अगले एक दशक में दुनिया के औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की आशंका है |भारत में ग्रीष्मकालीन मॉनसून के पूर्वानुमान को यह अत्यधिक मुश्किल बना देगी। बारिश के प्रारूप में परिवर्तन से कुछ क्षेत्र पानी में डूब जाएंगे और कहीं बिजली बनाने एवं सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं होगा। कुछ मामलों में तो पीने के लिए पानी भी उपलब्ध नहीं रहेगा।
तापमान में 2 डिग्री और 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में कृषि उत्पादन, जल संसाधन, तटीय परितंत्र और शहरों पर असर पड़ेगा। यदि देशों ने अभी ठोस कार्रवाई नहीं की तो इस सदी के आखिर तक दुनिया का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर के तापमान से 4 डिग्री बढ़ जाएगा।
भविष्य ज्यादा दूर नहीं दिखता क्योंकि जलवायु परिवर्तन के आसार अभी से नजर आने लगे हैं। नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2040 के दशक तक, भारत में अत्यधिक गर्मी के कारण फसल की पैदावार में बहुत कमी हो जाएगी। वर्षा स्तर तथा भूजल में बदलाव के कारण पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी जिससे भारत में हालात और खराब हो सकते हैं जहां भूजल संसाधन का स्तर पहले ही चिंताजनक हो चुका है। देश के 15 प्रतिशत से अधिक भूजल का अति दोहन किया जा चुका है।
भारत में 60 प्रतिशत से अधिक फसल क्षेत्र वर्षा सिंचित है जो इसे बारिश के स्वरूप में जलवायु प्रेरित बदलाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाते हैं। अनुमान है कि 2050 तक औद्योगिकीकरण पूर्व तापमान की तुलना में 2 से 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के नदी थालों में कृषि उत्पादन के लिए पानी और कम हो जाएगा तथा इससे करीब 6 करोड़ 30 लाख लोगों को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के काम में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
विश्व बैंक के लिए यह रिपोर्ट पोट्सडैम इन्स्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च एंड क्लाइमेट एनालिटिक्स ने तैयार की है और दुनिया भर के 25 वैज्ञानिकों ने इसकी समीक्षा की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि दुनिया का तापमान 2090 तक औसतन 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तो दक्षिण एशिया के लिए इसके परिणाम और बुरे होंगे। यदि दक्षिण एशिया में कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई तो इस परिदृश्य में, दक्षिण एशिया में भयंकर सूखे और बाढ़, समुद्र का जल स्तर बढ़ने, ग्लेशियर पिघलने और खाद्य उत्पादन में गिरावट जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं
वैज्ञानिकों ने जिस भविष्य पर विचार किया है उससे इस तथ्य की पुनः पुष्टि होती है कि जलवायु परिवर्तन से गरीबों पर सबसे बुरा असर पड़ेगा और इससे भारत में हासिल किया गया विकास दशकों पीछे चला जाएगा। जलवायु परिवर्तन के असर को कम से कम करने के लिए हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे शहर जलवायु के प्रति लचीले बनें, हम जलवायु के अनुकूल खेती की पद्धति अपनाएं । तथा उर्जा दक्षता और अक्षय उर्जा की उपलब्धि में बढ़ोतरी के लिए नवीन तरीकों की खोज करें।
तापमान में वृद्धि से गरीबी कम करने का काम भी धीमा होगा। क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से हर किसी के जीवन पर असर पड़ेगा लेकिन इसका सबसे अधिक असर उन गरीबों पर होगा जो वर्षा सिंचित खेती पर ही ज्यादा आश्रित हैं या शहरी झुग्गियों में रहते हैं। 2040 तक पृथ्वी के तापमान 2 डिग्री तक वृद्धि से दक्षिण एशिया में फसल उत्पादन कम से कम 12 प्रतिशत कम हो सकता है । इसके लिए प्रति व्यक्ति मांग पूरी करने के लिए आयात को जलवायु परिवर्तन के पहले की तुलना में दुगुना करना पड़ेगा। भोजन की उपलब्धता घटने से स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ जाएंगी जिनमें बच्चों में बोनापन होना शामिल है। जलवायु परिवर्तन से पहले की स्थिति की तुलना में 2050 तक बच्चों में बोनापन होने की प्रक्रिया 35 प्रतिशत बढ़ सकती है।
ग्लेशियर पिघलने और बर्फ कम होने से भी स्थायी और विश्वसनीय जल संसाधनों को गंभीर जोखिम हो सकता है। गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियां बर्फ और ग्लेशियर के पिघले पानी पर बहुत अधिक निर्भर हैं जो जलवायु परिवर्तन के लिए अतिसंवेदनशील है। ग्लेशियर पिघलने और बर्फ कम पड़ने का इन नदियों पर अधिक असर पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में कम हिमपात वाले वर्षों की संख्या बढ़ने का अनुमान है। तापमान में 2 डिग्री तक वृद्धि होने से पहले ही इस तरह की घटनाएं बढ़ जाएंगी। इससे बाढ़ आने की आशंका और कृषि पर खतरा बढ़ जाएगा।
भारत सरकार के सहयोग से विश्व बैंक जलवायु परिवर्तन के वर्तमान तापमान वृद्धि के रुझानों के असर से बचने की क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहा है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में विश्व बैंक की सहायता से चलाई जा रही परियोजनाओं से स्थानीय समुदायों को अपने जल क्षेत्रों के बेहतर संरक्षण में मदद मिल रही है। इससे खेती के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ने और अधिक आय देने वाली फसलों को उगाने में किसानों की मदद, अल्प जल संसाधनों के कुशल इस्तेमाल और कृषि व्यवसाय स्थापित करने में समुदायों को मदद मिल रही है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन सहित विश्व बैंक समर्थित ग्रामीण आजीविका परियोजनाओं से भी जल संरक्षण और दक्षता, भूमि संरक्षण की पद्धतियों इत्यादि के एकीकरण में मदद मिल रही है। बैंक भारत में पर्यावरण के रूप से दीर्घकालिक जल विद्युत के विकास के साथ प्रायोगिक परियोजनाओं के जरिए राष्ट्रीय सौर और ऊर्जा दक्षता मिशन को भी समर्थन दे रहा है।