जब कोई बड़ा संकट आ जाता है तो जल्दी में कुछ रास्ता नहीं निकलता। एक उदाहरण मेरे सामने आता है। लहर है। समय-समय पर हर देश में लहर आती है। हमारे मजदूूर क्षेत्र में भी इसे हमने अनुभव कर लिया। लोग समझते नहीं कि लहर और स्थाई-शक्ति में अंतर क्या है? वे तो यह नहीं समझते उनके लिए सब एक हैं।
हमारे मजदूर क्षेत्र में हमने देखा भारतीय मजदूर संघ का काम बम्बई में शुरू हुआ। कोई हमको पूछता नहीं था। कोई सलाम नहीं करता था। और एक उस समय जार्ज फर्नाडिस बम्बई का नेता था और जार्ज की लहर थी। जो यूनियन खड़ी होती थी वह यह सोचता था कि हमको जार्ज ही प्रधान चाहिए। वह बादशाह था बम्बई के मजदूरों का।
लोग हमारे रमण भाई साहब, मनोहर भाई मेहता को पूछते थे कि तुम कहां खड़े हो? तुमको पांच मजदूर नहीं सलाम करते। बात सही है। पांच लोग हमको तो नहीं सलाम करते किंतु हमारे रमण भाई और मनोहर भाई कहते थे कि ये लहर है टल जाएगी। वह जल्दी थोड़े ही निकलती है। टाइम लग जाएगा। जैसे-जैसे टाइम लगे स्वयंसेवक ही हमारे भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ता को पूछने लगे कि अरे! निकल जाएगा, निकल जाएगा कब से लगा रखा है।
जार्ज फर्नांडिस का तो बोलबाला चल रहा है, जय-जयकार चल रही है तुमको तो कोई पूछता तक नहीं। हमारे लोगों ने कहा भाई पूछेंगे आप फिक्रमत कीजिए। और आज स्थिति ऐसी है कि बम्बई में जार्ज एक भी इंडस्ट्री में हड़ताल नहीं करा सकता। जार्ज के लिए वहां अनुयायी नहीं हैं। जहां भारतीय मजदूर संघ को कोई सलाम नहीं करता था, वहां आज भारतीय मजदूर संघ नंबर दो पर है।
बम्बई में हमारा काम बहुत अच्छा है और जिस जार्ज को बादशाह कहा गया और नई यूनियन खड़ी हो गई, जार्ज को अध्यक्ष बनाया गया। आज जार्ज की संगठन शक्ति इतनी छोटी हो गई है कि भारत सरकार उसको नहीं पूछती कि भई तुम्हारी संख्या क्या है? तुम्हारी यूनियन क्या है? तुम्हारा नंबर क्या है? भारत सरकार ने नंबर दिए। इंटक नंबर एक भारतीय मजदूर संघ दंबर दो है। हिंद मजदूर सभा नंबर तीन है। लेकिन इस नंबर में जार्ज फर्नांडिस की पार्टी कहीं नहीं है। इनको पूछा तक नहीं। ये जार्ज बम्बई का बादशाह था और हमको एक आदमी भी सलाम नहीं करता था। अपने स्वयंसेवक अधिक धीरज छोड़ने वाले थे, पूछते थे कि आपका क्या होगा जार्ज का इतना है। बीच में आपने नाम सुना होगा दत्ता सामन्त का। उसका क्या हुआ? हमने कहा यह लहर है चली जाएगी, धीरज रखें। आज दत्ता सामन्त का क्या रहा?
हमारे किसान क्षेत्र में सब जानते हैं शरद जोशी का नाम, हर दिन पेपर में आता है। आंदोलन चला रहा था। डेढ़ लाख लोग रास्ते पर थे उस दिन हम कहीं से आ रहे थे। तो हमारे लोगों ने कहा कि वहां मत जाओ, कहा कि हम भारतीय किसान संघ के हैं। कितने लोग थे आपके संघ में 43 लोग। यह ऐसा आंदोलन है तुम्हारा, शरद जोशी के डेढ़ लाख लोग रास्ते पर हैं। बोले हम जानते हैं। आपका क्या होगा? हमारे लोगों ने कहा हम देख लेंगे। मैं था वहां। मैंने कहा यह लहर है। अरे! यार यह लहर-वहर की बात आप कहते हैं। यह ठीक नहीं है आज शरद जोशी का आधा भी फालविंग रहा है क्या? लहर की बात ऐसी होती है।
नागपुर में मेरा जन्म हुआ इसलिए समुद्र तो मैंने देखा नहीं था। पहली बार जब मैं समुद्र में गया। केरल में जाने के बाद समुद्र देखा, तो मुझे आश्चर्य हुआ कि जिस समय पहाड़ जैसी लहरें आती थीं, पहाड़ जैसी लहरें। उस समय भी समुद्र-स्नान करने के लिए जवान लोग भी जाते थे, बूढ़े भी जाते थे और महिलाएं भी जाती थीं। हम दूर से देखते थे कि अरे, भाई जवान लोग हैं, ताकतवर हैं, यह पहाड़ जैसी लहर का मुकाबला कर सकते हैं।
ये बूढ़े लोग भी जा रहे हैं, और महिलाएं जा रही हैं। और लहर तो ऐसी पहाड़ जैसी आ रही हैं, इनका क्या होगा? लेकिन हमने बाद में देखा कि बूढ़े और महिलाएं क्या करते थे? वे लहर की तरफ देखते रहते थे, अंदर पानी में घुसते थे और जैसे ही लहर पास आती थी तो नाक दबाकर अंदर चले जाते थे। पानी के नीचे चले जाते थे, लहर आती थी, चली जाती थी, थोड़ा-सा इनको धक्का लगता था ज्यादा नहीं। और यह पहाड़ जैसी लहर आकर वापिस जाने लगती थी तो ये बूढ़े और महिलाएं खड़े हो जाते थे और लहर की तरफ देखते थे और बोलते थे कि अरे, बेटा तुम आई भी जैसी वैसी चली गई हम जहां के तहां खड़े हैं। तो यह लहर वाली बात जो है वह ध्यान में रखनी चाहिए। धीरज के साथ सारा काम हो सकता है। कुछ रणनीति हुआ करती है।
सामान्य आदमी का धीरज और आपका धीरज यह समान नहीं हो सकता। आप परमवैभव का एक स्वप्न लेकर चले हैं। उसके अनुकूल रणनीति बनाई है। हर समय दिल की भड़ास निकाल दी और बड़ा जोश वाला काम किया, केवल दिल की भड़ास निकालने से काम नहीं होता। सोच कर काम करना पड़ता है। राष्ट्र निर्माण के प्रति हम कटिबद्ध हैं। अपना नेतृत्व सारा सोच कर काम करता है पूरे विश्वास के साथ, धीरज के साथ और अन्य लोगों के मत का अपने ऊपर प्रभाव न होने देते हुए। जिनके ऊपर अन्य लोगों के मत का प्रभाव होता है वे अन्य लोगों के समान सोचने लगते हैं। उनसे काम नहीं होगा। आपको वोट मिल सकता है। राष्ट्र पुनर्निर्माण नहीं हो सकता। अपने ढंग से हम सोचें धीरज के साथ इसे, समय रहे तो समझ लीजिए कि लहर ज्यादा देर टिक नहीं सकती।
साल 1990 में लुधियाना के एक सम्मेलन में दत्तोपंत ठेंगड़ी के भाषण का अंश