आर्थिक सुधारों के जनक डा. मनमोहन सिंह नहीं रहे

प्रज्ञा संस्थान92 वर्षीय मनमोहन सिंह को गुरुवार की शाम घर पर “अचानक बेहोश” होने के बाद गंभीर हालत में एम्स के आपातकालीन विभाग लाया गया था .पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधन हो गया. डा.मनमोहन सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत के जिला झेलम के गांव  में 1932 में हुआ था.उनके पिता का नाम गुरमुख सिंह और माता का नाम अमृत कौर था . अब यह गांव पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 100 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित ज़िला चकवाल का हिस्सा है. 2004 में मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने और अगले दस साल इसी पद पर रहे और कई आर्थिक सुधार किए . पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया और ऑक्सफॉर्ड से डी फिल किया.

साल 1991 में जब वह भारत के वित्त मंत्री बने तो अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर थी . वित्त मंत्री के रूप में अपने पहले भाषण में उन्होंने विक्टर ह्यूगो का हवाला देते हुए कहा, “इस दुनिया में कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है.”ये भाषण उनके महत्वाकांक्षी और अभूतपूर्व आर्थिक सुधार कार्यक्रम की शुरुआत थी. उन्होंने टैक्स में कटौती की, रुपये का अवमूल्यन किया, सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया. इससे अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ, उद्योग तेजी से बढे़, बढ़ रही महंगाई पर काबू पाया गया और 1990 के दशक में विकास दर लगातार ऊंची बनी रही.

जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो ,आलोचकों का कहना था कि भले ही मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनाए गए हों, लेकिन असली ताकत तो सोनिया गांधी के पास है. मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी कामयाबी प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता था. उनके समय में ये ऐतिहासिक समझौता हुआ और इसकी बदौलत अमेरिका की परमाणु टेक्नोलॉजी तक भारत की पहुंच बन गई.

लेकिन इस सौदे की कीमत भी चुकानी पड़ी. मनमोहन सिंह सरकार को समर्थन दे रहे वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया. कांग्रेस को बहुमत जुटाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी. उसे दूसरी पार्टियों से समर्थन लेना पड़ा और इस  दौरान कांग्रेस पर आरोप लगा कि उसने सांसदों का समर्थन खरीदने के लिए पैसे खर्च किए.

मनमोहन सिंह आम सहमति कायम करने के पक्षधर थे. उन्होंने उस दौरान गठबंधन सरकार का जिम्मा संभाला जब सहयोगी दलों को मनाना मुश्किल काम होता था. मनमोहन सरकार को समर्थन देने वाली क्षेत्रीय पार्टियां भी अपनी मांग बढ़-चढ़ कर रखती थीं. दूसरी समर्थक पार्टियां भी इसमें पीछे नहीं थीं.

हालांकि मनमोहन सिंह को उनकी विश्वसनीयता और बुद्धिमत्ता की वजह से भरपूर सम्मान मिला. उन्हें नरम व्यक्तित्व का माना जाता था और कहा जाता था कि वो निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं. कुछ आलोचकों का कहना था कि उनके कार्यकाल में आर्थिक सुधारों की गति धीमी हो गई. वित्त मंत्री के तौर पर उन्होंने जिन आर्थिक सुधारों की गति दी थी उन्हें प्रधानमंत्री रहते आगे नहीं बढ़ा पाए.

मनमोहन सिंह ने दूसरी बार साल 2009 में यू .पी .ए को चुनावी जीत दिलाई. लेकिन जीत की चमक जल्द ही फीकी पड़ने लगी, और उनका दूसरा कार्यकाल ज्यादातर गलत कारणों से खबरों में रहा- उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों पर घोटाले के आरोप लगे, जिनसे देश को कथित तौर पर अरबों डॉलर का नुकसान हुआ. विपक्ष ने संसद को लगातार ठप रखा, और नीतिगत ठहराव के चलते देश को गंभीर आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा. आलोचकों के द्वारा उन्हें भारत का “सबसे कमजोर प्रधानमंत्री” कहा गया . इस पर मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल का बचाव करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने देश और जनता के कल्याण के लिए “पूरी प्रतिबद्धता और समर्पण” के साथ काम किया.

 

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