किसानों के नाम पर राजनीति

किसानों के नाम पर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियाँ बेवजह की राजनीति कर किसानों को भड़का रहें हैं |वैसे भी आज कल विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं रह गया है |विपक्ष के नेता बिचौलियों के लिए लड़ रहे हैं और बिल पर अफवाह फैला रहे हैं|ये कानून, ये बदलाव कृषि मंडियों के खिलाफ नहीं हैं| कृषि मंडियों में जैसे काम पहले होता था, वैसे ही अब भी होगा| बल्कि ये एनडीए सरकार है जिसने देश की कृषि मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए निरंतर काम किया है|

‘जहां डेयरी होती हैं, वहां आसपास के पशुपालकों को दूध बेचने में आसानी तो होती है| डेयरियां भी पशुपालकों का, उनके पशुओं का ध्यान रखती हैं| इन सबके बाद भी दूध भले ही डेयरी खरीद लेती है, लेकिन पशु तो किसान का ही रहता है| ऐसे ही बदलाव अब खेती में भी होने का मार्ग खुल गया है|

कृषि मंडियों के कार्यालयों को ठीक करने के लिए, वहां का कंप्यूटराइजेशन कराने के लिए, पिछले 5-6 साल से देश में बहुत बड़ा अभियान चल रहा है| इसलिए जो ये कहता है कि नए कृषि सुधारों के बाद कृषि मंडियां समाप्त हो जाएंगी, तो वो किसानों से सरासर झूठ बोल रहा है|

इस साल कोरोना संक्रमण के दौरान भी रबी सीज़न में किसानों से गेहूं की रिकॉर्ड खरीद की गई है| इस साल रबी में गेहूं, धान, दलहन और तिलहन को मिलाकर, किसानों को 1 लाख 13 हजार करोड़ रुपए एमएसपी पर दिया गया है| ये राशि भी पिछले साल के मुकाबले 30 प्रतिशत से ज्यादा है|

बहुत पुरानी कहावत है कि संगठन में शक्ति होती है| आज हमारे यहां ज्यादा किसान ऐसे हैं, जो बहुत थोड़ी-सी जमीन पर खेती करते हैं| जब किसी क्षेत्र के ऐसे किसान अगर एक संगठन बनाकर यही काम करते हैं, तो उनका खर्च भी कम होता है और सही कीमत भी सुनिश्चित होती है|

अब देश अंदाजा लगा सकता है कि अचानक कुछ लोगों को जो दिक्कत होनी शुरू हुई है, वो क्यों हो रही है| ये कानून, ये बदलाव कृषि मंडियों के खिलाफ नहीं हैं| कृषि मंडियों में जैसे काम पहले होता था, वैसे ही अब भी होगा. बल्कि ये हमारी ही एनडीए सरकार है, जिसने देश की कृषि मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए निरंतर काम किया है| उन्होंने कहा कि कृषि मंडियों के कार्यालयों को ठीक करने के लिए, वहां का कंप्यूटराइजेशन कराने के लिए, पिछले 5-6 साल से देश में बहुत बड़ा अभियान चल रहा है| इसलिए जो ये कहता है कि नये कृषि सुधारों के बाद कृषि मंडियां समाप्त हो जायेंगी, तो वो किसानों से सरासर झूठ बोल रहा है|

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में दालें बहुत होती हैं| इन राज्यों में पिछले साल की तुलना में 15 से 25 प्रतिशत तक ज्यादा दाम सीधे किसानों को मिले हैं| दाल मिलों ने वहां भी सीधे किसानों से खरीद की है, सीधे उन्हें ही भुगतान किया है|

नये कृषि सुधारों ने देश के हर किसान को ये आजादी दे दी है कि वो किसी को भी, कहीं पर भी अपनी फसल, अपने फल-सब्जियां अपनी शर्तों बेच सकता है| किसानों को मिली इस आजादी के कई लाभ दिखाई देने शुरू भी हो गये हैं| ऐसे प्रदेश जहां पर आलू बहुत होता है, वहां से रिपोर्ट्स हैं कि जून-जुलाई के दौरान थोक खरीदारों ने किसानों को अधिक भाव देकर सीधे कोल्ड स्टोरेज से ही आलू खरीद लिया है|

हमारे देश में अब तक उपज बिक्री की जो व्यवस्था चली आ रही थी, जो कानून थे, उसने किसानों के हाथ-पांव बांधे हुए थे| इन कानूनों की आड़ में देश में ऐसे ताकतवर गिरोह पैदा हो गये थे, जो किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे| आखिर ये कब तक चलता रहता| इसलिए, इस व्यवस्था में बदलाव करना आवश्यक था और ये बदलाव  सरकार ने करके दिखाया है|

 

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