हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर स्पष्ट बहुमत हासिल किया और राज्य में जीत की हैट्रिक लगाई. नतीजों में बीजेपी को 48 और कांग्रेस को 37 सीटें मिली हैं. 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है. इन चुनावी नतीजों ने एक बार फिर एग्ज़िट पोल और उनको करने वाली एजेंसियों की विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में ला दिया है. ऐसा पहली बार नहीं है जब नतीजों के बाद एग्ज़िट पोल करने वालीं सर्वे एजेंसियों को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.
कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे तब भी एग्ज़िट पोल्स को लेकर कमोबेश ऐसी ही स्थिति थी क्योंकि नतीजे एग्ज़िट पोल से अलग थे. पिछले साल के अंत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए थे. यहां भी नतीजे एग्ज़िट पोल के मुताबिक़ नहीं आए थे. कोई भी पोल करने से पहले वोटरों के पास जाना होता और कुछ सवाल पूछने होते हैं. तो कम से कम सभी एजेंसियों को ये सवाल, वोट शेयर और अन्य जानकारियां सामने रखनी चाहिए क्योंकि इसके बाद ही हम सही आकलन कर सकते हैं.
सी वोटर भारत में चुनाव संबंधी सर्वे के लिए एक जानी-मानी एजेंसी है और दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में सीवोटर ने इंडिया टुडे मीडिया समूह के साथ एग्ज़िट पोल सर्वे किया था. एग्ज़िट पोल से सीटों की अपेक्षा सही नहीं है क्योंकि कई बार यह सीधा न होकर टेढ़ी खीर होता है. ब्रिटेन में भी सिर्फ़ वोट शेयर बताया जाता है, सीटों की संख्या नहीं.एजेंसियों का काम वोट को सीट में बदलने का नहीं है यह काम सांख्यिकीविद करते हैं. सीवोटर ने हरियाणा में 10 साल सत्ता रहने के बाद बीजेपी के वोट शेयर बढ़ने की बात कही है. कांग्रेस का भी वोट शेयर बढ़ने की बात कही है क्योंकि वो अन्य क्षेत्रीय दलों के वोटरों को अपने पाले में खींच रही है. आम धारणा यह कहती है कि जिसे वोट ज़्यादा उसकी सीटें ज़्यादा लेकिन फ़र्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में ऐसा नहीं होता है. आज हरियाणा में कांग्रेस को बीजेपी के बराबर वोट मिला लेकिन सीटें नहीं मिलीं. कर्नाटक में बीजेपी जब-जब सत्ता में आई तब-तब कांग्रेस का वोट शेयर ज़्यादा रहा.
सर्वे एजेंसियों को अपनी क्षमताओं को ध्यान में रखकर बहुत साफ़ बोलना चाहिए कि वोट शेयर, मुद्दे और लोकप्रियता के मानकों पर ये आंकड़े सही हैं लेकिन यह ज़रूरी नहीं वोट शेयर जब सीट के आंकड़ों में बदलेगा तब उतना ही सटीक हो. दुर्भाग्य यह है कि वोट शेयर कोई बताए न बताए लेकिन हर कोई सीट शेयर बताने पर आमादा होता है. सारे एग्ज़िट पोल्स में दो या तीन ही ऐसे होंगे जिन्होंने वोट शेयर बताया हो. साथ ही वोट को सीट में बदलने वाले अवैज्ञानिक हिस्से को भी खुलकर दर्शकों या पाठकों को बताना चाहिए.”
मीडिया को चुनावी सर्वे के संबंध में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया की गाइडलाइन्स को फॉलो करना चाहिए और दर्शकों को बताना चाहिए कि एग्ज़िट पोल से क्या अपेक्षाएं रखनी हैं और क्या नहीं. अक़्सर जब एग्ज़िट पोल ग़लत साबित होते हैं तो एक बहस शुरू हो जाती है कि क्या इस तरह के पोल या सर्वे को बंद कर देना चाहिए?
अंग्रेज़ी भाषा के शब्द एग्ज़िट का मतलब होता है बाहर निकलना. इसलिए एग्ज़िट शब्द ही बताता है कि यह पोल क्या है. जब मतदाता चुनाव में वोट देकर बूथ से बाहर निकलता है तो उससे पूछा जाता है कि क्या आप बताना चाहेंगे कि आपने किस पार्टी या किस उम्मीदवार को वोट दिया है. एग्ज़िट पोल कराने वाली एजेंसियां अपने लोगों को पोलिंग बूथ के बाहर खड़ा कर देती हैं. जैसे-जैसे मतदाता वोट देकर बाहर आते हैं, उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया. मतदाताओं से मिली जानकारी का विश्लेषण करके यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि चुनावी नतीजे क्या होंगे. सी-वोटर, एक्सिस माई इंडिया, सीएनएक्स भारत की कुछ प्रमुख एजेंसिया हैं जो एग्ज़िट पोल करती हैं.
रिप्रेज़ेन्टेशन ऑफ़ द पीपल्स एक्ट, 1951 के सेक्शन 126ए के तहत एग्ज़िट पोल को नियंत्रित किया जाता है. भारत में, चुनाव आयोग ने एग्ज़िट पोल को लेकर कुछ नियम बनाए हैं. इन नियमों का मक़सद यह होता है कि किसी भी तरह से चुनाव को प्रभावित नहीं होने दिया जाए. चुनाव आयोग समय-समय पर एग्ज़िट पोल को लेकर दिशानिर्देश जारी करता है. इसमें यह बताया जाता है कि एग्ज़िट पोल करने का क्या तरीक़ा होना चाहिए. एक आम नियम यह है कि एग्ज़िट पोल के नतीजों को मतदान के दिन प्रसारित नहीं किया जा सकता है. चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से लेकर आख़िरी चरण के मतदान ख़त्म होने के आधे घंटे बाद तक एग्ज़िट पोल को प्रसारित नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा एग्ज़िट पोल के परिणामों को मतदान के बाद प्रसारित करने के लिए, सर्वेक्षण-एजेंसी को चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होती है.