लद चुके हैं कश्मीर घाटी में अलगाववादी नेताओं के दिन

बनवारी

फारूख अब्दुल्ला ने पिछले एक महीने में सीमाओं पर चीन के आक्रामक रुख को लेकर जो बातें कही हैं, वे देशद्रोह से कम नहीं है। यह भारत के लोकतंत्र की शक्ति ही है कि इसके बाद भी वे खुले घूम रहे हैं। किसी भी और देश में इस तरह की बात कहने वाले को तत्काल जेल में डाल दिया गया होता। इस समय चीन लद्दाख में हमारी नियंत्रण रेखा पर दबाव बनाए हुए हैं।

भारतीय सेना कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए बहादुरी से सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात है और देश की रक्षा में लगी हुई है। इन परिस्थितियों में फारूख अब्दुल्ला ने कहा है कि चीन भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 हटाए जाने से नाराज है, इसीलिए वह सीमा पर दबाव बना रहा है। वह ऐसा कश्मीरी लोगों के हित में कर रहा है, इसलिए कश्मीरी लोग उसका स्वागत करेंगे।

फारूख अब्दुल्ला इस समय लोकसभा के सदस्य हैं। लोकसभा सदस्य के रूप में उन्होंने जो शपथ ली है, उनकी यह बातें उसका उल्लंघन हैं। वे कई बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। इसलिए वे जो बातें कह रहे हैं, उसका अर्थ न समझते हो, यह नहीं हो सकता।

फारूख अब्दुल्ला में कोई राजनैतिक नैतिकता होती तो यह सब कहने से पहले उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया होता। फारूख अब्दुल्ला के बाद उनकी कही बातों की गूंज महबूबा मुफ्ती में भी सुनाई दी। महबूबा मुफ्ती और उनकी पार्टी कश्मीर के मामले में पाकिस्तान को एक पक्ष बनाने की लगातार वकालत करती रही हैं। वे और उनकी पार्टी आतंकवादियों के प्रति निरंतर नरम रुख अपनाती रही हैं। इन दोनों नेताओं की देखादेखी घाटी के कुछ और अलगाववादी नेता भी सीमा पर चीन की आक्रामकता के समर्थन में यही सब बातें दोहराने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

फारूख अब्दुल्ला ने यह सब बातें सबसे पहले 23 सितम्बर को करन थॉपर को दिए गए एक साक्षात्कार में कही थी। संविधान से अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि आज कोई कश्मीरी अपने आपको भारतीय नहीं मानता। कश्मीर के लोग अपने बीच भारतीय सेना को देखने की बजाय चीनी सेना को देखना पसंद करेंगे। फारूख अब्दुल्ला के उस पूरे साक्षात्कार से स्पष्ट है कि यह बातें उन्होंने जानबूझकर इस उत्तेजक भाषा में कही थी, वह पूरा साक्षात्कार इन सब बातों को कहने के लिए ही आयोजित किया गया लगता है। उसका उद्देश्य उत्तेजना पैदा करना और प्रशासन को किसी कार्रवाई के लिए उकसाना था। पर उन्होंने जो कहा, उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह समझना है कि उन्होंने यह सब इस समय क्यों कहा।

फारूख अब्दुल्ला का कहना था कि उन्हें 5 अगस्त 2019 के बाद घर में नजरबंद कर दिया गया था। बाद में 16 सितम्बर को उन्हें पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन इस वर्ष 13 मार्च को उन्हें छोड़ दिया गया। 24 मार्च को उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला को भी रिहा कर दिया गया। अपनी रिहाई के लगभग छह महीने बाद फारूख अब्दुल्ला को इस तरह की देशद्रोह से भरी बातें कहने की आवश्यकता क्यों अनुभव हुई?

चीन के कारण सीमा पर तनाव पैदा हुए भी पांच महीने से ऊपर हो चुके हैं। इतने दिनों बाद उन्हें कश्मीर की आजादी के लिए चीन को आमंत्रित करने जैसी भाषा बोलने की अचानक इच्छा क्यों हुई? इसका एक ही तार्किक उत्तर हो सकता है कि उन्हें ऐसा कहने के लिए कहा गया है। वह किसके इशारे पर यह सब बोल रहे हैं- पाकिस्तान के या चीन के या दोनों के। इस बात की गंभीरता से छानबीन की जानी चाहिए। कश्मीर घाटी के इन सब नेताओं के तार पाकिस्तान से तो हमेशा जुड़े रहे हैं, अब उनके तार चीन से भी जुड़ गए लगते हैं। यह एक गंभीर स्थिति है, जिसकी पूरी जांच-पड़ताल होनी चाहिए।

संविधान से अनुच्छेद 370 हटे एक वर्ष से अधिक हो चुका है। कश्मीर घाटी के सभी अलगाववादी नेताओं को आशा थी कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से कश्मीर घाटी में उबाल आ जाएगा। लेकिन कश्मीर घाटी पिछले एक वर्ष में न केवल शांत रही है, बल्कि कश्मीर के लोगों ने काफी राहत अनुभव की है। आतंकवादी घटनाओं और अलगाववादी आंदोलनों में कमी आई है। इससे सबसे अधिक परेशान पाकिस्तान है।

पाकिस्तान की राजनीति में कश्मीर का क्या महत्व रहा है, इसे बताने के लिए जनरल मुशर्रफ ने कहा था कि वह पाकिस्तान की जुगलर वेन है। असल में पाकिस्तान भारत से नफरत की जिस भावना को लेकर पैदा हुआ था, उसे पाले रखने का कश्मीर माध्यम बना दिया गया है। वरना शुरू में मुस्लिम लीग की मुस्लिम राज्य की योजना तक में कश्मीर का जिक्र नहीं था। मोहम्मद इकबाल ने उन्हें मुस्लिम लीग की योजना में शामिल करवाया था।

पाकिस्तान बनने के बाद उसके नेता अपने आंतरिक अंतर्विरोधों से ध्यान हटाने के लिए कश्मीर का इस्तेमाल करते रहे हैं। पाकिस्तान में सेना अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए भी कश्मीर को विवाद बनाए रखना चाहती है। भारत द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त करने से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय विवाद बनाए रखना पाकिस्तान के लिए मुश्किल हो गया है। पिछले दिनों भारत द्वारा की गई सैनिक कार्रवाइयों ने पाकिस्तान में यह डर भी पैदा कर दिया है कि भारतीय नेता कश्मीर का पाकिस्तान नियंत्रित भाग लेने के लिए भी कदम उठा सकते हैं। इन्हीं सब बातों से परेशान होकर पाकिस्तान के नेता चीनी नेताओं के सहयोग से सुरक्षा परिषद समेत दुनियाभर के सभी देशों और संस्थाओं के दरवाजे खटखटाते रहे हैं। पर तुर्की के एर्दाेआन और मलेशिया के महातिर को छोड़कर कोई कश्मीर पर पाकिस्तान का पक्ष लेने के लिए तैयार नहीं हुआ।

फारूख अब्दुल्ला का यह कहना गलत नहीं है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के कारण चीन लद्दाख में तनाव पैदा कर रहा है। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि चीन कश्मीर में सैनिक हस्तक्षेप कर सकता है। चीन भारत सरकार द्वारा लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्रशासित क्षेत्र बनाए जाने से आशंकित है। उसे यह चिंता पैदा हो गई है कि देर-सबेर भारत उससे अक्साईचिन का अपना इलाका वापस पाने की कोशिश कर सकता है। उसे लगता था कि लद्दाख में रणनीतिक महत्व के क्षेत्रों को अधिकार में लेकर वह भारत को लद्दाख में अपनी सैनिक गतिविधियां रोकने के लिए मजबूर कर सकता है। पर भारतीय सेना ने उससे अधिक कौशल दिखाते हुए रणनीतिक महत्व की अधिक चोटियों पर अपना अधिकार जमा लिया, बल्कि चीन को यह भी बता दिया कि वह अपनी सेनाओं की रक्षा में समर्थ है और वह चीन के साथ किसी भी युद्ध के लिए तैयार है। इससे चीन की योजना भी फिलहाल विफल हो गई लगती है।

पाकिस्तान आंतरिक कलह में फंसता जा रहा है। पाकिस्तान के विरोधी दलों ने इमरान अहमद खान नियाजी की सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। इमरान खान अपने नाम के साथ नियाजी लगाने से परहेज करते रहे हैं। क्योंकि यह उस पाकिस्तानी जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी की याद दिलाता है, जिसने बांग्लादेश युद्ध के समय अपने 93000 सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसर्मपण कर दिया था। लेकिन पाकिस्तान के विपक्षी नेता यह दिखाने के लिए ही इमरान खान के नाम के साथ नियाजी जोड़ रहे हैं कि वे भारत की अनुच्छेद 370 हटाने की पहल से भारत के सामने परास्त हो गए हैं। आज पूरे पाकिस्तान में यह नारा गूंज रहा है- मुक गया तेरा शो नियाजी, गो नियाजी गो।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर विवाद को जिलाए रखने के लिए पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर में राजनैतिक अशांति हो। अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण आतंकवादियों का इस्तेमाल करना उसके लिए दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है। इसलिए वह कश्मीर घाटी के नेताओं से कोई उत्तेजक कार्रवाई करवाना चाहता है। अब पाकिस्तान के भरोसे घाटी के नेताओं में कोई उत्तेजना नहीं फैलाई जा सकती क्योंकि सब देख रहे हैं कि पाकिस्तान की आंतरिक हालत खराब है और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी साख खो चुका है। इसलिए घाटी के कश्मीरी नेताओं को आंदोलित करने के लिए चीन के नाम का उपयोग करवाया जा रहा है। 16 अक्टूबर को इसी उद्देश्य से सालभर पुरानी गुपकार घोषणा पर अमल के लिए छह दलों का एक नया मोर्चा पीपुल्स एलाइंस बनाया गया है। उसके अध्यक्ष फारूख अब्दुल्ला हैं और उपाध्यक्ष महबूबा मुफ्ती। कांग्रेस पिछले वर्ष चार अगस्त की गुपकार बैठक में शामिल थी। पर इस बार वह इस देशद्रोही अभियान से जुड़ने की हिम्मत नहीं कर पाई।

महबूबा मुफ्ती ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की अवमानना करके अपने लिए एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस समेत घाटी के अनेक नेता महबूबा मुफ्ती के बयान का विरोध करने के लिए सामने आए हैं। घाटी के भाजपा नेता महबूबा के इस बयान के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत करते हुए यह मांग कर चुके हैं कि राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के कारण पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए।

केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन ने फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की उत्तेजक शब्दावली को नजरअंदाज करके ठीक ही किया है। यह सब चुके हुए नेता हैं। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर इन सभी नेताओं की राजनीति समाप्त कर दी है। यह नेता पूर्व स्थिति बहाल न होने तक चुनाव न लड़ने की घोषणा कर रहे हैं। पर वे जिन पदों के लिए चुनाव लड़ते रहे हैं, अब वे पद ही समाप्त हो गए हैं। वैसे भी कश्मीर घाटी की राजनीति बदल रही है और उसमें इन चंद परिवारों का नियंत्रण समाप्त हो चला है।

फारूख अब्दुल्ला ने लोकसभा सदस्य होते हुए यह सब भाषा बोलकर मर्यादा लांघी है। लोकसभा में इस भाषा की निंदा का प्रस्ताव आना चाहिए और फारूख अब्दुल्ला पर लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के लिए नैतिक दबाव बनाना चाहिए। इससे अधिक इन नेताओं को महत्व देने की आवश्यकता नहीं है। इन सभी नेताओं की राजनीति अब निरर्थक हो गई है। कश्मीर घाटी में अलगाववादी नेताओं के दिन लद चुके हैं।

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