राम कथा वाचक पिछले कुछ समय से विवादों में फंसते रहें हैं। पहले मुरारी बापू विवादों में घिरे फिर कुमार विश्वास, जो स्वयं को कवि कहलाना भी पसंद करते हैं। उन विवाद के विषयों को समझना यहां ज्यादा जरूरी हो जाता है कि क्या ये विवाद इन दोनों के विरुद्ध किसी षड्यंत्र की उपज है या इनके द्वारा ही की गई गलतियों का दुष्परिणाम ?
उन घटनाक्रमों के निरीक्षण से स्पष्ट हो जाता है कि इन दोनों विवादों में अवसरों पर दोनों कथावाचकों का ही योगदान है। वो कहते हैं ना आ बैल मुझे मार। इस मामले में भी यही हुआ। पहले बात करें ताजा घटना की जिसमें कुमार विश्वास फंसे। कवि महाशय की अच्छी खासी श्रीराम कथा मध्य प्रदेश सरकार के सौजन्य से तीर्थ नगरी उज्जैन में चल रही थी,कि पता नहीं कहां से कुमार विश्वास की बुद्धि पर शनि सवार हो गया और वे विवाद में पड़ गये। व्याख्याता रहे कुमार विश्वास, जो अपने शिक्षक धर्म से अब तक भागते ही रहे हैं, ने नयी व्याख्या कर दी कि कम्युनिस्ट यानी वामपंथी लोग कुपढ़ होते हैं और आरएसएसएस यानी संघ वाले अपढ़ होते हैं ? ये अचानक ज्ञान उन्हें जिस घटना से प्राप्त हुआ उसका संदर्भ देते हुए स्वयं कुमार विश्वास बताते हैं कि उनके साथ काम करने वाला एक नौजवान जो संघ से जुड़ा है और अधिक बोलता है ? ने मुझसे यानी कुमार विश्वास से कहा कि आज बजट आने वाला है और मुझे सुनना है कि वित्त मंत्री क्या बताती हैं।तब सहृदयी कुमार विश्वास ने उस युवक को कहा कि, ‘तुम तो श्रीराम कथा से जुड़े हो, बताओ राम राज्य में बजट कहां आता था ? जो तुम इस कलयुगी बजट को सुनकर समय खराब करना चाहते हो। अरे श्री राम जी ने तो अपने छोटे भाई भरत को वनवास के दौरान चित्रकूट में समझाया था कि राज्य से कर कैसे वसूलना चाहिए? हम सूर्य वंशी हैं. हमें कर भी सूर्य की भांति ही लेना चाहिए। जैसे गर्मियों के मौसम में सूर्य नदियों, तालाबों और समुद्र और अन्य जल स्थानों आदि से जल एकत्रित कर लेता है और किसी को पता तक नहीं चलता। फिर वर्षा ऋतु में वही जल हम सबको वापस दे देता है, जहां जरूरत होती है वहां।जैसे सड़क, चिकित्सालय, विद्यालय के रूप में।’
ये सब जो कुमार विश्वास ने कहा, यहां तक तो कोई गड़बड़ी नहीं थी। गड़बड़ी वहां शुरू हुई जब वे बोले कि मेरी बताई बात को निर्मल मन से निर्मला जी और सब सुने। कम्युनिस्टों को उन्होंने कुपढ़ कहा कि इन लोगों ने पढ़ा तो बहुत है पर सब उल्टा पढ़ा है। वहीं संघ वाले अपढ़ हैं इन लोगों ने पढ़ा कुछ नहीं हैंl कहते हैं हमारे वेदों में ये लिखा है वो लिखा है, पर वेद देखें नहीं हैं, पढ़ें तो हैं ही नहीं। उनके इतना कहने पर बहुत से इनके जैसे लोग जो यह सुन रहे थे, हंस पड़े और दूसरों को समझ आ गई कि अब मट्टी पलीत हो गई कुमार विश्वास की।
जिस विश्वास के साथ ये बात कुमार ने कही कि संघ वाले अपढ़ होते हैं, उन्हें वेदों का कुछ नहीं पता तो वे भी यह बतायें कि उन्हें ये बातें कहां से पता चली ?अगर संघ वालों ने वेद नहीं पढ़े हैं तो शायद स्वयं कुमार विश्वास ने पढ़े होंगे ? अगर पढ़ें होते तो सबसे पहले वे श्रीराम जी की कथा वाचन इस ढंग से करते ही नहीं। इसलिए हाथ कंगन को आरसी क्या? प्रतीत होता है कि कुमार विश्वास ने भी वेद तो नहीं पढ़े। वैसे भी वर्तमान भारत में ज्ञान की स्थिति दयनीय है भी। बहुत से हिन्दुओं को ये पता नहीं है कि श्लोक और मंत्रों में क्या अंतर है? वेदों में श्लोक हैं या मंत्र हैं? गीता, महाभारत, रामायण और अन्य नीति ग्रंथों में श्लोक हैं तथा वेदों में मंत्र हैं। वेद मंत्रों से आप तीन प्रकार का कार्य कर सकते हैं, अधिभौतिक, अधिदैविक तथा आध्यात्मिक। अर्थात् वैज्ञानिक अनुसंधान तथा पूजा अर्चना, ये सुविधा सिर्फ वेद अध्ययन करने वाले को ही प्राप्त है, बाकी लोगों को नहीं है।
