साल 2014 के आम चुनाव में जनता ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए के पक्ष में जनादेश दिया। यह जनादेश भारत को विकास की पटरी पर सरपट दौड़ाने के लिए था। विकास की एक नई लकीर खींचने के लिए था। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जनआंकाक्षओं पर खरे उतरने की पूरी कोशिश भी की। विकास की रफ्तार तेज करने के लिए परिवहन के लिए ढांचागत विकास पहली जरूरत थी। ऐसे में सड़क परिवहन के साथ ही जलमार्ग की जिम्मेदारी नितिन गडकरी को सौंपी गई। ऐसे में परिवहन के तीन प्रमुख क्षेत्रों के विकास पर ध्यान दिया जाना शुरू किया गया। पहला रेल, दूसरा सड़क और तीसरा जलमार्ग। इसमें जलमार्ग हर दृष्टि से भारत के अनुकूल दिखा। लेकिन आजादी के बाद इस क्षेत्र पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
विश्व बैंक के अध्ययन के अनुसार जलमार्ग अन्य दोनो परिवहन के साधनों से काफी सस्ता है। सड़क परिवहन पर जहां 1 टन माल को 1 किलोमीटर ले जाने पर 2.28 रूपए खर्च आता है। जबकि रेलवे के जरिए 1.41 रूपए खर्च आता है। जबकि जलमार्ग पर यही खर्च सिर्फ 1.19 रूपए का खर्च होता है। इस हिसाब से अगर जलमार्ग का उपयोग ज्यादा किया जाता है तो हजारों करोड़ का ईधन बचाया जा सकता है। साथ ही जब परिवहन पर खर्च कम होगा तो सामान भी सस्ता होगा। हम चीन के सस्ते सामानों से मुकाबला कर सकते हैं। क्योंकि आंकड़े यही बताते हैं कि जहां चीन परिवहन के लिए 8.7 प्रतिशत जलमार्ग का उपयोग करता है, वहीं भारत सिर्फ 0.5 प्रतिशत उपयोग करता है। अमेरिका भी 8.3 प्रतिशत तो यूरोप 7 प्रतिशत जलमार्ग का उपयोग करता है। ऐसे में भारत बहुत पीछे है।
पर्यावरण की दृष्टि से भी जलमार्ग अन्य दोनों साधनों से उत्तम है। पर्यावरण के लिहाज से सड़क मार्ग से केवल 24 टन के लिए हम 1 लीटर खर्च करते हैं और रेल के जरिए 85 टन के लिए 1 लीटर, जबकि जलमार्ग के रास्ते हम 105 टन के लिए सिर्फ 1 लीटर तेल खर्च होता है। ये आंकड़े विश्व बैंक के हैं। इसलिए जलमार्ग पर्यावरण के लिए उत्तम है।
यही कारण है कि केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जलमार्गों की महत्ता को देखते हुए कई योजनाओं की शुरुआत की। अभी तक भारत में सिर्फ 5 जलमार्ग घोषित थे। लेकिन मोदी सरकार ने 101 नए जलमार्ग को बनाए जाने की योजना बनाई है। यह काम काफी कठिन भी है। दरअसल,प्रत्येक जल मार्ग के लिए कम से कम 4 विभागों से मंजूरियां लेनी होंगी जो अपने आप में बहुत दुरुह प्रक्रिया है। इसके अलावा जलमार्ग परिवहन के दौरान नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए स्प्ष्ट एवं प्रभावी नीति भी बनाई गई है। लोकसभा में राष्ट्रीय जलमार्ग बिल पारित हो गया है। इसमें 101 नदियों के मुहाने और नहरों को जलमार्ग बनाए जाने की घोषणा की गई है। पहले से ऐसे पांच जलमार्ग मौजूद हैं। विधेयक पेश करते समय उस समय के जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी का कहना था कि जलमार्गों से सामानों की ढुलाई लागत में कमी आएगी और इससे इंडस्ट्री, किसानों और मछुआरों को मदद मिलेगी। नितिन गडकरी की बात को विश्वबैंक के अध्ययन से सामने आए आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं।
