा में श्रद्धांजलि देते हुए प्रसंगवश पुराने परिचय को भी यादकिया है।
ग़ौरतलब है कि 1909 में आईसीएस के लिए सिर्फ़ 50 सीटें थी। उसमें वे अकेले भारतीय थे,जिनका चयन हुआ था। उन्होने भारत सरकार मेंअपनी सेवाए शुरू की। वे किस मिट्टी के बने थे, इसे जानने के लिए यहाँ असाधारण घटना सहायक है। सिविल सर्विस कमिशनर ने उनकीपहली नियुक्ति मद्रास में की। इस पर उन्होने उन्हें पत्र भेजा। उसमें लिखा कि जिस प्रांत में मेरी नियुक्ति हुई है , वहाँ मेरे बहुत से मित्र और हरक्षेत्र में मेरे संबंधी हैं। मद्रास प्रेसीडेंसी में ही मेरे पिता की ज़मीन भी है। ऐसी परिस्थिति में मैं अपना कर्तव्य तब तक पक्षपात से परे होकरसंभावतह नहीं कर सकूंगा। इस लिए मेरी नियुक्ति अन्यत्र करें। मुझे आप बर्मा भी भेज सकते हैं। इस लिए बेनेगल की नियुक्ति बंगाल मेंहुई। बंगाल और असम उनके सेवाकाल के प्रान्त रहे। वे कलकत्ता हाई कोर्ट के जज बनाए गये लेकिन वहाँ उनका इस पद पर कार्यकालसंक्षिप्त ही रहा क्योंकि दिल्ली में उनकी बड़ी ज़रूरत थी। रिफॉर्म आफिस में उन्हें OSD बनाया गया। गवर्नर जनरल को संवैधानिक मामलोंमें सलाह देने के लिए। यदि बेनेगल नरसिंह राव अपने प्रयास में लाल फ़ीताशाही पर विजय पा जाते तो भारत चिकित्सा क्षेत्र में दुनिया काअग्रणी देश होता। उन्होने एक सोसायटी बनवाकर बिज्ञान स्वास्थ्य और दवा पर शोध केंद्र स्थापित करने के लिए प्रयास शुरू किया और उसेविश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिकों को जोड़ने की उन्होंने कोशिश की थी। वे बंगलुरू में सैन्ट्रल हेल्थ रिसर्च संस्था की स्थापना कर नोबेल पुरस्कार प्राप्तएक प्रसिद्ध वैज्ञानिक को भारत ले आना चाहते थे ,जिसके लिए लिए कई साल प्रयत्नशील रहे लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। वे एकबार कलकत्ता गए, जहाँ हाईकोर्ट में जज रहे चौवालिस में रिटायर हुए। वे कई आयोगों के अध्यक्ष भी बनाए गए , जिसमें से तीन का उल्लेखआवश्यक है। सिंधु और पंजाब में सिन्धु नदी के पानी बँटवारे का भी विवाद उन्होने सुलझाया। हिंदू पर्सनल लॉ में सुधार के लिए बने आयोगके भी अध्यक्ष थे। मद्रास प्रेसीडेंसी और ओडिशा में सीमा विवाद को हल करने में वे सफल रहे। जिस समय वे रिटायर हुए , तब तेज बहादुरसप्रू ने उन्हे जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभालने का आग्रह किया , जिसे उन्होंने अपने लिए नई चुनौती समझा। वे श्रीनगरलेकिन जम्मू कश्मीर के महाराजा हरिसिंह की कार्यशैली से वे असहमत थे। उन्होने यह स्पष्ट किया कि आपके फैसलों पर बिना यक़ीन किएउसे मानना ईमानदारी नहीं होगी। यही कारण बताकर उन्होने इस्तीफ़ा दे दिया। 1946 में लार्ड वेवेल ने राव को संविधान सभा का संवैधानिकसलाहकार बनाया। संवैधानिक सलाहकार बेनेगल नरसिंह राव ने संविधान का मूल मसौदा बनाया। उसी मसौदे के आधार पर डॉक्टरभीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में मसौदा समिति ने विचार किया। मसौदा समिति की कार्यवाही के व्यवहार से ही स्पष्ट है कि हर बैठक मेंबेनेगल नरसिंह राव उपस्थित है। भारतीय संविधान अनकही कहानी के लेखक राम बहादुर राय लिखते हैं कि वे संवैधानिक सलाहकार थेलेकिन उनका क़द हर बैठक मे हर रोज़ ऊँचा होता गया। वे संविधान निर्माण की प्रक्रिया में अपरिहार्य बनते गए। उनके परामर्श का छोटाशब्द भी संविधान सभा के नेतृत्व के लिए महा वाक्य बन जाता था। संविधान सभा की बहस में इसे देखना संभव नहीं है। इसके लिए “ दफ्रेमिंग आफ इंडियाज कांस्टीट्यूशन के पन्ने पलटने होंगे। जिसके हर पन्ने पर बेनेगल नरसिंह राव किसी न किसी रूप में अपने नोट औरड्रॉफ्ट के शब्दों में उपस्थित है। वे सिविल सर्वेंट थे, लेकिन उस सिविल सर्वेंट को भारतीय संविधान के प्रधान निर्माता होने का श्रेय संविधानसभा ने दिया। ऐसा रूपांतरण इतिहास में कम मिलेगा।
1953 में बेनेगल नरसिंह राव का कैंसर से देहांत हो गया। वे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के मुख्यालय हेग मे उन दिनों जज थे।वे अंतर्राष्टीय लाकमीशन के लिए चुने गए थे। हेग में जब उन्हें जज का पद प्रस्तावित हुआ तो उन्होंने उसे स्वीकार इसलिए किया था कि वे भारत के संविधानकी असली कहानी लिखेंगे। यह तथ्य उनकी पुस्तक में उनके छोटे भाई बी शिवाराव की प्रस्तावना में आया है। बेनेगल नरसिंह राव का सपनाअधूरा रह गया। बी शिवाराव ने उनके लिखित दस्तावेजों को संपादित किया गया और इंडियाज कांस्टीट्यूशन इन द मेकिंग पुस्तक पुस्तक केलेखक के तौर पर बेनेगल नरसिंह राव का नाम है। यह उचित है, क्योकि उनके ही लिखित दस्तावेजों को संपादित कर पुस्तक बनी है। यहपुस्तक 510 पृष्ठों की है। इसमें 29 अध्याय हैं, जो बेनेगल नरसिंह राव के ज़्यादातर वे दस्तावेज़ हैं ,जो संविधान निर्माण में मदद पहुँचाने केलिए उन्होने लिखे थे। पुस्तक की प्रस्तावना में बी शिवाराव ने लिखा है कि बेनेगल नरसिंह राव को भावी पीढ़ियां संविधान के प्रधान निर्माताके रूप में याद करेगी।
ग़ौरतलब है कि संविधान निर्माण के संदर्भ में त्रिमूर्ति या त्रिदेव की बात आती है। आख़िर ये तीनो कौन है ? संविधान सभा के संदर्भ में ये कौनथे ? पंडित जवाहर-लाल नेहरू ,डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और बेनेगल नरसिंह राव अगर ज्यामितीय शब्दावली में कहें तो वे त्रिभुज बनाते थे , जिसके आधार रेखा थे बेनेगल नरसिंह राव। आदि से अंत के नियामक ये तीनों थे, अन्य भी थे जिन्हें विभिन्न भूमिकाओं में जाना माना औरपहचाना जाता है।