चुनावी राजनीति को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार रखा। अगर ऐसा हो जाता है तो वह एक आदर्श स्थिति होगी। लेकिन फिलहाल ऐसा संभव नहीं दिखता है। इसीलिए चुनाव आयोग ने पांच राज्यों की विधान सभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। इन राज्यों में चार के कार्यकाल समाप्त हो रहे हैं। पांचवे तेलंगाना में मध्यावधि चुनाव का निर्णय राज्य सरकार का है। इन चुनावों की तैयारियां पहले से प्रतिद्वंद्वी दल कर रहे थे। खासकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए हो गए हैं क्योंकि इन राज्यों में मुख्यत: भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला होना है। मध्य प्रदेश में पिछले पंद्रह सालों से भाजपा सत्ता में है। वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान 2005 से सत्ता की कमान संभाले हुए हैं। इन 13 सालों में वे अत्यंत लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में अपनी छवि बना सके हैं। ऐसा अवसर मध्य प्रदेश में दूसरे किसी नेता को नहीं मिला है।
इस चुनाव में दो मुद्दे भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरोध में जोर शोर से उठाए जाएंगे। पहला होगा, व्यापमं घोटाला। दूसरा मुद्दा है-किसानों की समस्याओं से संबंधित। क्या ये मुद्दे शिवराज सिंह पर भारी पड़ेंगे? इसका सटीक जवाब इस समय कोई भी नहीं दे सकता है। इसका बड़ा कारण यह है कि मध्य प्रदेश की राजनीति और जनजीवन में भाजपा और कांग्रेस की उपस्थिति करीब-करीब समान सी रही है। सत्ता में चाहे जो आ जाए, उससे इन पार्टियों की उपस्थिति पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। अब वैसी बात नहीं है। जहां भाजपा सत्ता में होने के बावजूद सुगठित और एक नेतृत्व समूह से संचालित हो रही है वहां कांग्रेस को अपना पुनरुद्धार करना है। इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिसे चुना है वे कमलनाथ हैं।
यह भी एक बड़ा कारण है कि मध्य प्रदेश में चुनावी मुकाबला कांटे का नहीं होगा। कांग्रेसी ही कांग्रेस को हराएंगे। इस खतरे को कम करने के लिए राहुल गांधी ने स्वयं कमान संभाल ली है। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल कर रहे हैं। मतदाता किसी नकलची को स्वीकार नहीं करते। मतदाताओं का फैसला तो चुनाव परिणाम के बाद मालूम होगा। चुनाव की घोषणा से कुछ बातें साफ होने लगी हैं। जैसे यह कि मध्य प्रदेश सहित चुनाव के इन राज्यों में विपक्ष का कोई एक गठबंधन भाजपा के विरोध में नहीं बन रहा है। इससे सीधा लाभ भाजपा को होगा और नुकसान कांग्रेस के खाते में दर्ज किया जाएगा। गठबंधन की कुंजी मायावती के हाथ में है। उन्होंने अपनी इस घोषणा से कांग्रेस को अधमरा कर दिया कि वे इस चुनाव में कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाएंगी। अगर मायावती और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ते तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को बड़ी चुनौती मिलती। आज वह वैसी नहीं है।
विधान सभा चुनाव का यह प्रारंभिक चरण है। उम्मीदवारों का चयन और चुनाव में मुद्दों का निर्धारण होना है। जैसे-जैसे यह प्रक्रिया चल पड़ेगी वैसे-वैसे ही चुनाव की तस्वीर साफ होती जाएगी। तीन राज्यों के चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होने जा रहा है। इससे इतना तो साफ है कि सत्तारूढ़ दल को विपक्ष से ही मदद मिलेगी। वह मदद कितनी होगी और कैसी होगी, इस बारे में इस समय सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। जो लोग इन विधान सभा चुनावों को सेमीफाइनल बता रहे हैं वे नहीं जानते कि हर चुनाव फाइनल ही होता है। उसका कोई सेमी फाइनल नहीं होता। विधान सभा के चुनाव अपने आप में पूर्ण हैं। उसका संबंध न उससे पहले के किसी चुनाव से होता है और न उसके बाद होने वाले चुनाव से होता है। जो सेमीफाइनल कहते हैं, वे लोकसभा के चुनाव को फाइनल बताने की भूल कर रहे हैं। जब से विधान सभा और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग हो रहे हैं तब से वे एक दूसरे को किसी भी रूप में प्रभावित नहीं करते। यह अनुभवों से हर कोई जानता है। फिर भी आश्चर्यजनक रूप से सेमीफाइनल और फाइनल का माहौल बनाने की कोशिश होती है।
एक साथ चुनाव स्वागत योग्य कदम है ।
किन्तु देश को चुनाव मुक्त बनाने की दिशा मे सोच विकसित करने की आवश्यकता है ।
आपने ही कान्सट्यूशन क्लब दिल्ली मे 2015 मे कहा था कि वर्तमान लोक सभा को संविधान सभा के रुप मे परणित कर संविधान लेखन का कार्य होना चाहिए।
माननीय गोविंद जी का सूत्र
संवाद सहमति सहकार
के आधार पर देश के सज्जन शक्ति मिल कर सहकार वाद की एक आधार शीला रखे ।
चुनाव मुक्त भारत
सहकारवाद इसका एक छोटा सा प्रयास होगा।