भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहे हैं. इन देशों के संगठन जी-4 ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिए जाने की मांग की है. इसके साथ ही एल-69 और सी-10 देशों के समूह ने भी इसका समर्थन किया. न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 79वीं बैठक से अलग जी-4 समूह की बैठक में इन देशों के विदेश मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र में हुए सुधारों की समीक्षा की. इसके बाद इन देशों की ओर से जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि बैठक में संयुक्त राष्ट्र के इर्द-गिर्द बनी बहुपक्षीय व्यवस्था के सामने मौजूदा अहम चुनौतियों पर गौर किया गया.
जी-4 देशों का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों के साथ ही अस्थायी सदस्यों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए ताकि विकासशील देशों के साथ ही उन देशों को भी प्रतिनिधित्व मिले जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा में अहम योगदान दे रहे हैं. जी-4 देशों के समूह ने कहा कि अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों को स्थायी और अस्थायी सदस्यों के श्रेणी में ज़्यादा प्रतिनिधित्व दिया जाए. एल-69 देशों ने गुरुवार को सेंट विंसेंट एंड ग्रेंडनिंस के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बैठक कर ये मांग दोहराई. भारत भी एल-69 का सदस्य है. अफ्रीकी देशों के समूह सी-10 के साथ ही एल-69 देशों के समूह में ये मांग रखी गई. एल-69 और सी-10 की पहली संयुक्त बैठक से इस मांग को औैर समर्थन मिला है.
संयुक्त राष्ट्र अतीत का क़ैदी बना हुआ है. लेकिन अब इस संगठन में ग्लोबल साउथ को उनकी असल अहमियत से कम तवज्जो देने की व्यवस्था जारी नहीं रह सकती. संयुक्त राष्ट्र में सुधारों के तहत इन देशों को स्थायी श्रेणी में सदस्यता देना अनिवार्य हो गया है. आज की दुनिया एक स्मार्ट,परस्पर जुड़ी हुई और बहुध्रुवीय तरीके से सामने आ रही है. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से लेकर अब तक इसके सदस्यों की संख्या बढ़ी है फिर भी ये अतीत का क़ैदी बना हुआ है.”
यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के अपने काम में संयुक्त राष्ट्र संघर्ष करता हुआ दिख रहा है. इससे इसका असर और विश्वसनीयता कम हो रहे हैं.संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी और अस्थायी सदस्यों की श्रेणी में सदस्यों को संख्या बढ़ाए बगैर 15 सदस्यों वाले इस निकाय का असर कमज़ोर ही रहेगा.
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग लंबे समय से करता रहा है. उसका कहना है कि 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद 21वीं सदी की ज़रूरत के हिसाब से फिट नहीं है. आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को देखते हुए इसमें सुधार ज़रूरी है. भारत ने कई बार इस बात को दोहराया है कि वह संयुक्त राष्ट्र परिषद का स्थायी सदस्य बनने का हक़ रखता है. भारत आख़िरी बार 2021-22 में एक अस्थायी सदस्य देश के तौर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में शामिल हुआ था. भारत का कहना है कि एकतरफ़ा सुरक्षा परिषद आज की दुनिया में शांति और सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं है. मसलन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य यूक्रेन युद्ध और इसराइल-हमास संघर्ष के मामले में बँटे हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी सुरक्षा परिषद को ‘आउटडेटेड करार दिया था. उनका कहना था कि इसका प्रभाव अब ख़त्म हो रहा है और अगर इसके कामकाज़ के तरीक़े में सुधार नहीं हुआ तो ये अपनी विश्वसनीयता खो देगी. उन्होंने कहा था कि हम अपने दादा-नाना के ज़माने की व्यवस्था के साथ काम करके अपने पोते-पोतियों का भविष्य नहीं बना सकते.
संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद का गठन यूएन चार्टर के तहत किया गया था और इसमें कुछ ख़ास देशों को स्थायी सदस्यता मिली थी. चार्टर में बिना संशोधन के कोई बदलाव या कोई नया सदस्य नहीं बन सकता है. 1950 के दशक में, भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में चीन को शामिल किए जाने का एक बड़ा समर्थक था. तब यह सीट ताइवान के पास थी.1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के उद्भव के बाद से, चीन का प्रतिनिधित्व च्यांग काई-शेक के रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का शासन करता था, न कि माओ का पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना. संयुक्त राष्ट्र ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को यह सीट देने से इनकार कर दिया था.