नेहरू की जुबानी
संविधानवाद के उतार-चढ़ाव में 1935 मील का पत्थर है। उससे जो हमारी संवैधानिक यात्रा शुरू हुई वह इतिहास के अगर-मगर से भरी प»
संविधानवाद के उतार-चढ़ाव में 1935 मील का पत्थर है। उससे जो हमारी संवैधानिक यात्रा शुरू हुई वह इतिहास के अगर-मगर से भरी प»
सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि 1937 के विधानसभा चुनाव में क्या कांग्रेस और मुस्लिम लीग का दृष्टिकोण भिन्न था? अगर भिन्न»
अपना संविधान बनाने की धुन में डूबे रहने के कारण क्या कांग्रेस नेतृत्व ने भारत विभाजन के खतरे को नहीं समझा? 1935 के ब्रिट»
संविधान के लक्ष्य का प्रस्ताव ‘सभी सदस्यों ने खड़े होकर स्वीकार किया।’ यह 22 जनवरी, 1947 की ऐतिहासिक घटना है। उसी से संव»
बहस समापन की ओर बढ़ रही थी। साथ साथ् सहमति के स्वर एक होने लगे थे। संविधान सभा के सदस्य लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव का महत्व»
स्लिम लीग की अनुपस्थिति संविधान सभा पर अंत तक छाई रही। इस तरह मानो संविधान सभा पर मुस्लिम लीग की प्रेत बाधा मंडरा रही हो»
संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू के लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर दूसरे चरण की बहस महीने भर बाद फिर से शुरू हुई। इस अवधि»
संविधान सभा में जयपाल सिंह अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व कर रहे सदस्यों में सबसे बड़ा माना-जाना नाम था। पंडित जवाहरलाल»
लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर संविधान सभा ने डा. भीमराव अंबेडकर का भाषण दत्तचित्त होकर सुना। इसकी पुष्टि अध्यक्ष डा. राजेंद्»
संविधान के लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर बहस से एक बात साफ-साफ उभरती है। वह उस समय की कड़वी सच्चाई थी। बड़े नेता अखंड भ»
संविधान सभा के पांचवे दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव रखा। वे चाहते थे कि उसे संविधान सभा बिना बहस क»
वर्ष 1946 की दो घटनाओं पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए उतना नहीं दिया गया है। पहली घटना नौसेना विद्रोह की है। इस विस्फोटक»
न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस ने 22 फरवरी, 1947 को खबर चलाई कि लार्ड माउंटबेटन भारत के वायसराय बनाए जा रहे हैं। महीने भर»
संविधान में बदलाव के बारे में डा. भीमराव अंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार समान थे। अंबेडकर ने यह स्पष्ट रूप से क»
भारत शासन अधिनियम, 1935 से अंग्रेज जो चाहते थे उसे वे बहुत हद तक पा सके। कांग्रेस नेतृत्व को संविधान की अपनी अंधेरी गुफा»
संविधान सभा के पांचवे दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव रखा। वे चाहते थे कि उसे संविधान सभा बिना बहस क»
भारत के संविधान की उद्देशिका का संबंध गर्भ-नाल की भांति उस लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव से जुड़ा हुआ है जिसे पंडित जवाहरलाल नेह»
दूसरा विश्व युद्ध छिड़ने पर संविधान सभा के लिए पंडित नेहरू के अभियान को दो अनपेक्षित समर्थन मिले। पहला समर्थन उन्हें महात»
लंबे संघर्ष के बाद रामलला का मंदिर बनने जा रहा। संघर्ष के कई योद्धा आज हमारे बीच नहीं हैं। वो भी हम सबकी आंखों से इस गौर»