एक तरफ़ रूस ने यूक्रेन में विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाले इलाके दोनेत्स्क और लुहान्स्क को मान्यता दे दी है | इसकी प्रतिक्रिया में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं |यहाँ से 5 हजार किलोमीटर दूर, रूस-यूक्रेन के बीच जो कुछ चल रहा है उसका असर भारत पर नहीं होगा, तो ऐसा भी नहीं है, वहाँ के घटनाक्रम से भारतीय अछूते नहीं रह सकते |
भारत का रूस और यूक्रेन दोनों के साथ व्यापारिक रिश्ता भी है और भारत के काफ़ी नागरिक इन दोनों देशों में रहते हैं | यूक्रेन में ज़्यादातर लोग पढ़ने जाते हैं | वही रूस में पढ़ाई के साथ-साथ कई भारतीय नौकरी के लिए भी जाते हैं |दोनों देशों के बीच आपसी तनाव की वजह से ना सिर्फ़ भारतीय नागरिकों को आने वाले दिनों में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि आपके और हमारे घर का बजट तक गड़बड़ा सकता है |
रूस में भारतीय दूतावास के मुताबिक़ तक़रीबन 14 हज़ार भारतीय रूस में रहते हैं | जिसमें से तक़रीबन 5 हज़ार छात्र हैं जो मेडिकल और दूसरे टेक्निकल कोर्स की पढ़ाई कर रहे हैं |इसके अलावा 500 बिजनेसमैन हैं जो चाय, कॉफी, चावल, मसाले के व्यापार से जुड़े हैं |
वहाँ केंद्रीय विद्यालय संगठन से जुड़ा एक स्कूल भी है जिसका स्टॉफ़ भी भारत से जाता है | भारतीय दूतावास में काम कर रहे ज़्यादातर कर्मचारियों के बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं, इस स्कूल में कुछ स्थानीय छात्र भी पढ़ते हैं |भारत से यूक्रेन जाने वालों में सर्वाधिक संख्या छात्रों की है , इनमें ज़्यादातर डॉक्टरी की पढ़ाई करने यूक्रेन जाते हैं |ऐसे लोगों की तादाद तक़रीबन 18 से 20 हज़ार बताई जा रही है |मेडिकल की पढ़ाई यूक्रेन में भारत के मुकाबले आधे से भी कम ख़र्च पर हो जाती है| इस वजह से छात्र वहाँ जाकर पढ़ने के विकल्प को चुनते हैं |
इसके अलावा इस संकट का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है |भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा है कि रूस-यूक्रेन तनाव का असर अभी भारतीय व्यापार पर नहीं पड़ा है | लेकिन इस वैश्विक तनाव की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की बढ़ती क़ीमत भारत की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण है |मंगलवार को कच्चे तेल की क़ीमत 104 डॉलर प्रति बैरल के क़रीब पहुँच गई |
“भारत 85 फ़ीसदी तेल आयात करता है, जिसमें से ज़्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से होता है | इसके अलावा भारत, इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस से भी तेल लेता है “दरअसल दुनिया में तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश – सऊदी अरब, रूस और अमेरिका हैं | दुनिया के तेल का 12 फ़ीसदी रूस में, 12 फ़ीसदी सऊदी अरब में और 16-18 फ़ीसदी उत्पादन अमेरिका में होता है |
अगर इन तीन में से दो बड़े देश युद्ध जैसी परिस्थिति में आमने-सामने होंगे, तो जाहिर है इससे तेल की सप्लाई विश्व भर में प्रभावित होगी | ये युद्ध की आशंका ही तेल की कीमतें बढ़ने के पीछे की सबसे बड़ी वजह है |तेल की कीमतों का सीधा असर महँगाई से भी है | डीजल-पेट्रोल के बढ़ते दाम, साग सब्ज़ी और रोज़मर्रा की चीज़ों की कीमतों पर सीधे असर करते है | इसी बात की चिंता भारत को सता रही है |
पिछले डेढ़ महीने से भारत में तेल और पेट्रोल की कीमतें नहीं बढ़ी हैं | इसका एक कारण शायद चुनाव भी हो सकता है | परंतु इस डेढ़ महीने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम 15 से 17 फ़ीसदी बढ़ चुके हैं | ऐसे में जब कभी भारत में तेल की कीमतें रिवाइज़ होंगी, तो एक साथ 6-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी भी देखी जा सकती है |एक अनुमान के मुताबिक़ कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर 8000-10,000 करोड़ का बोझ बढ़ जाता है |
भारत की कुल ईंधन खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी लगभग 6 प्रतिशत है और इस 6 फ़ीसदी का 56 फ़ीसदी, भारत आयात करता है |ये आयात मुख्यत: क़तर, रूस,ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे जैसे देशों से होता है |कुएं से पहले गैस निकाली जाती है, फिर उसे तरल किया जाता है और फिर समुद्री रास्ते से ये गैस भारत पहुँचती है | इस वजह से इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी कहा जाता है | भारत लाकर इसे पीएनजी और सीएनजी में परिवर्तित किया जाता है | फिर इसका इस्तेमाल कारखानों, बिजली घरों, सीएनजी वाहनों और रसोई घरों में होता है |
“रूस 40 फ़ीसदी तेल और प्राकृतिक गैस, यूरोप को बेचता है | अगर उसने भी ये बंद कर दिया, तो स्थिति ख़राब हो सकती है | इस तनाव के बीच अमेरिका कोशिश कर रहा है कि दूसरे देश जैसे क़तर से एलएनजी का डाइवर्जन यूरोप की तरफ़ करा सके | एलएनजी के लिए क़तर के सबसे बड़े ग्राहक देश हैं – भारत, चीन और जापान | अगर क़तर अमेरिका के दबाव में एलएनजी यूरोप को देने के लिए तैयार हो जाए, तो वो किसके हिस्से से जाएगा? ज़ाहिर है भारत का हिस्सा भी कुछ कटेगा |
आने वाले दिनों में हो सकता है कोई देश अपनी तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन की क्षमता बढ़ाएं और वैश्विक किल्लत ना हो और स्थिति नियंत्रण में ही रहे |एलएनजी की कीमतों में उतनी तेजी नहीं आई है, जितनी तेल की कीमतों में | इसकी एक वजह ये है कि एलएनजी की कीमतें क्षेत्रीय बाज़ार में तय होती हैं ना कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में | भारत का जिन देशों के साथ एलएनजी कॉन्ट्रैक्ट है वो लंबे समय के लिए है और कीमतें कई सालों के लिए पहले से तय है |