मौसम बदलने के साथ ही उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का असर बढ़ने लगा है. इस प्रदूषण का सबसे ज़्यादा असर राजधानी दिल्ली और इसके आसपास रहने वाले क़रीब 3 करोड़ लोगों पर पड़ता है. सर्दियों की दस्तक के साथ ही दिल्ली और इसके आसपास के लोग क़रीब तीन महीने तक एक तरह के गैस चैंबर में ज़हरीली हवा के बीच सांस लेने को मजबूर होते हैं.इसका असर बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों पर सबसे ज़्यादा होता है. हालाँकि इन दिनों दिल्ली में प्रदूषण का असर इतना ज़्यादा होता है कि यह स्वस्थ इंसान को भी गंभीर बीमारियाँ दे सकता है.दिल्ली के प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट कई बार नाराज़गी जता चुका है. केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली और आसपास की राज्य सरकारें अलग-अलग दावे करती रही हैं, लेकिन इससे प्रदूषण के स्तर में कोई बड़ी राहत नज़र नहीं आती है.
सर्दियों में कम तापमान, हवा नहीं चलने और बारिश नहीं होने से प्रदूषण करने वाले कण ज़मीन की सतह के क़रीब काफ़ी कम इलाक़े में जमा हो जाते हैं. भारत की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में सभी देशों की राजधानी में सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर है. विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के 30 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर भारत में हैं जहां पीएम 2.5 की सालाना सघनता सबसे ज़्यादा है. स्टडी में पाया गया है कि प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल 20 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत होती है. दिल्ली में प्रदूषण पूरे साल रहता है लेकिन यह सर्दियों में सतह के काफ़ी क़रीब आ जाता है, जिसकी वजह से यह ज़्यादा दिखता है और ज़्यादा नुक़सान भी पहुँचाता है. प्रदूषण की कई वजहें हैं जिनमें निजी वाहनों की बड़ी तादाद, दिल्ली में निर्माण कार्य की बड़ी भूमिका है, इसमें पराली (खेतों में फसलों के अवशेष) जलाना भी शामिल है.
देश की राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के इलाक़ों में दिवाली के पहले ही एक्यूआई ‘बहुत ख़राब’ स्तर पर पहुँच गई है और इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी शुरू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए बने क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों पर तीखी टिप्पणी की है और कहा है कि ये किसी काम के नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है और नागरिकों के अधिकार की रक्षा करना केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य है.कोर्ट ने कहा कि पराली जलाने पर जुर्माने से संबंधित प्रावधानों को लागू नहीं किया गया है. हालाँकि दिल्ली की इस हालत और प्रदूषण के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार तीखी टिप्पणी कर चुका है.
साल 2019 में दिल्ली सरकार के ऑड-इवन स्कीम पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े किए थे.सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान वायु प्रदूषण को जीने का मूल भूत अधिकार का गंभीर उल्लंघन बताते हुए कहा था कि राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय अपनी ‘ड्यूटी निभाने में नाकाम’ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- ‘हमारी नाक के नीचे हर साल ऐसा हो रहा है. इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे, आप लोगों को मरते हुए नहीं छोड़ सकते.’ दिल्ली में उस साल हेल्थ इमरजेंसी भी लागू करनी पड़ी थी. साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में दिवाली में पटाखों पर पाबंदी लगा दी थी. पराली जलाना भारत में एक राजनीतिक समस्या है, इसलिए सरकारें इसके ख़िलाफ़ कदम नहीं उठा सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट को पराली जलाने की सैटेलाइट तस्वीरें मंगाकर पराली जलाने वालों के ख़िलाफ़ एक्शन लेना होगा. कोर्ट ने प्रदूषण को संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीने के अधिकार के ख़िलाफ़ माना है, तो ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ एक्शन ज़रूरी है.” पराली जलाने से प्रदूषण की समस्या में अचानक बढ़ोतरी होती है और ऐसा करना अपराध है तो इस तरह के अपराध करने वालों को कोई सरकारी लाभ नहीं मिलना चाहिए.
