विश्व विरादरी में चीन घिरता जा रहा है। उसके अपने कारनामें धीरे-धीरे बाहर आ रहे हैं। जिस कोरोना से पूरी दुनिया परेशान है उसे चीन की चाल समझी जा रही है। यही कारण है कि कूटनीतिक और कारोबारी विश्व में जो बात दबे छुपे कही जाती थी वह अब खुलेआम कही जाने लगी है। जापान ने चीन से कारोबार समेटने वाली अपनी कंपनियों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की। अमेरिका ने भी अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की बात कहना शुरू कर दिया है।
चीन में एप्पल जैसी कंपनियों ने भारी निवेश किया है। एप्पल का चीन अमेरिका और यूरोप के बाद तीसरा सबसे बड़ा बाजार भी बन गया है। इंटेल और डेल कंप्यूटर और टेक्सास इंस्ट्रूमेंटस ऐसी ही कंपनियां हैं जिन्होंने चीन में भारी निवेश किया है। चीन में बड़ी संख्या में गैर-पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी काम करती हैं। जापानी कार निर्माता टोयोटा, मित्सुबिशी, और सुबारू और विशाल कोरियाई बहुराष्ट्रीय कंपनियों सैमसंग, हुंडई, एलजी (लकी गोल्डस्टार), और किआ ने बड़ा निवेश किया है। ऐसे में विश्व विरादरी क्या करेगी, इसका इंतजार करना है। साथ ही जो संकेत आ रहे हैं उसके लिए निवेश का विकल्प भारत बन सकता है। सस्ता श्रम भारत उपलब्ध करा सकता है।यह भारत के लिए चीन के विकल्प के तौर पर स्थापित होने का एक सुनहरा अवसर आता दिख रहा है। आम बजट 2020-21 में वित्त मंत्री ने पहले ही यह मंशा जता दी है कि भारत अपनी तमाम रोजमर्रा उत्पाद जरूरतों के लिए चीन पर अपनी निर्भरता खत्म करेगा। इस बारे में दुनिया में चल रही कवायदों को देख भारत सरकार आगे भी अपनी नीतियों में बड़े बदलाव की तैयारी में है।
चीन से दूरी बनाने वाले देशों को अपने यहां निवेश के लिए उनके अनुकूल वातावरण बनाना प्राथमिकता होगी। नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री एबी शिंजो के बीच शुक्रवार को हुई टेलीफोन वार्ता को इसी क्रम में देखा जा रहा है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक दोनो नेताओं के बीच कोविड-19 के खिलाफ साझा सहयोग पर बात हुई। साथ ही कहा गया कि महामारी के बाद के माहौल में साझा आर्थिक सहयोग के मुद्दों पर भी चर्चा हुई। दोनो देशों में पहले ही जापान को एक लाख प्रशिक्षित श्रमिक देने को लेकर समझौता हुआ है। सनद रहे कि इस हफ्ते की शुरुआत में चीन में काम करने वाली जापानी कंपनियों को वहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर जापान में उत्पादन शुरू करने के लिए जापान सरकार ने 200 करोड़ डॉलर यानी करीब 15,000 करोड़ रुपये का फंड दिया है।
जापान ने चीन से बाहर किसी अन्य देश में जाकर उत्पादन करने पर उन जापानी कंपनियों को 21.5 करोड़ डॉलर की मदद का प्रस्ताव रखा है। यूएस इंडिया स्ट्रैटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम (यूएसआइएसपीएफ) के मुताबिक अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वार के चरम पर चीन में उत्पादन करने वाली 200 अमेरिकी कंपनियां पिछले साल ही भारत में निवेश की इच्छा जता चुकी हैं। अब कोरोना वायरस की उत्पत्ति के लिए चीन के जिम्मेदार होने से इन कंपनियां का विकल्प भारत हो सकता है। जानकार मानते हैं कि निश्चित रूप से भारत के लिए निवेश लाने का बड़ा अवसर है। दुनिया में चीन के खिलाफ हवा बह रही है। इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल जैसी जापानी और अमेरिकी कंपनियों को लाने में सफलता इसलिए भी मिल सकती है क्योंकि हाल में ही सरकार ने इन क्षेत्रों में निवेश के लिए 30,000 करोड़ रुपये से अधिक के पैकेज का एलान किया है। लेकिन यह तभी संभव हो सकता जब केंद्र और राज्य दोनों ही सरकार एकजुट होकर काम करेंगी क्योंकि सिर्फ केंद्र की तरफ से तत्परता दिखाने से काम नहीं बनने वाला है।