अयोध्या की राम जन्मभूमि की एक लड़ाई अभी हमने जीती है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि यह जानते हुए कि मंदिर तोड़े गए थे, यह जानते हुए कि मंदिर हिन्दू समाज के श्रद्धा के केंद्र हैं, उसके बावजूद ये लड़ाई इतनी लंबी चली। होना तो यह चाहिए था कि स्वतंत्रता मिलते ही हिन्दू समाज से पूछा जाता कि एक हज़ार वर्ष की लंबी लड़ाई के बाद अब देश स्वतंत्र हो रहा है। कौन- कौन से स्थान है जो हजार वर्षों में खंडित, अपमानित, या तिरस्कृत हो गए। उन स्थानों को फिर से बनाना चाहिए।
दिल्ली में ही एक विद्वान अर्नोल्ड टाइन भी आए थे। अपने व्याख्यान (आज़ाद मेमोरियल लेक्चर) में कहते हैं की 1914 और 1915 में प्रथम विश्वयुद्ध जब चल रहा था पोलैंड के ऊपर रूस की सेना का कब्ज़ा हो गया। और रूस के लोगों ने वारसा नाम के शहर में प्रमुख स्थान पर ईस्टर्न ऑरथोडॉक्स क्रिश्चियन कैथड्रल चर्च बना दिया। पहले वाला रोमन कैथोलिक चर्च था उसे गिरा दिया। बाद में पोलैंड के आज़ाद होने पर वहाँ के लोगों ने उस चर्च को गिरा दिया और अपना चर्च स्थापित किया। अगर मैं अर्नोल्ड टाइन के ही शब्दों में कहूँ तो “aurangjev a poor reached, misguided bad man spent lifetime of hard labour and raising massive monuments with all discredit वो कहते हैं की मुझे आचार्य होता है की भारत के लोग अपने ही इमारतों को तोड़कर बनाए हुए इन इमारतों को क्यों देखते रहते हैं।”
हिन्दू समाज उदार है, आध्यात्मिक है, विनम्र है, वो खुद को किसी भी झगड़े से दूर रखने की कोशिश करता है। अयोध्या का नाम ही है जहाँ युद्ध ना हो। जो युद्ध से विरत है, जो संघर्षों से दूर है उसका नाम अयोध्या है। हमारे देश के दो प्रमुख गुण हैं एक गुण हैं कf हम आध्यात्मिक हैं, आध्यात्मिक होने का अर्थ है दूसरों के प्रति भेद दृष्टि होना, द्वेष है, क्रूरता है उसका खत्म होना और अयोध्या ऐसी ही आध्यात्मिक चेतना का सागर है। ऐसा नहीं है की अयोध्या केवल राम की जन्मभूमि है, वह विभिन्न धर्मों की जन्मस्थली है। पाँच जैन तीर्थंकरों (ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदननाथ, सुमंतनाथ, अनंतनाथ) की जन्मभूमि भी है। स्वयं आदि गुरु आचार्य ऋषभ देव की जन्मभूमि भी वही है। अयोध्या में आज भी इन पांचों जैन तीर्थंकरों के पदचिन्ह वहाँ हैं। इन पांचों जैन तीर्थंकरों के पाँच मंदिर हैं। स्वयं महावीर जो एक सूर्यवंशी थे उन्होंने खुद अयोध्या के राजा को जैन धर्म की दीक्षा दी थी।
भगवान बुद्ध सोलह बार चातुर्मास करने के लिए अयोध्या आये। फा-हियान और ह्युंग सांग नामक दो यात्री भी अयोध्या आए थे और लंबा समय बिताया। उनके वर्णन में मिलता है कि भगवान बुद्ध एक बार अयोध्या आए थे और उन्होंने दातुन करके उसे जमीन में गाड़ दिया और उससे पेड़ जन्मा, उस पेड़ का जिक्र दोनों ही यात्री करते हैं जब कि दोनों यात्री के यात्रा के बीच का अंतर तीन सौ बरसों का है। भगवान बुद्ध ने जिस राजा को सबसे पहले दीक्षा दी उसका नाम प्रसेनजीत था ये कौशल का ही राजा था।
