किसान आंदोलन के पीछे की कहानी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। एमएसपी और मंडी समितियों को लेकर शुरू हुआ आंदोलन कानून वापसी के लिए होने लगा। माओवादियों के समर्थकों की रिहाई की मांग भी होने लगी। कांग्रेस से लेकर मार्क्स और माओ के वैचारिक संगठन किसान आंदोलन के समर्थन में खुलकर आ गए। शाहीनबाग में दिखने वाले चेहरे सिंघु बार्डर पर दिखने लगे। अरूंधती से लेकर स्वरा के स्वर भी आंदोलन में गूंजने लगे। यहीं से किसान आंदोलन पर सवालों के बादल भी उमड़ने घुमड़ने लगे। अब तो किसान आंदोलन का सबसे चर्चित चेहरा ही सवालों के घेरे में है। नाम है गुरनाम सिंह चढ़ूनी। चढ़ूनी भारतीय किसान युनियन चढ़ूनी गुट के प्रधान है। आंदोलनरत संयुक्त किसान मोर्चा ने उन्हें निलंबित कर दिया। उन पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से मिलकर हरियाणा सरकार को गिराने का आरोप है।
चढ़ूनी ही क्यों, किसान आंदोलन में तो और भी ताकतें है जिनका राजनैतिक एजेंडा है। उन्हीं में से तो योगेन्द्र यादव और दर्शनपाल भी आते हैं। इन दोनों के बारे में सबको जानने का हक है। हालांकि किसान आंदोलन के नेता ऐसे तत्वों से सावधानी बरत रहे हैं। उनसे दूरी भी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन ऐसे तत्वों से हमदर्दी रखने वाले तो किसान आंदोलन के केन्द्र में ही है।
दर्शनपाल तो उन्हीं में से एक हैं। दर्शनपाल के बारे में बात करेंगे, पहले योगेन्द्र यादव के बारे में समझते हैं। वैसे तो योगेन्द्र यादव पहले चुनावों में कौन जीत रहा, कौन हार रहा इसका गणित लगाते थे। इसी गणित से वह सोनिया गांधी की सलाहकार मंडली में जा पहुंचे। आम आदमी पार्टी के नेता नवीन जयहिंद की माने तो कांग्रेस नीति यूपीए की सरकार में योगेन्द्र यादव को 25 नीति निर्धारक कमेटियों में रखा गया। इसमें मनमोहन सिंह के कार्यकाल में सोनिया गांधी के अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय सलाहकार समिति के भी सदस्य रहे हैं। इसकी ताकत बेहिसाब रहती थी। कश्मीर में धारा 370 को हटाने से लेकर सीएए तक इनकी व्यग्रता जगजाहिर है।
अब आते हैं दर्शन पाल सिंह पर। दरअसल दर्शनपाल पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया (PDFI) के संस्थापक सदस्य हैं। यह संगठन उस माओवादी क्रांति का ही अनुगामी है, इसके तहत देश के विभिन्न हिस्सों में बर्बरतापूर्ण हिंसक कार्रवाइयों को अंजाम देने का आरोप है। पीडीएफआई के कार्यकारी समिति के 51 सदस्य होते थे। दर्शन पाल के अलावा वरवरा राव, कल्याण राव,नंदिता हक्सर, एसएआर गीलानी आदि भी पीडीएफआई के संस्थापक सदस्य रहे हैं।
हैदराबाद का एक संस्थान जिसका नाम डॉ. मारी चन्ना रेड्डी मानव संस्थान विकास संस्थान है, उसकी एक रिपोर्ट बताती है कि पीडीएफआई टेक्टिकल यूनाइटेड फ्रंट (TUF) का हिस्सा है। माओवादियों ने टीयूएफ का गठन विभिन्न माओवादी संगठनों को एक छतरी के नीचे लाने के लिए किया था। ये सभी संगठन और इनसे जुड़े हुए लोग कश्मीर से धारा 370 हटाने से लेकर सीएए के खिलाफ होने वाले सभी विरोध कार्यक्रमों में ये शामिल होते रहे हैं। यह सिलसिला अब किसान आंदोलन तक पहुंच गया है।
कुलहिंद किसान संघर्ष समिति के सदस्य हन्नान मोल्लाह इस आंदोलन के एक चेहरे हैं। वह सीपीएम के सांसद रहे हैं। सीपीएम के राजनीतिक ऐजेंडे से हम सभी लोग परिचित हैं। कुछ यही हाल भारतीय किसान युनियन के नेता जगमोहन सिंह पटियाला का भी है। जगमोहन सिंह पटियाला भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हैं। वो एक्युपेंचर चिकित्सक भी हैं। वैसे दर्शनपाल भी पेशे से चिकित्सक हैं। किसान आंदोलन का एक और चर्चित चेहरा है किरनजीत सेखो का। सेखो पेशे से वकील और सीपीएम से जुड़े हैं। सवाल उठता है कि इतने दौर की बात के बाद भी बात नही बन रही तो आखिर क्या कारण है। इसका उत्तर इन कुछ नेताओं के अतीत से मिल सकता है।