हम भीष्म पितामह के पास कब जाएंगे
हमारे यहां हर महीने का कोई न कोई देवता है और कोई न कोई ग्रंथ। माघ महीने में महाभारत के शांति और अनुशासन पर्व को पढ़ने की»
हमारे यहां हर महीने का कोई न कोई देवता है और कोई न कोई ग्रंथ। माघ महीने में महाभारत के शांति और अनुशासन पर्व को पढ़ने की»
हमें यह समझना होगा कि राष्ट्र केवल भौतिक साधनों से उन्नत नहीं हुआ करते। यदि ऐसा होता तो जापान कभी एक उन्नत राष्ट्र नहीं»
हमारे देवताओं में ज्ञान के देवता हैं और कुछ विज्ञान के। अकेले शिव ही ऐसे हैं जो एक साथ ज्ञान और विज्ञान दोनों के देवता ह»
अध्यक्ष महोदय, विद्यार्थिगण, भाइयों और बहनों, हमें आचार्य महाराज ने याद दिलाया है कि कांग्रेस ने कलकत्ते में लोगों से ज»
आज जो युद्ध चल रहा है, बहुत कम लोग उसके महत्व को जानते होंगे। एक सज्जन ने मुझसे पूछा है कि ‘‘हम जो कार्य कर रहे हैं क्या»
शास्त्रों का एक सिद्धांत है कि प्रयत्न से फल नहीं मिलते, पुण्य से फल मिलते हैं। प्रयास से ही फल मिलतो तो दुनिया में श्रम»
बंबई के एक कार्यकर्ता ने इंटरनेट खंगाला और बड़े प्राचीन ऐसे कई मानचित्र खोज लिए जो ब्रिटेन के लोगों ने तैयार किए थे। वेद»
नेपाल में लोकतंत्र की बहाली और राजतंत्र का अंत काफी रक्तरंजित रहा था और नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल का लंबा इतिहास रहा»
कोरोना ने प्रकृति के करीब जाने, उसके सानिध्य में जीने की एक ललक पैदा की। हालांकि ये ललक पैदा हुई मजबूरी में। लेकिन प्रकृ»
रामलला का मंदिर बनने जा रहा। यह एक दिन में नही हुआ। अयोध्या में कदम दर कदम अयोध्या आंदोलन के संघर्ष के साथियों की गवाहिय»
स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती वही शंकराचार्य थे, जिनकी अध्यक्षता में पांचवीं धर्मसंसद की विशेष बैठक हुई, जहां कारसेवा की ता»
महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली कस्बे में जनमे चंडिका दास अमृत राव देशमुख को दुनिया नानाजी देशमुख के नाम से जानती है»
जाने-माने पत्रकार भानुप्रताप शुक्ल ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में एक राज खोला। वह यह कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक सं»
सनातन संस्कार और अपने तमाम प्रतीकों के सहारे लगातार भारत भूमि पर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हुए अपने सफर में सनातन»
डा. अरविंद दुहन सिर्फ नाम नही। यह पहचान है आयुर्वेद की। यह पहचान है युवा जोश की। यह पहचान है असाध्य बीमारियों से दो-दो ह»
मानवाधिकार की दमदार आवाज़ अनंताकाश के मौन मे डूब गई। वे बेजुबानो की आवाज थे। खुद चरैवेति-चरैवेति ऋषि परंपरा के अनिकेत थे»
इंद्रियाँ है तो उसे रस तो चाहिए ही। रसहीन तो बेरस होता है। सोमपाई तो हमारे पुरखे थे। सोमरस से मिले अद्भुत आनंद का गान अथ»
आबोहवा में उदासी घुली है। बेदर्द वक्त की ध्वनियों में असहायता के स्वर है। ह्दय में अकेलेपन के दर्द की उठती लहरियां है। स»
आफत के काल में सांसत के रेले है। फिर भी दम-ब-दम बेदम होने के बाद भी दम शरीर में बना हुआ है। कोरोना के पूर्व प्राण पखेरू»