सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर को एक बड़ा फैसला सुनाया। इसका प्रभाव देशव्यापी होगा। सुप्रीम कोर्ट के सामने बहुत पहले एक अपील आई। उसमें न्याय की गुहार थी। जगह-जगह राज्य सरकारें बुलडोजर चला रही थी। अपराधियों को सबक सिखाने के लिए यह राज्य सरकारों ने एक तरीका निकाला था। वह फटाफट न्याय का था। उससे न्याय की प्रक्रिया न्यायालय से हटकर पुलिस और प्रशासन के हाथ में आती जा रही थी। इसे रोकने के लिए ही कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नया दिशा-निर्देश दिया।
इसमें पांच बातें हैं। एक, बिना पूर्व सूचना के किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं तोड़ सकते। जो आरोपी है उसे 15 दिन पहले नोटिस देना होगा। दो, क्यों तोड़ रहे हैं, इसका आधार लिखना होगा। तीन, आरोपी को समय देना होगा कि वह आदेश को कानूनी तौर पर चुनौती दे सके। चार, अगर चुनौती नहीं देना चाहते तो घर खाली करने के लिए समय दिया जाए। पांच, इसमें जो अधिकारी मनमानी करेंगे उनसे मुआवजा वसूला जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में संतुलन बनाए रखा है। कुछ लोगों के लिए यह निर्णय कठोर होगा तो वहीं उन लोगों के लिए यह देवदूत से कम नहीं होगा जो उन्हें निर्भय बनाता है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को न्याय पाने का रास्ता खोला है। हर आरोपी अपराधी नहीं होता। एक नागरिक को न्याय पाने का अधिकार है। शासन यह नहीं निर्धारित कर सकता कि एक व्यक्ति जो आरोपी है उसे वह बुलडोजर से सजा दे सकता है।
शासन आरोप लगा सकता है। न्यायालय ही यह निर्धारित कर सकता है कि वह जो आरोपी है वह अपराधी है या नहीं है। संविधान-75 से पहले इस फैसले से संविधान की निर्धारित प्रक्रियाओं में नागरिक की आस्था बढ़ेगी। यह प्रश्न अपनी जगह बना रहेगा कि न्याय जब चाहिए तब मिलता है या नहीं। न्याय में देर भी अन्याय है। वह अन्याय बुलडोजर से थोड़ा कम है।