1835 ई. में अंग्रेजों ने उत्तर-पश्चिमी प्रांत नामक एक नया प्रान्त बनाया, जिसमें मराठों से छीने गए आधुनिक मध्यप्रदेश के दो जिले भी मिलाये गए-सागर एवं दमोह। इस प्रान्त में ‘बर्ड कमीशन’ के प्रतिवेदन पर हुई दर पर कर लगा दिया गया। इससे यहां के जमींदार नाराज हुए और जब उनसे लगान कड़ाई से बसूलने का काम शुरू किया गया तो उन्होंने मधुकरशाह के नेतृत्व में 1842 ई. में विद्रोह कर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। 1843 ई. तक इस विद्रोह पर काबू पा लिया गया और लगान भी कम कर दिया गया था।
बुंदेला विद्रोह की प्रथम चिंगारी ललितपुर जिले के छोटे से गांव नाराहट से निकली थी। नई राजस्व नीति के परिणाम स्वरूप यहाँ के जमींदार, जागीरदार और राजा-महाराजा तो शोषण के शिकार हो ही रहे थे, साथ ही इसका प्रभाव आम जनता पर पड़ रहा था । इस राजस्व नीति के तहत अनेक भू-स्वामियों की भूमि छीन ली गईं तथा अनेक भू-स्वामियों की जमीनें कुर्क कर ली गई । इसके अतिरिक्त अनेक जागीरदारों की जागीरें एवं अनेक राजाओं की रियासतें छीन ली जिससे बुन्देला वीरों का खून खौल उठा और देशभक्त बुन्देली वीर अंग्रेजों के विरुद्ध उठ खड़े हुए । विद्रोह व संघर्ष की शुरूआत नारहार के वीर बुन्देला मधुकर शाह तथा इनके भाई गणेश जू एवं चंद्रपुर के मालगुजार जवाहर सिंह द्वारा की गई । 8 अप्रैल 1842 को मधुकरशाह, गनेश जू तथा जवाहर सिंह ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया ।
इसी के साथ बुन्देलखण्ड में संघर्ष की लहर चारों ओर फैल गई । मधुकर शाह आदि ने मालथौन पर हमला करके उसे अपने कब्जे में ले लिया जिससे नाराज होकर अंग्रेज अधिकारी एम.सी. ओमेनी ने मधुकरशाह व गनेश जू के बूढ़े पिता राव विजय बहादुर सिंह को गिरफ्तार कर लिय तथा मधुकरशाह व गणेश की गिरफ्तारी हेतु उनके बगीचे में सैनिकों का पड़ाव डाल दिया जिस पर मधुकर शाह, गणेश जू, जवाहिर सिंह, विक्रमजीत सिंह, दीवान हीरासिंह, राजधर एवं क्षमाधर अग्निहोत्री आदि ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर वहां से उन्हें मार भगाया जिसमें अनेक अंग्रेज सिपाही मारे गए । इसके बाद सभी क्रांतिकारी खिमलासा गए और वहां अंग्रेजों को परास्त कर मौत के घाट उतार कर लूटपाट की । तदुपरान्त सभी क्रांतिकारियों का दल बड़ा डोंगरा पहुंचा जिसमें क्षेत्र के अनेक लोग और शामिल हो गए । इस क्षेत्र में अंग्रेजों व अंग्रेजपरस्त लोगों की नींद हराम कर दी गई । इसी बीच 15 अप्रैल 1842 को क्षमाधर अग्निहोत्री व उनके साथियों की हत्या कर दी गई जिससे जन अक्रोश और भड़क गया।
30 अप्रैल 1842 को ओमिनी ने अपनी दमनकारी नीति के तहत् मधुकर शाह, गणेशजू, जवाहर सिंह आदि को बागी घोषित कराकर इनको जिन्दा या मुर्दा पकड़ने पर इनाम घोषित करा दिया । इसी बीच रमझरा में सभी क्रांतिकारी एकत्र हुए जिसमें ठाकुर इन्द्रजीत सिंह दतिया तथा राव विजय सिंह सहित लगभग दो सौ क्रांतिकारी इकट्ठे हुए । इसके बाद इसी दल में नारहार के तीन सौ लोग और शामिल हो गए । इस समय जवाहर सिंह चन्द्रपुर में उपस्थित थे । चन्द्रपुर से जवाहर सिंह का संदेश मिलने पर मधुकर शाह सभी साथियों सहित चन्द्रपुर की ओर बढ़े । वहाँ से मशालचियों को शामिल कर यह क्रांतिकारी टुकड़ी पथरिया होते हुए ईसुरवारा पहुंची वहां 7 मर्इ्र 1842 के बीना नदी के पास अंग्रेजों से इसकी