इस परियोजना के पूरा होने पर सड़क तथा रेल से काफी माल परिवहन अन्तरदेशीय जलमार्गों की ओर मोड़ने में सफलता मिल सकेगी। केन्द्रीय सड़क परिवहन और जहाजरानी मंत्री नितीन गडकरी इस मामले को लेकर सरकार बनने के बाद से ही सक्रिय थे। गडकरी का कहना है कि परियोजना के लिये धन की कमी नहीं होगी। भारत के सभी राजनीतिक दलों में जलमार्गों के विकास को लेकर आम सहमति है और संसदीय समिति खुद लगातार इसकी पैरोकारी करती रही है।
सरकार अगले पांच वर्षों में जलमार्गों के विकास पर 50 हजार करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च करके एक मजबूत ढांचा खड़ा करने की तैयारी में है। मोदी सरकार की योजना है कि आगामी एक दशक में जल परिवहन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को आगे करते हुए पांच लाख करोड़ रुपए तक का निवेश हो जाये। भारत सरकार एक एकीकृत राष्ट्रीय जलमार्ग परिवहन ग्रिड की स्थापना की दिशा में भी आगे बढ़ रही है। इसके तहत 4503 किमी जलमार्गों के विकास की योजना है।
भारत को तमाम पवित्र और विशाल नदियों का वरदान मिला है। हमारे देश में अनेक छोटी-बड़ी नदियों का जाल फैला हुआ है। इनमें कुछ नदियां तो विश्व की बड़ी नदियों में शामिल हैं। साथ ही नहरों, झीलों, बड़े जलाशयों जैसे अन्त:स्थलीय जल संसाधन बिखरे पड़े हैं। भारत के 14,500 किमी नौचालन योग्य अन्तरदेशीय जलमार्गों में से करीब 5,200 किमी नदियां और 485 किमी नहरें ऐसी हैं जिन पर यांत्रिक जलयान चल सकते हैं।
सरकार ने अन्तरदेशीय जल परिवहन के विकास की दिशा में जो ठोस पहल की है, वे अगर ज़मीन पर उतरती हैं तो यह भविष्य के लिहाज से मील का पत्थर साबित होंगी लेकिन इसके लिए योजनाकारों को बहुत सावधानी से काम करने और प्राकृतिक पथ के संरक्षण की दिशा में लगातार सक्रिय रहने की जरूरत होगी। प्राकृतिक पथ यानी जलमार्ग कभी हमारी परिवहन व्यवस्था की जीवनरेखा हुआ करता था लेकिन समय के साथ आये बदलावों और परिवहन के आधुनिक साधनों के चलते बीती एक सदी में यह क्षेत्र बेहद उपेक्षित होता चला गया।
भारत के पास 14,500 किमी जलमार्ग है और हमें तमाम विशाल सदानीरा नदियों, झीलों और बैकवाटर्स का उपहार भी मिला है लेकिन हम इसका उपयोग नहीं कर सके और समय के साथ इनकी क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई। शक्तिशाली नदियों की नौवहन क्षमता तक प्रभावित हो गई। पहली बार प्रधानमंत्री वर्तमान की पहल पर भारत के जलमार्गों का विकास सरकार के खास एजेंडे पर है। तमाम नई विकास परियोजनाएं आरम्भ करते हुए कायाकल्प की योजना को जमीन पर उतारने की तैयारी में हैं। अगर ऐसा होता है तो परिवहन क्षेत्र में एक क्रान्ति देखने को मिलेगी और भारी दबाव से जूझ रहे सड़क और रेल परिवहन तंत्र को भी काफी राहत मिलेगी।
आज जमीनी हकीक़त यह है कि हमारे देश में केरल, असम, गोवा और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो बाकी जगहों की स्थिति ठीक नहीं है। जबकि यूरोप, अमेरिका, चीन तथा पड़ोसी बांग्लादेश में काफी मात्रा में माल की ढुलाई अन्तरदेशीय जल परिवहन तंत्र से हो रही है। जलमार्गों को बनाए जाने और उसे चलाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बड़े निवेश की जरूरत होगी। इसके अलावा इसके लिए कई तरह के पर्यावरणीय मंजूरियों की जरूरत होगी। इसके बाद सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जहाजों की आवाजाही से