गुरुनानक देव अपने यात्रा के दौरान अयोध्या गए और वहाँ बहुत दिनों तक वास किया। गुरु तेग बहादुर जी जब असम यात्रा से लौट रहे थे तो वो भी अयोध्या रुके थे। गुरु गोविंद सिंह जी भी पंजाब जाने के दौरान अयोध्या में कई दिनों के लिए वास किए थे। एक सेना जो राम जन्मभूमि के युद्ध के लिए वहाँ गई। आज भी सूर्यकुण्ड नाम का जो गुरुद्वारा हैं उन्हीं शहीदों के नाम है। वहाँ पर इन सभी की स्मृतियाँ उपस्थित है। अयोध्या नाथ योगियों का भी बड़ा स्थान है। एक समुद्रपाल नामक अयोध्या के राजा थे, उनके बाद उनकी सत्रह पीढ़ियाँ जो योग में दीक्षित थी ऐसे 643 साल तक अयोध्या पर शासन किया।
रामनन्द जी के शिष्यों का भी एक बड़ा केंद्र रहा है। उन्होंने धर्मांतरित हुए हिंदुओं को मृत्यु से बचाने और अपने धर्म को मानते रहने का दूसरा उपाय दिया जिसको उनके शिष्यों ने बहुत अच्छे से फैलाया। रमानंद जी कह गए कि गले में माला, जिह्वा पर तुलसी और मुंह से राम नाम का उच्चारण मात्र से धर्मांतरित हो जाएगा। उनके शिष्य परंपरा में ही कबीर और रैदास जैसे महान कवि हुए।
1901-2 में अयोध्या में एक जिलाधीश आए उनका नाम एडवर्ड था, उन्होने सम्पूर्ण क्षेत्र का अध्ययन करके 148 क्षेत्रों की सूची बनाई और उन्होंने लिखा कि 148 ऐसे क्षेत्र हैं जो किसी न किसी धार्मिक आस्था के क्षेत्र से जुड़े हैं। और पहली शिला रामजन्म स्थान का लगाया। उन्होंने एक ‘एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा’ बनाया। इस्लाम के आगमन तक सभी धर्म एक दूसरे के साथ मिल जुलकर साथ रहते थे। अयोध्या भविष्य में कैसी बनेगी ये एक बड़ा प्रश्न है पर अयोध्या में मंदिर बनेगा ये सच है।
हमारी सनातन आध्यात्मिक परंपरा यह बार-बार संदेश देती है कि समाज में जितनी भी परम्पराएं हैं, जितने भी विश्वास हैं, जितनी भी आध्यात्मिक धाराएं हैं, इस देश में उत्पन्न जितनी भी पूजा पद्धतियाँ हैं वह सब मिलकर रह सकती हैं ऐसे स्थान का नाम आयोध्या हैं। पश्चिम की हवा असहिष्णुता की है पिछले हजार वर्ष का जो इतिहास हम देख रहे है वो एक्सट्रीम इंटोलेरन्स, उन्होंने सैकड़ों परंपराओं, संस्कृतियों को नष्ट कर दिया। वे संस्कृतियाँ दोबारा खड़ी नहीं हो सकी।
मिस्र के लोग बहुत उन्नत थे उन्होंने बहुत ही उन्नत चीजें बनाई। अनेक तकनीक और विज्ञान का आविष्कार किया। मरे हुए लोगों को सैकड़ों वर्षों तक रखने का उन्नत तकनीक विकसित किया। बर्बर और जंगली लोगो ने एक फलती फूलती सभ्यता को समाप्त कर दिया। ग्रीक को सम्पूर्ण यूरोप का मस्तिष्क कहा जाता था, बड़े बड़े विद्वान पैदा हुए। ऐसे बुद्धिजीवियों को समाप्त करने वाले लोग बर्बर और जंगली थे। जिन्होंने रोम या पर्सिया को समाप्त किया वो जंगली थे। वो क्रूरता में आगे थे गाँव के गाँव जला डालते थे। हिंसा सभ्यता के ऊपर हावी हो गई। वो दोबारा खड़े नहीं हो सके। ग्रीक या रोम लोगों का मंदिर दोबारा नहीं आया। पर हम लोग नष्ट नहीं हुए क्योंकि हम लड़े और जब लगा कि हार गए तो चुपचाप भजन कीर्तन में में लग गए।
