जी-7 के देशों ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के मुकाबले 600 अरब डॉलर के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान का ऐलान किया है |पिछले साल ब्रिटेन में G-7 देशों की बैठक के दौरान इस स्कीम को लाने की योजना बनाई गई थी |विकसित देशों की ये स्कीम चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का मुकाबला करने के लिए लाई गई है | बीआरआई चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दिमाग की उपज है | इसके ज़रिये चीन एशिया, यूरोप और अफ्रीका के जोड़ने के लिए विशाल इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को अंजाम दे रहा है |
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जी-7 की इस पहल का ऐलान करते हुए कहा कि इसमें सबका फायदा है |बाइ़डन के इस बयान के खास मायने हैं |अमेरिका और यूरोपीय देश चीन के बिल्ड एंड रोड इनिशिएटिव की ये कह कर आलोचना करते रहे हैं कि इसके जरिये वह विकासशील और गरीब देशों को कर्ज़ के जाल में फंसा रहा है |इसका उदहारण श्रीलंका है जो अपने आजादी के बाद के सबसे बड़ा आर्थिक संकट से गुजर रहा है |
बीआरआई के तहत तमाम देशों को वित्तीय मदद करते वक्त चीन अपनी मनमानी शर्त थोपता है और उन्हें कर्ज़ के जाल में जकड़ लेता है | 2013 में शुरू की गई बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव आज दुनिया की सबसे बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना बन चुकी है |ये नए चीन के बढ़ते आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक ताकत का प्रतीक बन गई है |चीन दुनिया का सबसे बड़ा आयातक और निर्यातक देश बन चुका है | उसकी आर्थिक जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं और उसे अब पूरी दुनिया का बाजार चाहिए ,लिहाजा पूरी दुनिया में अपना सामान पहुंचाने और और वहां से सामान लाने के लिए ही उसने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है |
ज़ाहिर है इससे अमेरिका और यूरोप के वर्चस्व को चुनौती मिल रही है |चीन जिस तरह से दुनिया भर के देशों को बीआरआई की परियोजनाओं से जोड़ रहा है | उससे जी-7 के देशों में चिंता स्वाभाविक है चीन ने बीआरआई की परियोजनाओं से लगभग 100 से ज्यादा देशों को जोड़ लिया है |दुनिया भर में बीआरआई की 2600 परियोजनाएं चल रही हैं |इस परियोजना के तहत जिन देशों ने चीन से करार किया है | उनमें यह 770 अरब डॉलर से ज़्यादा निवेश कर चुका है |
अब विकसित देश खास कर फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और इटली को लग रहा है कि चीन विकासशील देशों के बाजारों को अपने साथ जोड़ने की दिशा में काफी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है |इन देशों के श्रम बाजार पर अब तक यूरोप और अमेरिका का वर्चस्व था | लेकिन चीन अब उनके सामने चुनौती खड़ी करने में लगा है |यही वजह कि जी-7 ने बीआरआई को टक्कर देने के लिए पीजीआईआई के नाम से ये स्कीम लॉन्च की है |इस योजना के तहत जी-7 देशों के नेता अगले पांच साल में मध्य और कम आय वर्ग वाले देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए 600 अरब डॉलर जुटाएंगे |
अकेले अमेरिका ने ग्रांट, फेडरल फंड्स और निजी निवेश के जरिये 200 अरब डॉलर देने का ऐलान किया | यूरोपीय यूनियन के देश 300 अरब डॉलर देंगे | ऐसा नहीं है कि यूरोप और अमेरिका विकासशील देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निवेश नहीं कर रहे हैं | पहले से ही उनका 250 से 300 अरब डॉलर का निवेश चल रहा | लेकिन इसे बढ़ा कर वह 600 अरब डॉलर का करने जा रहा है तो इसकी वजह है | चीन के बढ़ते वर्चस्व से सबसे ज्यादा खतरा यूरोप को है | चीन यूरोप में न सिर्फ निवेश कर रहा है बल्कि इसकी आड़ में वह अपनी सामरिक ताकत भी मजबूत कर रहा है |
यूरोप में चीन जिस तेजी से निवेश बढ़ा रहा है उससे 2030-35 तक वह बहुपक्षीय वाणिज्य, कारोबार और आर्थिक सौदेबाजी में बड़ी ताकत बन जाएगा | इसके साथ ही वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी है | चीन की इस दोहरी ताकत से यूरोप डरा हुआ है |’ इसके साथ ही यूक्रेन संकट ने यह साबित कर दिया कि सामरिक और आर्थिक ताकत आपस में जुड़ी हैं | अब तक यूरोप ये मान कर चल रहा था कि कारोबार में चीन के वर्चस्व को सीमित करने से उसका काम चल जाएगा | लेकिन अब उसके सामने चीन को सामरिक मोर्चे पर रोकना भी चुनौती बन गया है | यही वजह है कि वह विकासशील और गरीब देशों में बीआरआई की निवेश योजना के मुकाबले अपनी निवेश योजनाओं को धार देने में लगा है |