मुठभेड़ हो गई । इसमे लगभग पचास क्रांतिकारी शहीद हुए तथा कुछ घायल हुए किन्तु मुखिया कोई नहीं पकड़े जा सके । इसके बाद कैप्टन मैकिन्टोस के नेतृत्व में नाराहर से 8 मील की दूरी पर गोना गांव अंग्रेज पहुंचे वह जिसे क्रांतिकारी ने लूट लिया था । तदुपरान्त लगातार क्रांतिकारी अंग्रेजी शासन को छकाते रहे फिर अंग्रेजी शासन ने एक नीति के तहत इन्हें हाजिर कराने की रणनीति बनाई जिसके तहत मधुकर शाह व गणेशजू के पिता राव विजय बहादुर सिंह को 25 मई 1842 को रिहा कर दिया । किन्तु इससे क्रांतिकारियों पर कोई असर नहीं पड़ा तथा वे अपनी गतिवधियों में लगातार संलग्न रहे जिसके परिणाम स्वरूप 19 जून 1842 को अंग्रेज अफसर मेकिनटोस के नेतृत्व वाली फिरंगी सेना से पंचमनगर में मुठभेड़ हो गई जिसमें कई अंग्रेज सैनिक मारे गऐ तथा 15-20 क्रांतिकारी भी शहीद हुए ।
क्रांतिकारी लगातार संघर्ष करते रहे उन्होंने जून 1842 में चन्द्रपुर तथा खुरई पर आक्रमण किया क्योंकि ये अंग्रेजी सत्ता के केन्द्र थे । ग्राम देवरी में जवाहर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों पर हमला किया गया जिसमें कई अंग्रेज सैनिक मारे गऐ । बेसरा गाँव के थाने में क्रांतिकारियों ने आग लगादी । 16 जुलाई 1842 को इन्हीं क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के अभेद्य दुर्ग धामौनी पर हमला कर उसे जीत लिया जिसमें 5 अरबी घोड़े, 7780 रुपये तथा काफी अस्त्र शस्त्र क्रांतिकारियों को मिले ।
इसी के बाद शाहगढ़ के राजा बखतवली शाह तथा वानपुर के राजा मर्दन सिंह भी इन क्रांतिकारियों के साथ हो लिए । उनको जैतपुर के अपदस्थ राजा पारीछत का भी खुला सहयोग मिल रहा था । ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध बुन्देलाओं के विद्रोह के समय ही हीरापुर के लोधी राजा हिरदेशाह ने भी अंग्रेजों की खिलाफत करने हेतु बहरौल में मलखान सिंह मुखिया के नेतृत्व में बैठक बुलाकर निर्णय लिया कि वे ब्रिटिश हुकूमत की अन्यायपूर्ण नीतियों का विरोध करेंगे । इस बैठक में करीब ढाई-तीन सौ क्रांतिकारी शामिल हुए थे । बैठक में मदनपुर के गौंड़ राजा डेलनशाह दिलावर के गौड़ मालगुजार दिलावर सिंह और नरबर सिंह भी शामिल थे । इस बैठक की खबर अंग्रेजों को लगी तो लेफ्टिनेंट हरबर्ट तथा लेफ्टीनेंस राइकेश के नेतृत्व में बहरौल में अंग्रेज दाखिल हुए । इस लड़ाई में 15 क्रांतिकारी शहीद हुए । इन क्रांतिकारियों ने सक्रिय होकर सागर तथा नरसिंहपुर जिले में अनेक स्थलों पर अपनी सजा कायम की । इन्होंने महाराजपुर तथा सुआतला पर अपना कब्जा जमा लिया ।
सुआतल के बुन्देला ठाकुर रन्जोर सिंह भी क्रांतिकारियों से मिल गए । क्रांतिकारियों ने नर्मदा के घाटों पर अपनी सैनिक टुकड़ियां तैनात कर दी तथा अनेक स्थानों को अंग्रेजों से छीनकर अपने पटवारी तथा नाजिर नियुक्त कर दिय । नर्मदा घाटों पर कब्जा के बाद तेंदूखेड़ा पर क्रांतिकारियों ने बिना संघर्ष के अपना अधिकार कर लिया । इन्हीं क्रांतिकारियों ने होशंगाबाद जिले के दिलवार पर भी कब्ज जमा लिया । इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिये थे जिससे जनरल टॉमस ने कार्नल वॉटसन को तेजगढ़ को भेजा वहां अनेक अंग्रेज सिपाही मारे गए तथा क्रांतिकारियों ने तेजगढ़, अभाना तथा बालाकोट स्थानों पर आधिपत्य जमा लिया । इस तरह इन स्वतंत्रता के दीवानों ने नरसिंहपुर, जबलपुर, दमोह तथा नर्मदा पार के बड़े भू-भाग पर अपना कब्जा जमाकर उसे अंग्रेजी भय से मुक्त करा दिया । अब अंग्रेजों ने आमने सामने न लड़कर कूटनीति का सहारा लेकर जबलपुर जिले में हर 10 मील पर निगरानी केन्द्र खोले गये तथा सीमावर्ती जिलों में पुलिस बल बढ़ाया गया । ब्राउन ने हीरापुर के पास ग्राम सांकल में 42 मद्रास रेजीमेंट की दो टुकड़ियां तैनात की जिससे हिरदेशाह पर कड़ी निगरानी रखी गई ।
राजा हिरदेशाह जब तेजगढ़ पहुंचे तो उनकी मुठभेड़ अंग्रेज सैनिकों से हो गई जिससे अनेक क्रांतिकारी शहीद हुए । दिसम्बर 1842 तक लगातार क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रहीं अंग्रजों ने इन क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी पर इनाम बढ़ा दी । लेकिन सभी क्रांतिकारी अपने अपने इलाकों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे कि फरवरी 1843 में मधुकर शाह अस्वस्थ हो गए । जिससे वे अपना इलाज नाराहर में घर पर करा रहे थे । इसकी खबर जैसे ही कैप्टन हैमिल्टन को मिली उसने बीमार हालत में ही मधुकर शाह को घर से गिरफ्तार करना उचित समझा तथा नाराहर आकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया । यह खबर पाकर राजा हिरदेशाह जैतपुर से सागर के लिए रवाना हुए वे वहाँ पहुंचते इसके पहले ही मधुकरशाह को सागर में अंग्रेजों ने फाँसी दे दी । राजा हिरदेशाह को सागर जाते समय शाहगढ़ के समीप गिरफ्तार कर लिया गया । उनके साथ मेहरबार सिंह ईसरी सिंह, राव अमान सिंह सहित अनेक क्रांतिकारी पकड़े गए । मधुकर शाह की फांसी से तथा हिरदेशाह की गिरफ्तारी से क्रांति असफल हो गए किन्तु बुन्देलखण्ड ने इन वीरों ने आजादी की अलख जगाते हुए अंग्रेजों से लड़ने का हौसला दिया तथा सैकड़ों वीर शहीद हुए ।
इस प्रकार सागर, दमोह, नरसिंहपुर से लेकर जबलपुर, मंडला और होशंगाबाद के सारे क्षेत्र में विद्रोह की आग भड़की, लेकिन आपसी सामंजस्य और तालमेल के अभाव में अंग्रेज इन्हें दबाने में सफल हो गए।
Ganesh ju was not the brother madhukar shah his father’s real name was govardhan singh who was a chandel rajput the son of ganesh ju was girdhari singh his son was ranjeet singh his son was hammir singh his son is devkinandan singh and his son is manohar singh andi am his son so please rectify that he is not his brother and thankyou for publishing this article very humble of you. Vijya lakshmi mam
मदनपुर और ढिलवार दो गाँव हैं यहाँ के गोंड राजा डेलन शाह जी थे। दिलावर सिंह कोई नहीं थे। नरवर सिंह चीचली के थे जिन्हे राजा डेलन शाह अपने राज्य मदनपुर ढिलवार ले आये थे ।राजा डेलन शाह (ढिल्लन शाह)ने ढिलवार गाँव बसाया और उनकी पत्नी रानी मदनकुँवर के नाम पर मदनपुर गाँव का नाम है जो हर्रई जागीर की राजकुमारी थी। राजा डेलन शाह चार भाई थे। डेलनशाह,निजामशाह,विशाल शाह,छोटेलाल शाह
वर्तमान में छोटेलाल शाह जी से राजवंश चला इनके तीन पुत्र राजा कमल शाह,दीवान भगवान शाह ,दीवान चौहान शाह हुये। भगवान शाह के तीन पुत्र दी पीताम्बर शाह,दी नगेंद्र शाह,दी किशोर भानु शाह हुये। दीवान किशोर भानु शाह के तीन पुत्र दी अजय भानु शाह, दी भीष्म शाह, दी तिलक शाह हैं। मैं भीष्म शाह हूँ। आपने बढिया जानकारी दी उसके लिये धन्यवाद।