बड़े मंदिर टूटे तो छोटे छोटे मंदिर लेकर घर में बैठ गए। फिर चुपचाप शांति से मौका देखकर फिर से खड़े हो गए। इस्लाम हिन्दुत्व को नष्ट करने के संकल्प के साथ भारत में आया था। क्योंकि वो ऐसा कई देशों में कर चुका था। राममनोहर लोहिया जी बहुत प्रामाणिक व्यक्ति थे। वह सच को सच कहने की हिम्मत रखते थे। चाहे उसका परिणाम कुछ भी क्यों ना निकले। वो कहते थे कि धरती माता – भारत माता पुस्तक में लिखते हैं कि अगर आप भारत के किसी बड़े मंदिर में जाकर एक कोने में खड़े हो जाइए आपके सामने से पूरा भारत एक घंटे के अंदर निकल जाएगा। वो कहते हैं कि मंदिर भारत की एकात्मकता का मूल मंत्र है। ये दिन दो दिन में नहीं हो सकता है। किसी भी देश का संविधान, कसी भी देश की सेना, किसी भी देश की एकोनोमी, किसी भी देश की सड़कें, रेल की व्यवस्था, ऐसी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, वैचारिक मनोभाव वाली एकता को ला नहीं सकती ये बात मान लीजिए।
हमसे ज़्यादा सेना रखने वाला USSR टूट गया, हमसे ज़्यादा मजबूत संविधान रखने वाला चेकोस्लोवकिया युगोस्लाविया टूट गया। अभी हमारे आँखों के सामने बना पाकिस्तान दो भाग में टूट गया। भारत का एक जिला भी भारत से दूर जाने की कोशिश नहीं करता है क्योंकि उसका लगाव है इस धरती के साथ। ऐसा भक्ति भाव दुनिया में और कही नहीं मिलता है। हमारी नदियां, हमारे पहाड़, हमारा हर मंदिर अपनी एक अलग पहचान रखती है। जो विश्व में कही और नहीं मिलेगा।
हमारी संस्कृति संश्लेषात्मक प्रवृति की है। हजारों संप्रदायों को एक साथ लेकर चलने वाली सांस्कृति जगह को ही अयोध्या कहते हैं। अयोध्या जोड़ने का काम करती है। जैसा हमारा कुम्भ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, काशी के घाट, जगन्नाथ, रामेश्वरम करता है जोड़ने काम उसे ज़्यादा ही अयोध्या करती है। आज इस संघर्षशील दुनिया में अगर कोई है जो साहस देता हैं जो संभाल देता है तो वो राम हैं। राम का जीवन ऐसा है स्वभाव ऐसा है, व्यवहार ऐसा है। जहाँ सम्प्रदा को ठोकर मारने में स्पर्धा होती है उसे अयोध्या कहते हैं। कहते हैं कि दक्षिण के लोग राम के विरोधी हैं। थोड़े दिन विरोध चलेगा फिर सब ठीक हो जाएगा। जिस व्यक्ति ने राम के गले में जूते की माला डालकर जुलूस निकाला था 1960 में उसका नाम रामास्वामी पेरीयार, उनके पार्टी के एक नेता का नाम था एमजी रामचंद्रन, उनके पार्टी की जो महिला मुख्यमंत्री लंबे समय तक रही उसका नाम था जयराम जयललिता, आंध्र के मुख्यमंत्री का नाम था एनटी रामाराव, राम को छोड़ कहा जाएंगे।
देश की कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसमें रामायण नहीं लिखी गई हो। भारत में राम इतना रच बस गए हैं कि कोई भी निकाल नहीं सकता। पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, औरत हो या मर्द, बच्चा हो या बूढ़ा हर आदमी सो कर उठते ही राम राम करता है। ये देश राममय है।