भारत की जड़ें तो गांवों में हैं
कोरोना महामारी बाजारपरस्त वैश्वीकरण का नया संस्करण है या उसका अंत? यह विमर्श का मुद्दा हो सकता है, लेकिन एक बात स»
कोरोना महामारी बाजारपरस्त वैश्वीकरण का नया संस्करण है या उसका अंत? यह विमर्श का मुद्दा हो सकता है, लेकिन एक बात स»
वसंधुरा – जैसा कि नाम से वर्णित है-वसु जिसमें वास है! यह पंच भौतिक तत्व-मिट्टी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि से मिलकर»
भारत कृषि प्रधान गांवों का देश है और गांव का इतिहास मानव सभ्यता के विकास का इतिहास रहा है। गांव परिवारों या व्यक्तियों क»
पहले मौसम की मार और अब कोरोना त्रासदी। हम कहीं के नहीं रहे। यह कहना है आम के बागवानों और कारोबारियों का। दोनों को गर्मी»
कोरोना के कहर से देश ठप है। कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। खेती किसानी तथा कृषि पर आधा»
भारत में ब्रिटिश शासन आने से पहले, खेती भारती जीवन-शैली का परंपरागत अभिन्न अंग थी। पशुपालन भी खेती किसानी का हिस्सा था।»
भारत में हरित क्रांन्ति की शुरुआत सन 1966-67 से हुई। इसकी शुरूआत का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को»
कोरोना के कहर से हर कोई अपने घरों में हैं। वो लोग जो महानगरों की चमक दमक से प्रभावित होकर गांव छोड़ गए थे वे वापस आ रहे»
आज आजादी के 75 साल पूरा करने को दो साल बचे हैं। प्रकृति ने हमें सोचने का एक अवसर दिया है। हम सोचें उन मजदूरों की आंख में»
आजादी के बाद जमींदारी प्रथा का अंत हो चुका है। इसके बाद किसानों को जमीन का हक मिला। लेकिन यह हक काफी कुछ पन्नो पर ही है।»
मै भारत का गांव हूं। अब मै बदल गया हूं। लेकिन हमने सिर्फ कपड़े बदले हैं। मेरा भाव वही है। सोच, संस्कृति और सरोकार भी वही»
साल 2019 भी बीत गया | हालांकि इस वर्ष में किसानों को अपने बेहतर भविष्य कि काफी उम्मीदें थी ,लेकिन अब जबकि 2019 इ»
1835 ई. में अंग्रेजों ने उत्तर-पश्चिमी प्रांत नामक एक नया प्रान्त बनाया, जिसमें मराठों से छीने गए आधुनिक मध्यप्रदेश के द»
भारत में किसान आंदोलनों की एक लंबी और सतत श्रृंखला है। किसान संघर्ष इतिहास में अपना अलग महत्तव रखते हैं। इन आंदोलनों ने»
अंग्रेजी हुकूमत ने अवध इलाके पर अपना बर्चस्व कायम की। वह साल था 1856 का। अवध पर अंग्रेजी हुकूमत स्थापित होने के बाद अपने»
पंचायती शासन किस तरह के भाईचारे पर टिका रहा है इसका उदाहरण महम चैबीसी से पाया जा सकता है। सामान्यतया जाटों के गोत्र पांच»
पंचायती राज की कल्पना, गांधीजी की शासन और समाज की दो कल्पनाओं के मेल पर आधारित है। पंचायती राज नीचे से उस प्राथमिक समुदा»
खेती किसानी को लेकर बातें बहुत सारी हो रही। किसानों की समस्याओं के नाम पर आंदोलन हो रहे। या यूं कहें कि इन आंदोलनों के ज»
खरीफ की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत का डेढ़ गुना किया जाना खेती-किसानी के संकट निवारण की दिशा में बड़ी»