अंग्रेजी शासन के दौरान आदिम जाति को तुच्छ दृष्टि से देखा जाता था। बाहरी लोग जबरदस्ती उनके पारंपरिक इलाकों को हथियाने लगे थे। इसी दौरान बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों ने कर वसूलने में जरा भी नरमी नहीं दिखाई। सन् 1768 के आस-पास मिदनापुर जनपद में आमतौर पर निवास करने वाली चुआर आदिम जाति भू-कर तथा अकाल के कारण बुरी तरह आर्थिक संकट से ग्रस्त थी। उस पर अंग्रेजों के अत्याचार ने आग में घी का काम किया।
सारे रास्ते बंद देखकर चुआर जनजाति ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। चुआर लोगों ने इस विद्रोह में जान की बाजी लगा दी। कई इलाकाई जनजातीय सरदारों ने इस विद्रोह में चुआर लोगों का साथ दिया, लेकिन वे अधिक समय तक फिरंगियों का मुकाबला हीं कर सके। उन्होंने जल्दी ही फिरंगियों के आगे आत्म-समर्पण कर दिया।