लोकसभा का चुनाव चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी अपने दस साल के कार्यकाल का लेखा-जोखा जनता के सामने रख रही। मोदी सरकार अपने किए गए कामों को गिना रही। विकास की बातें हो रही। दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बनने तक की कहानी सुनाई जा रही। लेकिन जिस विषय पर सबसे ज्यादा बात होनी चाहिए, उस पर चर्चा ही नहीं हो रही। वह विषय है मोदी कार्यकाल की संवैधानिक यात्रा कैसी रही। नए भारत को समझने के लिए मोदी सरकार की संवैधानिक यात्रा कैसी रही इसे समझना जरूरी है। पुस्तक ‘CONSTITUTION JOURNEY: AN OVERVIEW FROM 2014-2024’ मोदी सरकार की संवैधानिक यात्रा को समझाने में मदद करेगी। पुस्तक को ऋृषिराज सिंह और प्रिंस शुक्ला ने लिखा है। प्रस्तावना जाने-माने पत्रकार और इंदिरागांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने लिखी है। रामबहादुर राय की हाल में पुस्तक ‘भारतीय संविधान अनकही कहानी’ का प्रकाशित हुई थी, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया था। आपसे हम लोकनीति केन्द्र पर इस किताब की प्रस्तावना साझा कर रहे हैं
इस पुस्तक का शीर्षक होना चाहिए-मोदी का संवैधानिक दशक। यह पुस्तक संविधान के पंड़ितों की नजर में भी बहुत महत्वपूर्ण समझी जाएगी। जो जानता है, वह पंड़ित होता है। संविधान को अच्छे से जानने वालों को यहां पंड़ित कहा है। लेकिन इसे लिखने का श्रम और साहस जिन दो छात्रों ने किया है, वे कानून के छात्र हैं। यह स्वयं में एक सराहनीय और सूझ-बूझ की पहल है। इसे कई तरह से देखा-समझा जा सकता है। जैसे, जो पहला प्रश्न किसी के भी मन में इस पुस्तक को पढ़ते हुए पैदा होगा, वह यह कि पांच अध्यायों में बटी इस पुस्तक का क्या कोई संदेश है? दूसरा प्रश्न हो सकता है कि इन्हीं पांच विषयों का चयन लेखकों ने क्यों किया? तीसरा कि बड़े-बड़े लोग जो कानून के बहुत जानकार समझें जाते हैं, वे भी संविधान की महिमा और माया में स्वयं नहीं पड़ते। ऐसा जहां वातावरण हो, वहां एक पुस्तक की रचना कर संविधान पर उठ रहे राजनीतिक प्रश्न को सुलझाने की यह पहल क्या चुनावी महाभारत में एक उपनिषद जैसा नहीं है?
ऐसे बहुत सारे प्रश्नों की लंबी सूची इस पुस्तक के इर्द-गिर्द खड़ी की जा सकती है। जितने प्रश्न होंगे, उतने ही उसके समाधानकारक उत्तर की खोज होगी। प्रश्न अगर सिर्फ प्रश्न के लिए है, तो वह विवाद का कारण बनता है। लेकिन प्रश्न अगर समझने के लिए है, तो वह समाधान का कारण बनता है। इस पुस्तक को देखने की यह भी एक दृष्टि होनी चाहिए कि क्या यह सिर्फ प्रश्न उठाती है? क्या इसमें कुछ प्रश्नों का समाधान है? इसे पढ़ते हुए पाठक अनुभव करेगा कि इसमें दोनों बातें हैं। प्रश्न भी हैं और उनके समाधान भी हैं। यह पुस्तक इस रूप में निराली है। यानी मौलिक है। इसकी मौलिकता को इसके पहले अध्याय के शीर्षक से अनुभव कर सकते हैं। जानना और अनुभव करना, दोनों दो बातें हैं। यह अवस्था का प्रश्न है। इसे मानसिक स्तर के रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है। जब जानते हैं और जान पाते हैं, उसके बाद अगर अनुभव करते हैं, तो उससे एक आनंद की सृष्टि होती है।
ऐसी ही आनंद की सृष्टि का दर्शन पहले अध्याय में है। इसका शीर्षक है-वी द पीपुल ऑफ भारत। यह नए भारत की जो हवा बह रही है, उसकी देन है। नहीं तो इसका घिसा-पिटा शीर्षक होता-वी द पीपुल ऑफ इंडिया। इनमें सिर्फ अर्थ भेद ही नहीं है, मूल्य भेद भी है। भारत उच्चतर जीवन मूल्य के बोध का परिचायक है। जिसमें स्व-बोध है। इसकी ही अभिव्यक्ति इस अध्याय में इन लेखकों ने की है। कैसे? यह जानने का विषय है। पुस्तक के पहले खंड में उन संवैधानिक संशोधनों का विवरण है जो नरेंद्र मोदी सरकार के एक दशक के शासनकाल में किए गए। पहला ही संशोधन सुधार की दिशा में उठा सराहनीय कदम था। लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया।
