पुराणों के अनुसार भगवान राम का अवतरण त्रेता युग में हुआ था। इतनी लंबी अवधि तक कोई वंश नहीं चलता। के परा सरण ने इस प्रश्न का उत्तर यह कहते हुए ही दिया कि उन्हें पता नहीं है कि अयोध्या में राम का कोई वंशज है या नहीं।
एक लंबी प्रतीक्षा के बाद देश के सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या विवाद की सुनवाई आरंभ हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ दोनों पक्षों के वकीलों को निरंतर सुन रही है। यह सुनवाई सप्ताह में पांच दिन चल रही है। आशा की जानी चाहिए कि मुख्य न्यायाधीश माननीय रंजन गोगोई की नवंबर में होने वाली सेवानिवृत्ति से पहले यह सुनवाई पूरी हो जाएगी और उसका निर्णय आ जाएगा।
न्यायालय यह स्पष्ट कर चुका है कि उसके लिए यह विवाद मुख्यत: संपत्ति का विवाद है और उसे यह तय करना है कि विवादित संपत्ति किसे सौंपी जाए। सुनवाई के दौरान अनेक तरह के प्रश्न पूछे जा रहे हैं। सुनवाई करते हुए पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति बोबडे ने रामलला विराजमान के वकील के परा सरण से पूछा कि क्या अयोध्या में राम के कोई वंशज हैं? यह सर्वविदित है कि पुराणों के अनुसार भगवान राम का अवतरण त्रेता युग में हुआ था। इतनी लंबी अवधि तक कोई वंश नहीं चलता। के परा सरण ने इस प्रश्न का उत्तर यह कहते हुए ही दिया कि उन्हें पता नहीं है कि अयोध्या में राम का कोई वंशज है या नहीं। हमें नहीं मालूम कि माननीय न्यायाधीश ने यह प्रश्न तर्क के रूप में रखा था या जिज्ञासा के रूप में। निश्चय ही यह प्रश्न करते हुए यह आशा नहीं की गई होगी कि भगवान राम के रक्त संबंधों के आधार पर उनका कोई वंशज अयोध्या में या कहीं और हो सकता है।
एक सुदीर्घ वंश परंपरा का दावा अब तक जापान के राजकुल का है। जापान का राजकुल पिछले लगभग दो हजार वर्ष से अपनी निरंतरता का दावा करता है। पर यह दावा केवल रक्त संबंधों के आधार पर नहीं है। इस राजकुल की निरंतरता बीच-बीच में लिए जाते रहे दत्तक पुत्रों के आधार पर रही है। यह देखा गया है कि कुछ पीढ़ियों के बाद परिवारों में कोई उत्तराधिकारी पैदा नहीं होता या अपना उत्तराधिकारी पैदा करने से पहले उसका जीवन शेष हो जाता है। राज परिवारों की अवछिन्नता बनाए रखने के लिए राज परिवार में किसी निकट संबंधी को या किसी बाहरी व्यक्ति को सम्मिलित कर लिया जाता है। इसी आधार पर जापान का राजकुल पिछले दो हजार वर्ष से अपनी अवछिन्न परंपरा का दावा करता है। भगवान राम के वंशज के बारे में इस तरह की अवछिन्नता का दावा कोई नहीं कर सकता क्योंकि अयोध्या के शासक कुलों में निरंतर परिवर्तन होते रहे हैं।
लेकिन न्यायमूर्ति बोबडे के प्रश्न ने भारत में अनेक लोगों को यह दावा करने के लिए प्रेरित किया कि उनका वंश भगवान राम से संबंधित है। यह दावा सबसे पहले जयपुर के पूर्व राज परिवार की दीया कुमारी ने किया। वे भारतीय जनता पार्टी की सांसद हैं। उनके बाद मेवाड़ के पूर्व राज परिवार ने भी यह दावा किया कि वे राम के वंशज हैं। उनका कहना है कि वे सिसौदिया वंश के हैं और सिसौदिया वंश भगवान राम के पुत्र लव से अपना आरंभ मानता है। एक तीसरा दावा राजस्थान सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता सत्येंद्र सिंह ने किया। उनका कहना है कि वे राघव राजपूत हैं और लव के वंशज हैं, जिन्हें पुराणों के अनुसार उत्तर कौशल का राज्य मिला था, जिसमें अयोध्या आती है।
जबकि भगवान राम के दूसरे पुत्र कुश को दक्षिण कौशल का राज्य मिला था। सर्वोच्च न्यायालय में किया गया प्रश्न और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप किए गए सभी दावे भारतीय समाज की संरचना के बारे में बने हुए व्यापक अज्ञान के कारण हैं। दुनिया में बाकी सब जगह व्यक्ति की मूल रूप से एक ही पहचान होती है, जो उसके रक्त संबंधों के आधार पर निर्धारित होती है। रक्त संबंधों के आधार पर परिवार का निर्माण होता है और उसके बाद की पीढ़ियां अपने आपको एक कुल के रूप में देखती-दिखाती हैं। भौतिक उत्तराधिकार का निर्णय इस कुल परंपरा के आधार पर ही होता है। लेकिन भारत में सभी व्यक्तियों की केवल एक ही मूल पहचान नहीं मानी गई।