अब फिर कुमार विश्वास पर आते हैं जब आप श्रीरामजी के जीवन का अध्ययन करते हैं तो सबसे पहले सौम्यता और मर्यादित जीवन में ढलने का भाव उत्पन्न होता है। वहीं रावण के चरित्र को देखने समझने से यह सीख मिलती है कि ज्ञान और विद्वत्ता में उसका उस युग में कोई सानी नहीं था। पर जहां तक चरित्र और मर्यादा का प्रश्न है, तो सबसे कमजोर वहीं व्यक्ति ज्ञानी रावण सिद्ध हुआ। दूसरा, अहंकार का दुर्गुण सर्वाधिक रावण में ही रहा था। यही तो महत्वपूर्ण ज्ञान सीखना है रावण के चरित्र से। कथावाचक कुमार विश्वास की अभिव्यक्ति में रावण के समान दम्भ दिखाई देता है। जो भी बोलते हैं बहुत गवेषणात्मक ढंग से परन्तु ज्ञान के अहंकार के साथ.
समझ नहीं आता कवि सम्मेलन के मंचों से राजनीति और फिर अचानक ये श्रीराम कथा वाचन कार्य में कैसे घुस गये? इससे पहले से मुरारी बापू रामकथा करते रहें हैं। उनके शुरुआती दिनों में उन्हें सुनने वाले मुरारी बापू की वाणी में साक्षात सरस्वती का वास बताते थे। कुमार विश्वास अनेकों बार मुरारी बापू के कथा पंडालों में काव्यपाठ करने गये। फिर उन्हीं मुरारी बापू ने व्यासपीठ पर बैठकर अली-मौला पाठ शुरू कर दिया और तर्क दिया कि मेरे मुंह से भगवान के आशीर्वाद से अपने आप अली-मौला निकल जाता है। पता नहीं, कब तक हिन्दू धर्म से जुड़े इन स्वघोषित संत लोगों की अक्ल भ्रमित रहेगी। इसके पीछे का कारण सिर्फ अर्थ उपार्जन ही है। कुमार विश्वास का श्रीराम कथा वाचक बन जाना भी इसी भाव से प्रेरित लगता है। संभवतः बापू जी की अलोकप्रियता के बाद खाली हुए स्थान को भरने की कोशिश में कुमार विश्वास लग गये लगते हैं। परंतु मध्य प्रदेश वाले घटना-क्रम में इनकी परिणीति भी वही बापू जी की तरह ही बेइज्जती वाली हुई। क्योंकि ये कथा वाचक लाख रामचरित का प्रवचन कर लें, स्वयं श्री राम चरित को आत्मसात नहीं करते। दूसरी बात जो समझ में आती है वह है अर्थ उपार्जन। मेरे अर्थ उपार्जन के इन स्वछंद तरीकों से धर्म की कितनी हानि होगी, इस बात का कोई मूल्यांकन नहीं करते। लोगों की श्रद्धा, भावना, आस्था का जमकर दोहन करने में भी ऐसे कथा वाचक नहीं चूकते। भावना प्रधान हिन्दू समाज की भावनाओं को हरने की यह मनोवृत्ति बहुत हानिकारक है। वो तो इन लोगों को वाकई ईश्वर ही दंडित करता है, इस तरह अनर्गल इनके मुंह से बुलवा कर।
देश के समस्त हिन्दू धर्मवलंबियों को ऐसे स्वयंभू संतों से सावधान रहना चाहिए कि कही इस तरह के प्रवचनकारों में साधु वेश में ये कालनेमी तो नहीं हैं. अतः इनको परखना जरूरी है। धर्म को धन उगाही का माध्यम बनने से रोकना जरूरी है। ये एक ऐसी कुरीति है जिसका उन्मूलन करना जरूरी है. हिंदू धर्म के समक्ष ऐसी असहज परिस्थितियां किन्ही विधर्मी ने नहीं किया स्वधर्मियों ने ही किया है। इनके लिए सबसे उचित उक्ति तो यही है, ‘मुंह में राम पर दिमाग में रावण, मुंह में राम पर गड़बड़ काम।’
[लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं. उपरोक्त उनके निजी विचार हैं.]