उस संशोधन पर अगर जनमत संग्रह कराया जाए तो ज्यादा संभावना है कि लोग उस संशोधन को अपने पूरे मन से सर्मथन देंगे। संशोधन क्या है, क्यों है और क्यों उसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया, यह सब इस पुस्तक को पढ़ते हुए जाना जा सकता है। इसके संवैधानिक और कानूनी पक्ष इसमें आ गए हैं। जो बातें लेखकों ने नहीं उठाई है और यह समझकर नहीं उठाया होगा कि यह विषय की परिधि से बाहर है। उसका यहां उल्लेख जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति का यह प्रश्न है। इसके बारे में संविधान स्पष्ट है। लेेकिन राजनीति अस्थिरता के दौर में धीरे-धीरे सुप्रीम कोर्ट ने वह काम अपने जिम्मे ले लिया, जो संविधान में राष्ट्रपति का है। क्या ऐसा कार्य संविधान की भावना के विपरीत नहीं है? इस पर बहुत बहस हो चुकी है और भविष्य में भी होती रहेगी। लेकिन जो कमाल की बात है उस तरफ ध्यान कम दिया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहीं से और कोई भी नहीं मानेगा कि वे दृढ़ निश्चयी नहीं हैं। इसके विपरीत यह धारणा अपने अनुभव से देश और दुनिया ने बना ली है और वह सही बनी है कि वे जो ठान लेते हैं वह करके दिखा देते हैं। प्रश्न यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिसे पलट दिया, उसे तकरार का विषय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्यों नहीं बनाया!
इसलिए नहीं बनाया होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा को ऊंचा स्थान देने का उनका स्वभाव है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने संसद से विधिवत और सर्वसम्मत पारित कानून को नकार कर संविधान का पुनर्लेखन कर दिया। क्या संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार दिया है? उसे व्याख्या का अधिकार है। पुनर्लेखन का अधिकार जनता से निर्वाचित संसद को है। संसद जनता का प्रतिनिधित्व करती है। इसी तरह पहले खंड में अन्य संशोधनों का विवरण और महत्व बताया गया है। ये संशोधन शासन को अधिक पारदर्शी और जनहित में कार्य कर सकने में समर्थ बनाते हैं।
हर संशोधन का अपना महत्व है। पुस्तक का दूसरा खंड इस बात का विवरण देता है कि कैसे नरेंद्र मोदी सरकार ने अनेक निर्णयों से महिला सशक्तिकरण को बढ़ाया है। संविधान निर्माताओं ने जो वायदे किए थे और जिन्हें राजनीतिक कारणों से स्थगित किया जाता रहा है, उसे इस सरकार ने अवरोधरहित मार्ग दिया। एक राजमार्ग बनाया और उस पर खुले आकाश में तेज कदम बढ़ाकर चलने का अवसर भी दिया और निमंत्रण भी।
इस पुस्तक का तीसरा खंड कश्मीर से संबंधित है। इसमें कश्मीर का सक्षिप्त इतिहास भी है। वह रूपांतरित कश्मीर को समझने में सहायक है। यह रूपांतरित कश्मीर क्या है? यही कानूनी नजर से देखने और दिखाने के लिए इस खंड की लेखकों ने रचना की है। यह एक सराहनीय प्रयास है। ऐसा कोई समय और साल नहीं गुजरता जब कश्मीर पर एक नई पुस्तक न आती हो। यह है-कश्मीर होने का अर्थ। लेकिन 2019 में कश्मीर होने का अर्थ बदल गया। इस प्रकार एक जम्मू कश्मीर और लद्दाख वह है जो 1947 से जाना जाता रहा है। उसका अपना महत्व है। रूपांतरित कश्मीर वह है जो 2019 में घटित हुआ। जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।
एक जगह इसका उल्लेख है कि 4 अगस्त, 2019 को राज्य में धारा-144 लागू की गई। यह धारा ऐसी है जिससे हर नागरिक परिचित है। इसका संबंध शासन की अग्रिम सावधानी से है। उपद्रव की आशंकाएं जहां होती हैं वहां इसे पहले लागू किया जाता है। जिस दिन इसे लागू किया गया तो लोग अटकलें लगाने लगे कि आखिर होगा क्या! उसका उत्तर मिला, अगले दिन। वह पूरा वर्णन अच्छे ढंग से क्रमवार इस पुस्तक के प्रासंगिक खंड में आ गया है। रोचक बात दूसरी है। शायद ही कोई अभागा होगा जो धारा-370 से अनजान हो। लेकिन कम ही लोग हैं, जो यह जानते हों कि उस धारा के अवसान की अंदरूनी कहानी क्या है।