मछुआरों की आजीविका पर कोई असर नहीं होगा और नहीं नदियां प्रदूषित होंगी। जिस देश में आधे से अधिक नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हैं वहां पर्यावरण की नीतियों को सख्ती से लागू करने की जरूरत होगी। राष्ट्रीय जलमार्ग नदियों और नहरों का नेटवर्क है जिसका इस्तेमाल जहाजों की आवाजाही में किया जाएगा। जहाजों की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कार्गो, हब्स, हार्बर्स बनाने के साथ नदियों को गहरा करने का भी काम करना होगा। हालांकि यात्री जहाज की आवाजाही हो सकती है लेकिन अंतर्देशीय जलमार्ग केवल व्यावसायिक जहाजों के लिए तैयार किया गया है।
अंतरदेशीय जलमार्ग भारत में फिलहाल शुरुआती अवस्था में है लेकिन विदेशों में यह आम यातायात का हिस्सा है। अमेरिका में 40 हज़ार किलोमीटर लंबा जलमार्ग है जिसकी मदद से हर साल 73 अरब डॉलर के सामानों की ढुलाई की जाती है। एक अनुमान के मुताबिक सड़क की बजाए जलमार्ग से सामनों की ढुलाई से अमेरिका को सालाना 7 अरब डॉलर की बचत होती है। चीन के पास इससे भी बड़ा जलमार्ग का नेटवर्क है। चीन में 1.1 लाख किलोमीटर लंबा जलमार्ग का नेटवर्क है।
भारत के पास 14,500 किलोमीटर लंबा जलमार्ग बनाने की क्षमता है लेकिन मौजूदा नेटवर्क संभावित नेटवर्क का महज एक तिहाई ही है। इसके अलावा कुल ढुलाई का महज 3 पर्सेंट ही इस रास्ते से ढोया जाता है। देश में सड़क और रेल के मुकाबले जलमार्गों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली है। इसलिए सरकार की कोशिश पर्यावरण हितैषी परिवहन मार्ग बनाने की ताकि लागत और ईंधन खर्च में कमी लाई जा सके।
भारत में पहले से पांच जल मार्ग हैं। पहला इलाहाबाद-हल्दिया जलमार्ग जिसकी घोषणा 1982 में की गई थी। वहीं ब्रह्मपुत्र से जुड़े सादिया-धुबरी मार्ग की घोषणा 1988 में की गई थी। वेस्ट कोस्ट कनाल की घोषणा 1992 में की गई जबकि दो अन्य जलमार्गों की घोषणा 2008 में की गई। इन सभी का संचालन इनलैंड वाटरवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया करती है। बिल में 101 नए जल मार्ग को बनाए जाने की घोषणा की गई है। सभी प्रस्तावित 101 जलमार्गों में से एक को बनाने में कम से कम 10 सालों का समय लगेगा।
मौजूदा जलमार्गों को लेकर अभी तक बहुत सफलता नहीं मिली है। पांच में से महज तीन ही चालू है और जो चल रहे हैं उनमें यातायात बेहद कम है। इन मार्गों से सबसे ज्यादा ढुलाई एनटीपीसी करती है जो फरक्का सेक्शन से कोयले की ढुलाई करती है।
यह सही है कि इस दिशा में आगे बढ़ने की सबसे गंभीर चुनौती इसकी व्यावहारिकता है। नदियों में जहाज की आवाजाही के लिए पर्याप्त पानी ही नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकांश नदियां बरसाती है और इनमें केवल मॉनसून के दौरान ही पानी रहता है। अभी तक सरकार महज 12 प्रस्तावित जलमार्गों को ही व्यावहारिक मान रही है और उसके लिए टेंडर भी जारी कर दिए गए हैं। 44 जल मार्गों के लिए वह व्यावहारिकता रिपोर्ट बनाने की दिशा में विशेषज्ञों को आमंत्रित कर रही है। बाकी बचे 45 के मामले में अभी कोई पहल नहीं की जा सकी है। जब यह पास हो जाएगा तब केवल 101 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित कर दिया जाएगा। जल मार्गों को बनाने में करीब 35,000 करोड़ से अधिक का बजट आएगा।