जिसके पास पूंजी नहीं उसका क्या लुटेगा?

विभाजन के बाद 55 करोड़ रुपये जब पाकिस्तान को देने का सवाल आया। सारे गांधी जी से नाराज हुए। अखबारों ने गांधी जी के खिलाफ लिखा। उन्होंने अपना अनशन शुरू किया तो सबने उनके खिलाफ लिखा, यहां तक अखबारों में यह आया था कि सरदार पटेल और नेहरू भी उनके खिलाफ हो गए हैं और फिर हवा यह उठी कि सरदार पटेल ने यह कहा कि ये बूढ़ा जाता क्यों नहीं है?

सारे लोग ये कहने लगे कि ये जितनी जल्दी जाएगा उतना अच्छा होगा। हमारे मर्द लोगों को, जोश खरोश वाले लोगों को लगा कि बस सारा देश हमारे साथ है। मैंने आपको कहा कि हिंदू मानसिकता यह है कि साले की पिटाई होनी चाहिए यह सब कहेंगे, लेकिन पिटाई करते-करते मृत्यु हो जाए तो कहेंगे पिटाई तो करनी चाहिए थी पर ये जरा ज्यादा ही हो गया।

इतना नहीं होना चाहिए था। बेचारे को क्यों मारा? ये हिंदू मानसिकता है। ये जोश खरोश वाले भूल गए। गांधी जी की हत्या हुई इन लोगों को बड़ा आनंद हुआ कि पराक्रम किया है। पराक्रम की बात थी। हम भी यह सारा कार्य करने वाले लोगों को पराक्रमी ही समझते हैं। किंतु हिसाब था क्या? हिंदू मानसिकता की जानकारी थी क्या? ये जो पराक्रम हुआ इसके कारण हिंदुत्व के कार्य को बढ़ावा मिला या हिंदुत्व का कार्य पीछे गया। इसका हिसाब किया था क्या? हिसाब इन लोगों के पास नहीं होता। इसका एक प्रमुख कारण है कि इनके पास कोई संगठन ही नहीं। व्यक्तिगत कुछ लोग इकट्ठा हो जाते हैं। बड़े जोश खरोश में आ जाते हैं। आवेश में आ जाते हैं। उन्होंने कुछ किया तो भी उसका उनके ऊपर परिणाम इसलिए नहीं होगा कि इनका कोई संगठन ही नहीं है। अरे। जिसके पास पूंजी नहीं है, गरिमा जिसके पास नहीं है उसके यहां चोरी क्या होगी? जिसके पास पैसे हैं उसी के यहां चोरी हो सकती है, उसकी का नुकसान हो सकता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास संगठन है नुकसान होगा तो संघ का हो सकता है। क्योंकि संघ की समाज में गरिमा है। अब जिनके पास कोई संगठन नहीं अकेले ही नेता बन गए, जोश में आ गए। कुछ कर दिया उनको फांसी हो गई। हम उनका सम्मान करते हैं कि उन्होंने भी एक श्रेष्ठ काम किया है। काम खराब होगा लेकिन करना नहीं चाहिए था। लेकिन उनके पराक्रम को हम मान्यता देते हैं। कार्य की मान्यता नहीं देते। किंतु नुकसान हिंदुत्व का हुआ।

यह हिंदू मानसिकता को न समझने का परिणाम था। मैं समझता हूं कि यहां जितने मेरी उम्र के या मेरे से छोटे भी लोग होंगे उनको पता होगा कि इस घटना से पूर्व किस तरह से संघ का काम बढ़ रहा था और उसके बाद जो धक्का लगा उस धक्के में से संभलने में कितना समय संघ को लगा और प.पू. गुरुजी को कष्ट उठाने पड़े ये सब आप जानते हैं। तो काम तो हो गया। शायद कुछ लोगों ने तालियां भी बजाई होंगी। कुछ लोगों ने उसे महात्मा कहा लेकिन हिंदू मानसिकता क्या है? यह न जानने के कारण इतना पराक्रम किया। शहादत हो गई। लेकिन जिस काम के लिए यह किया उस काम को धक्का लगा।

क्योंकि हिंदू मानसिकता ऐसी है। एक समय तो वल्लभ भाई ने भी कहा कि यह बुड्ढा जाएगा तो अच्छा होगा। जैसे वो चले गए वैसे एकदम हवा की लहर बदल गई। अरे! भई, चाहते थे लेकिन इतना नहीं होना चाहिए था और उसके कारण सारे कार्य को धक्का लगा। हम लोग जानते हैं।

{साल 1990 के दिसंबर महीने नें आरएसएस के सम्मेलन में दत्तोपंत ठेंगड़ी के भाषण का अंश}

 

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