जहाँ साल 2016 में 143 दिनों तक एक्यूआई ख़राब से लेकर ख़तरनाक (सिवियर) की श्रेणी में रहा, वहीं पिछली सर्दियों 150 में 124 दिन हवा की गुणवत्ता इसी श्रेणी में पाई गई. डीपीसीसी यानी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी की वेबसाइट के मुताबिक़ दिल्ली में सर्दियों के दौरान पीएम-2.5 को बढ़ाने में बायोमास को जलाने का सबसे बड़ा योगदान रहा जो 25 फ़ीसदी के बराबर है. इसमें पराली जलाना भी शामिल है. सीएक्यूएम के मुताबिक़ सरकार ने दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए जो कदम उठाए हैं उसका असर हुआ है और प्रदूषण का औसत स्तर 2016 के मुक़ाबले कम हुआ है. हालाँकि अक्तूबर महीने के आसपास दिवाली और पराली की वजह से कुछ दिनों के लिए यह ज़रूर बढ़ जाता है.
डीपीसीसी के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण के पीछे दूसरे नंबर पर वाहनों का योगदान होता है और यह क़रीब 25 फ़ीसदी है. बीते कुछ साल में खेती में मशीनों के इस्तेमाल की वजह से यह समस्या बढ़ी है. मशीनों से खेती की लागत कम होती है और मज़दूरों की ज़रूरत भी कम हो जाती है. इससे खेती में पशुओं की ज़रूरत ख़त्म हो गई और अब उन्हें खिलाने के लिए पराली की ज़रूरत नहीं पड़ती है. बीजों की नई नस्ल, ज़्यादा गर्मी में सिंचाई के लिए पानी की ज़्यादा ज़रूरत से बचने के लिए भी एक फसल के बाद दूसरी फसल के लिए खेतों को जल्दी तैयार करना पड़ता है, इसलिए पराली को जला दिया जाता है.
ज़्यादा मज़दूरी देने से बचने के लिए पराली को जला दिया जाता है और यह समस्या क़रीब 10 साल पहले ज़्यादा बड़े स्तर पर शुरू हुई है. जब से पंजाब सरकार ने जून के महीने में अंडर ग्राउंड वॉटर से सिंचाई पर पाबंदी लगाई है, तब से किसान धान की कटाई के बाद अक्तूबर महीने के आसपास धान की कटाई के बाद पराली को जला देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत जल्दी तैयार हो जाए .
दिल्ली सरकार इस प्रदूषण को रोकने के लिए ग्रेडेड एक्शन प्लान भी लागू करती है. इसके तहत प्रदूषण के स्तर के हिसाब से निर्माण के काम पर रोक, होटलों और अन्य खान-पान की दुकानों पर कोयला जलाने पर पाबंदी लगाई जाती है. इसले अलावा इसमें आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर डीज़ल जेनरेटर के इस्तेमाल पर रोक जैसे कदम शामिल हैं. दिल्ली सरकार पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटना को एक बड़ी वजह बताती रही है, जबकि केंद्र सरकार इसके पीछे दूसरी वजहों को ज़्यादा ज़िम्मेदार मानती है.
पीएम यानी पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण की एक किस्म है. इसके कण बेहद सूक्ष्म होते हैं जो हवा में बहते हैं. पीएम 2.5 या पीएम 10 हवा में कण के साइज़ को बताता है. हवा में मौजूद यही कण हवा के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर ख़ून में घुल जाते है. इससे शरीर में कई तरह की बीमारी जैसे अस्थमा और साँसों की दिक्क़त हो सकती है.
प्रदूषण की वजहों और इसके असर की सारी जानकारी हर सरकार को है, लेकिन प्रदूषण को कम करने के लिए अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ठीक किया जाता है तो इसका असर कार और बाक़ी वाहनों के बिज़नेस पर पड़ेगा . दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के दूरगामी उपायों में ज़्यादा से ज़्यादा इलेक्ट्रिक वाहन, निर्माण के कार्य में उड़ने वाली धूल को रोकना और जीवनशैली को बदलना शामिल है. अक्सर लोग रोज़मर्रा की ज़िंदगी से प्रदूषण में योगदान को भूल जाते हैं जिसमें वाहनों के इस्तेमाल से लेकर कई कार्यों में लकड़ी को जलाना शामिल है, जैसे सर्दियों के दौरान ठंढ से बचने के लिए अलाव जलाना.