इस बार प्रभाष जोशी स्मारक व्याख्यान देश के रक्षामंत्री आदरणीय राजनाथ सिंह जी देंगे। विषय होगा ‘लोकतंत्र में संसदीय मर्यादा’। अध्यक्षता प्रभाष परंपरा न्यास के अध्यक्ष बनवारी जी करेंगे। कलापिनी कोमकली का भजन होगा। यह खबर मैने सोशल मीडिया के जरिए प्रभाष जी के साथ काम कर चुके लोगों को दी। मैने तो खुशी खुशी खबर दी थी, लेकिन मुझे नहीं पता कि इस खबर से कइयों के पेट में तेज का दर्द उठने लगेगा।

ओम थानवी को तो दर्द से रहा नहीं गया, ट्विटर एक पोस्ट ही दे मारी। उन्हें मेरे द्वारा निमंत्रण देने पर भी एतराज था, क्योंकि मै भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हूं, जबकि मैं यह काम पहले स्मारक व्याख्यान से कर रहा हूं। ओम थानवी जी को प्रभाष जोशी जी का 29 दिसंबर 2002 का कागद कारे पढ़ना चाहिए। उसमें वह लिखते हैं कि कैसे वह भैरोंसिंह शेखावत जी को पीछे पड़कर एक कार्यक्रम के लिए इंदौर ले गए थे। ओम थानवी जी तब तो बाबरी भी जमींदोज हो चुकी थी। यही नहीं मैने एबीवीपी के कार्यक्रमों में प्रभाष जोशी को मुख्य वक्ता के रूप में सुना है। आपको पता होना चाहिए एबीवीपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषांगिक संगठन है। दरअसल ओम थानवी की यह प्रतिक्रिया उनके जड़ हो चुके होने की सूचना है, या फिर कांग्रेसी नमक का कर्ज उतारने पर ऊतारू हैं।

ओम थानवी जी को इस बात पर एतराज है कि जिन प्रभाष जोशी जी ने बाबरी ढांचे के ध्वंस के खिलाफ मोर्चा खोला उनके नाम पर बने प्रभाष परंपरा न्यास के कार्यक्रम में भाजपा से जुड़े लोग ही आते हैं। उन्होंने अब तक के कार्यक्रम में आने वाले लोगों की सूची ही गिना डाली। लेकिन यहां भी उन्होंने धूर्तता की, सूची में उनके एजेंडे पर जो फिट नही बैठ रहा था उनका नाम नही लिया। आधे नाम निगल लिए।

विडंबना देखिए अशोक गहलोत इन्हें राजस्थान ले गए थे पत्रकारों की नई पीढ़ी तैयार करने के लिए। तैयारी तो अच्छी कराई होगी, एजेंडे के हिसाब से सूचना देनी है। ओम थानवी जिन नामों को निगल गए उनकों मैं आप सभी से साझा कर देता हूं, पहला प्रभाष जोशी स्मारक व्याख्यान प्रो.सुधीर चंद्र ने ‘गांधी एक असंभव संभावना’ विषय पर दिया था। दूसरा व्याख्यान उस समय के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने ‘तीसरे प्रेस आयोग की जरूरत’ विषय पर दिया था। जाने-माने पत्रकार बीजी वर्गीस जी ने ‘आज का मीडिया’, गोपाल कृष्ण गांधी जी ने ‘विपक्ष, विरोध और विसम्मति’, पी.साईनाथ ने ‘किसान के संकट और मीडिया’ गिरिराज किशोर जी ने ‘बा और बापू’ विषय पर प्रभाष जोशी स्मारक व्याख्यान दे चुके हैं। शीला दीक्षित भी एक स्मारक व्याख्यान में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हो चुकीं है। लेकिन राजनाथ सिंह के नाम से पेट में कुछ ज्यादा दर्द उठा।

आदरणीय राजनाथ सिंह जी देश के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं, उनकी बातचीत और व्यवहार में एक मर्यादा है, कर्यकर्ताओं के लिए सहज है, चाहे वह किसी भी दल का ही क्यों न हो। लोकतंत्र में संसदीय मर्यादा का निर्वहन करते आएं हैं। ‘लोकतंत्र में संसदीय मर्यादा’ विषय के साथ वही न्याय करेंगे। इसलिए ये प्रतिक्रियाएं बेतुकी हैं, या यूं कहें बंद होते दिमाग का परिणाम। हम भी गलत हो सकते हैं क्योंकि मेरे दिमाग में उन्हें लेकर एक संपादक और पत्रकार की छवि है, लेकिन वो तो कबके कांग्रेसी कार्यकर्ता बन चुके हैं। राहुल गांधी से प्रेरणा ले रहे हैं। इसलिए वो खबर मिलते ही विचलित हो गए। खैर कोई नही यह विचलन समय के साथ शांत हो जाएगी। लेकिन एक संपादक की फिसलन हम सब सरेआम देख रहे हैं।

 

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