दिल्ली में भाजपा की प्रचंड जीत

प्रज्ञा संस्थानभाजपा ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. चुनाव आयोग के मुताबिक, भाजपा 41 सीट जीती और 7 सीटों पर उसे बढ़त है यानी कुल 48 सीटें. आम आदमी पार्टी (AAP) भी 20 सीट जीती है, 2 सीटों पर आगे चल रही है यानी कुल 22 सीटें. दिल्ली विधानसभा चुनाव में न केवल आम आदमी पार्टी को हार मिली बल्कि ख़ुद अरविंद केजरीवाल भी नई दिल्ली विधानसभा सीट नहीं बचा पाए. पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा से चुनाव हार गए.  कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है. भाजपा ने 1993 में 53 सीटें यानी दो तिहाई बहुमत हासिल किया था. 5 साल की सरकार में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज सीएम बनाए गए थे.

इस बीच, दिल्ली सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने सचिवालय सील करने के आदेश जारी किए। इसमें कहा गया है कि बिना परमिशन के कोई भी फाइल या दस्तावेज, कंप्यूटर हार्डवेयर सचिवालय के परिसर से बाहर नहीं  जाना चाहिए.

केजरीवाल ने राजनीति में दस्तक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के ज़रिए दी थी. केजरीवाल अपनी पार्टी और ख़ुद के कट्टर ईमानदार होने का दावा कर रहे थे.  केजरीवाल ने कहा था कि जनता तय करेगी कि वह ईमानदार हैं कि नहीं. अब तो जनता का फैसला आ गया है. आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने से पहले केजरीवाल कहते थे कि वह सरकारी बंगला नहीं लेंगे और अपनी छोटी गाड़ी पर ही चलेंगे. लेकिन ऐसा नहीं कर पाए.

केजरीवाल का साथ मध्य वर्ग ने भी छोड़ा है. दिल्ली के आभिजात्य इलाक़ों में रहने वाले मध्य वर्ग को पहले ही लगता था कि उनके टैक्स के पैसे सब्सिडी में जा रहे हैं. इन्हें पहले भी फ्री में बस सेवा और बिजली-पानी को लेकर बहुत दिलचस्पी नहीं थी. अरविंद केजरीवाल पानी-बिजली और अन्य तरह की सब्सिडी की बात कर रहे थे .ऐसा अब भारत की कई पार्टियां कर रही हैं. अब सब्सिडी को हटा दें तो आम आदमी पार्टी की और क्या विशेषता रह जाती है?

दिल्ली में धार्मिक और जातीय पहचान की राजनीति का ज़ोर नहीं रहता है, ऐसे में केजरीवाल ने ग़रीबों के मुद्दे की राजनीति शुरू की थी, लेकिन ग़रीबों का ही भरोसा डगमगाने लगा तो आप के लिए मुश्किल स्थिति होनी ही थी. नई दिल्ली की तिहाड़ जेल में केजरीवाल महीनों रहे और उन्हें जब ज़मानत मिली तो सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तें लगाईं. जैसे कि वह मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकते हैं. ऐसे में उनका इस्तीफ़ा देना लाजिमी था. लेकिन केजरीवाल ने अपने इस्तीफ़े को जनता के फैसले से जोड़ दिया था.

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