लोकतंत्र में जन-सत्ता का अर्थ क्या होता है? अब्राहम लिंकन के शब्दों में कहें तो, ‘जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा’. यह परिभाषा 19वीं सदी की है. जैसे-जैसे दशक आगे बढ़ रहे हैं और विश्व आधुनिक, सभ्य और अधिक लोकतान्त्रिक बनने की दिशा में आगे बढ़ रहें हैं वैसे-वैसे लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गई सरकारें अलोकतान्त्रिक एवं स्वेच्छाचारी होती जा रहीं हैं.यकीन ना हो तो इसका ताज़ा उदाहरण देखिये,
दिल्ली सरकार द्वारा ऐप आधारित ‘बाइक-टैक्सी’ ओला, उबर और रैपिडो संचालकों को निजी वाहनों का इस्तेमाल बंद करने को जारी आदेश. सरकार के परिवहन विभाग ने दिल्ली की सड़कों पर ‘बाइक-टैक्सी’ परिचालन से जुड़े लोगों को नियमों के हवाले से चेताते हुए आदेश जारी किया है कि यह मोटर वाहन अधिनियम,1988 का उल्लंघन है और सेवा प्रदाता कंपनियों पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है.विभाग ने एक सार्वजनिक नोटिस में कहा है कि निजी पंजीकरण नंबर वाले दो पहिया वाहनों का उपयोग वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए करना मोटर वाहन अधिनियम,1988 का उल्लंघन है। इस अपराध में पहली बार लिप्त पाये जाने पर 5,000 रुपये, जबकि दूसरी बार 10,000 रुपये का जुर्माना और एक साल तक की कैद की सजा हो सकती है. अब एक राइड में 70-80 रूपये कमाने वाले रैपिड़ो चालकों से इतना जुर्माना वसूलना सनकपन ही माना जा सकता है. इस तुगलकी सरकारी फरमान की वजह से इस सेवा से जुड़े हजारों चालकों का भविष्य अधर में पड़ गया है. उनका रोजगार खतरे में हैं ऊपर से इन कंपनियों के राजस्व पर पड़ने वाले चोट से उनके अपने कर्मचारियों की नियुक्तियां भी खतरे में पड़ेंगी क्योंकि अपनी पूँजी बचाने के लिए ये अतिरिक्त कर्मचारियों की छंटनी भी करेंगे.
इस विषय पर आम आदमी पार्टी सरकार के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने सोमवार को कहा कि दो, तीन और चार पहिया वाहनों की ऐप आधारित (टैक्सी) सेवाओं के लिए नीति अपने शुरुआती चरण में है तथा यह जल्द ही लायी जाएगी. लेकिन इस जल्दी की कोई तय समय उन्होंने नहीं की. उनकी यह अनिश्चित कालीन योजना कई तरह की नकारात्मकता का प्रसार करेगी.
आज रोजगार में लगे ये युवक कल आर्थिक दिक्क़तों से प्रताड़ित होकर अपराधी भी बन सकतें हैं क्योंकि भूख और जरूरतें परिवहन विभाग के क़ानून पढ़ने से पूरी तो होगी नहीं. दूसरे बेरोजगारों की भीड़ बढ़ेगी जो राजनीतिक अवसर तलाशते दलों या नेताओं के लिए एक मारक अस्त्र का काम करेंगी जिसका इस्तेमाल जुलूसों और दंगा-फसाद फैलाने के काम आयेगा. साथ ही कम पैसे में आम जनता के लिए सुलभ परिवहन के इन साधनों के बंद होने से जनता की जेब पर और बोझ बढ़ेगा. महंगाई से त्रस्त जनता के लिए यह कोढ़ में खाज की स्थिति होगी.
आश्चर्य है कि इतनी सामान्य सी बात बात दिल्ली की आप सरकार के हुक्मरानो को क्यों नहीं समझ आ रहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि सकरात्मकता से अधिक नकारात्मक कार्यों और भाषणों के लिए अधिक चर्चित रहने वाली आम आदमी पार्टी फिर से ऐसा ही कुछ करने वाली है. अगर ऐसा है तो यह अनुचित है. सरकारें जन सेवा के लिए कुछ करें ना करें परन्तु जनता को चैन से जीने दें और उनका पेट भरें ना भरें कम से कम उनके पेट पर लात तो ना मारे.