अंततः कवि मोहम्मद इकबाल को दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद ने राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम से हटा ही दिया। बीए के छठे सेमेस्टर के पेपर में इसे “आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचार शीर्षक” से शामिल किया गया था। यह देर से किया गया एक दुरूस्त निर्णय है। उर्दू और फारसी के इस शायर ने ही कभी लिखा था : “सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्तां हमारा”। बाद में बदल कर लिखा : “मुस्लिम हैं हम वतन हैं, सारा जहाँ हमारा। आसाँ नहीं मिटाना, नाम ओ निशाँ हमारा। ख़ंजर हिलाल का, है क़ौमी निशाँ हमारा ॥”
अधुना इकबाल इस्लामी पाकिस्तान के राष्ट्रकवि हैं। मोहम्मद अली जिन्ना के आदर्श रहे। उन्हें पाकिस्तान की अवधारणा का शिल्पी भी माना जाता है। भारत के विभाजन के लिए मोहम्मद अली जिन्ना के बराबर ही मोहम्मद इकबाल को भी दोषी माना गया है।
हालांकि मोहम्मद इकबाल का निधन 21 अप्रैल 1938 को हो गया था। पर उनकी प्रेरणा से ही 23 मार्च 1940 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग का प्रस्ताव लाहौर अधिवेशन में रखा था। तभी यह स्वीकार हुआ था। इस प्रस्ताव के द्वारा ब्रिटिश भारत के उत्तर पश्चिमी पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए “स्वतंत्र रियासतों” की मांग की गई थी। इन इकाइयों में शामिल प्रांतों को स्वायत्तता एवं संप्रभुतायुक्त बनाने की भी बात की गई थी। फिर यह संकल्पना भारत के मुसलमानों के लिए पाकिस्तान नाम के एक अलग स्वतंत्र स्वायत्त मुल्क बनाने की मांग में परिवर्तित हो गया। इस प्रस्ताव के उपलक्ष में प्रति वर्ष 23 मार्च को इस्लामी कौम में यौम-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
क्या विरोधाभास है कि उनके मशहूर गीत “सारे जहाँ से अच्छा” और “तराना-ए-हिन्दी”, (उर्दू भाषा में लिखी गई देशप्रेम की एक गजल) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश राज के विरोध का प्रतीक बनी थी। इसे आज भी देश-भक्ति के गीत के रूप में भारत में गाया जाता है। अनौपचारिक रूप से भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा प्राप्त है। इसे इक़बाल ने 1905 में लिखा था और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाया था। यह इक़बाल की रचना “बंग-ए-दारा” में शामिल है। इक़बाल लाहौर के सरकारी कालेज में प्राचार्य थे। जब उन्हें राष्ट्रभक्त लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया तो कवि ने भाषण देने के बजाय यह गजल पूरी उमंग से गाकर सुनाई। सन 1950 के दशक में सितार-वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुर-बद्ध किया था। जब इंदिरा गांधी ने भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो शर्मा ने इस गीत की पहली पंक्ति कही थी। मगर अब ? एक त्रासदी का सूचक यह बन गया है।
सर्वाधिक पीड़ादायक वृतांत तो इस महान कवि का यह रहा कि वे कट्टर अंधविश्वासी, मजहबी बने ही रहे। अल्लामा (विद्वान) इकबाल एक अनपढ़ जेहादी कातिल इल्मुद्दीन के नमाजे-जनाजा मे (31 अक्टूबर 1929) लाहौर में शरीक हुए थे। उनका मशहूर बयान था : (एक तारखान दा मुंडा, ए तो गाजी बन गया।) “ओ पढ़े-लिखे लोगों ! एक बढ़ई के जवान बेटे ने हम सबको पीछे छोड़ दिया है।” वे इस काष्टकार की खूनी औलाद इल्मुद्दीन के महान प्रशंसक और समर्थक वे बन गए थे। कौन था यह सिरफिरा हत्यारा ? इसकी शवयात्रा में मोहम्मद इकबाल के साथ कम्युनिस्ट शायर मियां मुहम्मदद्दीन तासीर भी थे। इन्हीं तासीर के बेटे थे मियां सलमान तासीर जो पंजाब (पाकिस्तान) के गवर्नर रहे। उन्हीं के अंगरक्षक मलिक मुमताज हुसैन कादरी ने उन्हें 2011 में गोलियों से भून दिया था, क्योंकि उनकी राजाज्ञा थी कि एक निरीह ईसाई महिला को ईशनिंदा के आरोप में फांसी न दी जाए। वे रहम करना चाहते थे। गवर्नर सलमान तासीर ने 1980 में भारतीय सिख पत्रकार तवलीन सिंह से निकाह किया था। उनका पुत्र लेखक आतिश तासीर लंदनवासी है। नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी अप्रवासी भारतीय नागरिकता निरस्त कर दी थी क्योंकि वे पाकिस्तान के समर्थक हैं। मृतक सलमान तासीर के चार अर्धांगिनियों से सात संताने हुई थी। प्रश्न है कि तासीर के सखा अल्लामा इकबाल इस हत्यारे इल्मुद्दीन के समर्थक क्यों बने ? इस बढ़ई जिहादी ने मशहूर-प्रकाशक राजपाल एंड संस के महाशय राजपाल की छुरे से हत्या कर दी थी। कारण ? राजपाल प्रकाशन ने एक किताब 1923 में प्रकाशित की थी। नाम था “रंगीले रसूल।” मगर इसके प्रकाशन के पहले, मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें प्रकाशित की गईं थी : “कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी” और “उन्नीसवीं सदी का महर्षि”। उन दोनों पुस्तकों में योगेश्वर श्रीकृष्ण और महर्षि दयानन्द पर बहुत ही भद्दे और अश्लील शब्दों का प्रयोग किया गया था। इन दोनों पुस्तकों के प्रत्युत्तर में महाशय राजपाल जी ने ‘रंगीला रसूल’ नाम की पुस्तक प्रकाशित की थी। इस पुस्तक के लेखक के नाम के स्थान पर ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ लिखा था। इन्हीं महाशय राजपाल के पुत्र थे दीनानाथ मल्होत्रा जो स्वतंत्रता सेनानी थे, यूनेस्को के सलाहकार थे। करीब 6,500 किताबें भी छापी। हिंद पॉकेट बुक के वे स्वामी थे। उनके संस्मरणों के नाम हैं : “डेयर टू पब्लिश।”
अल्लामा इकबाल ने इल्मुद्दीन को शहीद करार दिया था। उसके वकील थे मोहम्मद अली जिन्ना जिन्हें इकबाल ही हत्यारे के बचाव में मुंबई से लाहौर हाईकोर्ट में लाए थे। इल्मुद्दीन को सैनिक तानाशाह जनरल मोहम्मद जियाउल हक ने शहीद का दर्जा दिया था। मियांवाली जेल में एक मस्जिद भी बनाई गई जिसे गाजी इल्म-उद-दीन शहीद इबादतगाह नाम दिया गया।
तो यह है दास्ताने-इकबाल जिन्हें प्रचारित किया गया था कि वे हिंदुस्तान को ही दुनिया भर में सबसे अच्छा मानते थे। तब वे सेक्युलर थे, गंगाजमुनी थे, हिंदू-मुस्लिम भाईचारा के प्रतिपादक थे। न जाने क्या क्या थे ? फिर क्या हो गए ?
( लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं )