काफिर देश में तबलीगी जमात – शंकर शरण
यह हमारे राजनीतिक-बौद्धिक जीवन का बैरोमीटर है कि जिस संस्था के काम से पिछले सौ साल से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है, और»
यह हमारे राजनीतिक-बौद्धिक जीवन का बैरोमीटर है कि जिस संस्था के काम से पिछले सौ साल से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है, और»
वैसे 40 की उम्र ज्यादा नहीं होती। 40 की उम्र में ही अगर खुद के होने के सवाल के ज्यादतर उत्तर देने के करीब आप पहुंच जाते»
भारत के भूगोल की देह ऐसी है, जिस पर कदम दर कदम ऋषियों ने महनीय हस्ताक्षर किए हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जैसा जननायक»
रामजन्म भूमि की एक लड़ाई सारा देश अभी जीता है। मंदिर हिन्दू समाज के श्रृद्धा के केन्द्र हैं। यह जानते हुए भी रामज»
अहो! अयोध्या अयोध्या आंदोलन के सृ»
संविधान सभा की रट में रमी कांग्रेस राजनीतिक यथार्थ को पहचानने में कब और किस समय विफल हो गई? स्वाधीनता संग्राम का वह कौन»
मिर्जा गालिब का भी था पसंदीदा ठिकाना –कूचा ए बीवी गौहर #कुछ निशानियां, कुछ फसाने # गुलजार महफिलों की दास्तान चावड»
अंग्रेजी हुकूमत ने अवध इलाके पर अपना बर्चस्व कायम की। वह साल था 1856 का। अवध पर अंग्रेजी हुकूमत स्थापित होने के बाद अपने»
इरफ़ान हबीब के प्रति मेरे मन में कभी कोई शंका नहीं रही। मैं उन्हें बहुत पहले से बेईमान इतिहासकार मानता रहा हूं लेकिन जिस»
आजाद हिंद फौज की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी लाल किले पर झंडा फहराकर सुभाष चंद्»
गुजरात में नर्मदा के तट पर सरदार पटेल की 182 मीटर की प्रतिमा का अनावरण स्वतंत्र भारत की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह»
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कुंवर नटवर सिंह दूसरों से भिन्न हैं। राजनीति की मुख्यधारा में सक्रिय नहीं रहते हुए भी वे अपन»
15 जनवरी, 2000 को विवेक गोयनका का सभी लोगों को पत्र मिला जिसमें वे समूह के सीईओ बनाए गए। वे इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान स»
महात्मा गांधी से जब यूरोपीय सभ्यता के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने इसकी खिल्ली उड़ाई थी। भारतीय दृष्टि से सभ्यता का आ»
इस देश में लोगों को कैसे शिक्षित किया जाए, जो मानते हैं कि अभी तक लागू मैकाले सिस्टम ने उन्हें अच्छा भविष्य दिया है। ऐसे»
पौधों और वनस्पति की दुनिया में काम करने वाले जानते हैं कि 16 वीं सदी में पुर्तगाली गार्सिया डि ओर्टा ने पौधों की विभिन्न»
मुझे लगता है कि यदि मैं ‘बौद्ध धर्म और आधुनिक बौद्धिकता’ पर कुछ कहता तो अधिकांश लोग गौर नहीं करते। लेकिन गणेश? मुझे हमेश»
आज यह बात सर्वमान्य लगती है कि पिछली लगभग एक शताब्दी में यूरोपीय शिक्षा का जो स्वरूप उभर कर आया है, वह सबके लिए उ»
उन्नसवीं शताब्दी तक यूरोपीय एक अमर्यादित, आक्रामक और पराक्रमी जाति के रूप में जाने जाते थे। लेकिन बीसवीं सदी में उन्होंन»