भारत में भी रक्त संबंधों के आधार पर बने कुल का महत्व है। लेकिन साथ ही यह माना जाता रहा है कि व्यक्ति के गुण-कर्म केवल उसके रक्त संबंध से निर्धारित नहीं होते। भारत में जितना महत्व कुल का है, उतना ही महत्व गोत्र का भी है। हम यह मानते हैं कि इस सृष्टि के सभी जीव परमात्मा का अंश है। इस नाते उन सभी में चेतना का अंश है। मनुष्य में चेतना का विकास अन्य जीवों से अधिक हुआ है। चेतना के इस विकास ने उसे विवेक करने की क्षमता दी है। इस विवेक के आधार पर ही उसके कर्मों का निर्धारण होता है और उसी के आधार पर उसे मोक्ष प्राप्ति तक बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इस आधार पर यह माना गया कि सभी मनुष्यों की एक ज्ञानात्मक पहचान भी है। हम मानते हैं कि सभी मनुष्य सात मूल ऋषियों और उनकी संतति से अपनी यह ज्ञानात्मक पहचान पाते हैं।
इस आधार पर हम सभी का कुल के साथ-साथ एक गोत्र भी होता है। यह गोत्र हमें अपनी ऋषि परंपरा से जोड़ता है। ऋषियों के मानस पुत्र ब्रह्म विद्या में लीन रहने के कारण ब्राह्मण कहलाए। वे पुरोहित के रूप में हमारे यज्ञ संबंधी कार्यों का निष्पादन करते हैं और हमारे कुल पुरुष को उनके कुल पुरोहित से जो गोत्र प्राप्त हुआ, वही हमारा गोत्र माना जाता है। जिस तरह हममें ज्ञान का अवधान किए रखने के लिए गोत्र स्वीकार किए। उसी तरह जो कुल क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए राजकुल बने, उनमें शौर्य का और राज धर्म का अवधान करने के लिए उन्हें भगवान राम के दोनों पुत्रों लव और कुश से जोड़कर अपनी पहचान प्राप्त करने की परंपरा रही है।
भगवान राम अवतार थे। वे दिव्य सत्ता का प्रतिनिधित्व करते थे। इसलिए कुलों को सीधे भगवान राम से नहीं जोड़ा गया। उसमें यह भय था कि वह अपनी दिव्यता का झूठा दावा कर सकते हैं। इसलिए क्षत्रिय कुल परंपरा को लव और कुश से जोड़ने का विधान हुआ। इस परंपरा का जाति से संबंध नहीं है। उदाहरण के लिए गुजरात के पटेल दो वर्गों में विभाजित हैं। एक वर्ग अपने आपको लव का वंशज मानता है, दूसरा कुश का। अगर कुल परंपरा के आधार पर दावा करने की होड़ मच जाए तो देश में करोड़ों लोग अपने आपको भगवान राम का वंशज सिद्ध करने लगेंगे। यह भी ध्यान रखना चाहिए क्षत्रिय धर्म में कभी न कभी रहे सभी कुल अपने आपको लव और कुश से नहीं जोड़ते। भारत की परंपरा में राजवंशों की दो धाराएं रही है।
एक सूर्य वंश की, दूसरी चंद्रवंश की। सूर्य वंशी मूल रूप से अयोध्या के शासक थे। उन्हीं में रघु कुल हुआ और रघु कुल में भगवान राम। भगवान राम को शौर्य की दृष्टि से भी और न्याय की दृष्टि से भी आदर्श राजा की तरह देखा गया। उसी के आधार पर सदा राम राज्य की तरह का राज्य स्थापित करने का हमारा लक्ष्य रहा है। पराधीनता के समय हम उसी के लिए संघर्षशील थे। महात्मा गांधी ने भी राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य राम राज्य ही घोषित किया था। हमारे यहां क्षत्रिय धर्म में रहे सभी कुलों में अपने आपको सूर्यवंशी या चंद्रवंशी बताने की प्रथा रही है। चंद्रवंश का मूल राज्य काशी में हुआ था पर काशी तो बाबा विश्वनाथ की नगरी है। वहां तो उन्हीं का शासन हो सकता है। इसलिए कुछ काल में यहां के चंद्रवंशी राजा प्रयाग चले गए और चंद्रवंशी राजाओं की नगरी प्रयाग हो गई। इस विविध विभाजन के बावजूद भारत के सभी लोग अपने आपको भगवान राम के वंशज के रूप में ही देखते आए हैं। भारत से बाहर भी जो लोग गए, उन्होंने अपना परिचय इसी रूप में दिया। दक्षिण वियतनाम में ईसा की आरंभिक सदियों में ही भारतवंशियों ने चंपा राज्य स्थापित कर लिया था। उनसे संबंधित एक शिलालेख में उन्होंने अपना परिचय यही दिया है कि वे उस स्थान से आए हैं, जहां महाराजा दशरथ के पुत्र राम पैदा हुए थे।
सर्वोच्च न्यायालय में किया गया प्रश्न और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप किए गए सभी दावे भारतीय समाज की संरचना के बारे में बने हुए व्यापक अज्ञान के कारण हैं।
उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाकर रावण पर विजय प्राप्त की थी और एक आदर्श राज्य स्थापित किया था। हम सब उन्हीं के वंशज हैं। भारत भर में राम नवमी, दशहरा और दीपावली की जो प्रतिष्ठा है, उससे भी भगवान राम के प्रति सभी भारतीयों की निष्ठा का अनुमान लगाया जा सकता है। अयोध्या आंदोलन में भी देशभर के लोग सम्मिलित थे। अयोध्या हमारी आदि नगरियों में से एक है। भगवान राम के अवतार लेने से वह हमारी अत्यंत पवित्र नगरी हो गई है। उसमें राम जन्म स्थान का एक दिव्य स्थल के रूप में पूज्य हो जाना स्वाभाविक ही है। उसे लेकर कोई विवाद होना नहीं चाहिए था। वह हमारी शौर्य साधना से जुड़ा एक दिव्य स्थान है।