सन् 1762 से सन् 1774 के बीच कई फकीर-संन्यासी विद्रोह इतिहास में दर्ज हैं। हिंदू संन्यासी और मुसलिम फकीर अक्सर एक स्थान से दूसरे स्थान की धार्मिक यात्राएं करते थे। उत्तर भारत के ये तीर्थयात्री बंगाल के विभिन्न धार्मिक स्थलों की यात्रा करते थे। पारंपरिक रूप से ये तीर्थयात्री गांव के मुखिया, जमींदार या प्रधान से धार्मिक कर वसूलते थे। यह परंपरा काफी समय से चली आ रही थी। मुखिया आदि लोग इसे सहर्ष संन्यासी, फकीरों को दे देते थे। जबसे ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ, उन्होंने लोगों पर अनेक तरह के टैक्स थोप दिए और मुखिया आदि लोगों ने फकीरों, संन्यासियों को धार्मिक कर देने से इन्कार कर दिया।
अंग्रेज अधिकारी इस तरह के धार्मिक कर वसूली को लूट मानते थे और फकीर-संन्यासी को लुटेरे। वे अपने अधिकृत क्षेत्रों में ऐसे लोगों को घुसने नहीं देने के लिए भी उपाय करने लगे थे। इसी क्रम में सन् 1771 में लगभग 150 फकीरों की हत्या कर दी गई। इससे रंगपुर ‘अब बांग्लादेश में’ में फकीर-संन्यासियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध कड़ा विरोध दर्ज कराया। कई हिंक वारदातें भी हुईं।
जब-जब कंपनी की पुलिस ने संन्यासी और फकीरों को अपने प्रांत में घुसने या धन, कर के रूप में वसूलने से रोका, उनके बीच हिंसक झड़पें हुईं। लेकिन अंग्रेज पुलिस ने इस झड़पों को बलपूर्वक कुचल दिया। इन घटनाओं से लोगों के मन में अंग्रेज सरकार के प्रति रोष बढ़ता गया, जो अनेक आंदोलनों और विद्रोहों के रूप में सामने आया