भोजपुरी कविता – दियना घरे- घरे बारऽ

दियना घरे- घरे बारऽ, राह सगरी सवार ऽ 6

कि अंजोरिया बढ़े ना

 

चान अंगने उतारऽ ,कि अजोरिया बढ़े ना
चमकत रहे देश क माटी चमकत रहे तिरंगा
चारों ओर अंजोरिया चमके चमके जमुना गंगा
खेते फरे हीरा- मोती ,
जरे जगमग जोती कि अंजोरिया बढ़े ना
तूं अन्हरिया के बहारऽ ,कि अजोरिया बढ़े ना
बहे अईसन बयार, नाहीं होखे कहीं रार
कि अंजोरिया बढ़े ना
सुन्दर सगुन उचारऽ ,कि अंजोरिया बढ़े ना
 सेनुर सिसके बिन सोहाग के राखी बिना कलाई
ए धरती के खातिर कितने लाल गंववली माई
सुघ्घर सपना सजावऽ, ए के हिया में जोगावऽ
कि अंजोरिया बढ़े ना
आपन थाती हऽ सम्हारऽ ,कि अंजोरिया बढ़े ना

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