अभी दिल्ली में चुनाव का माहौल है ,मुख्य मुकाबला,आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच है | कांग्रेस भी तीसरे स्थान के लिए हाथ पैर मार रही है | केजरीवाल की पार्टी का उदय तो अन्ना आन्दोलन से हुआ ये तो सभी जानते हैं | उस दौरान पार्टी से कई लोग जुड़े | फिलहाल अब कई लोग पार्टी से खुद निकल गए और कई लोग निकाल दिए गए | अब आम आदमी पार्टी केजरीवाल कि पार्टी हो कर रह गई है | अब आते है मुद्दे पर इसी दौरान मुझे ‘केजरी कथा’ नाम का पुस्तक कही से मिली| इस पुस्तक में कभी अरविन्द केजरीवाल की साथी रही निर्मला शर्मा जो अब इस दुनियां में नहीं रही से बातचित का अंश लिख रहा हूँ कि कैसे केजरीवाल का परिवर्तन से संपूर्ण परिवर्तन हुआ |
पुरानी बात नहीं है। कुछेक साल पहले तक अरविंद केजरीवाल ‘परिवर्तन’ नाम की गैर सरकारी संस्था के नाम पर काम करते थे। इस संस्था से ही उनका परिचय था। इससे सवाल खड़े हो गए हैं। वह यह कि यदि ‘परिवर्तन’ उनकी संस्था थी तो ‘संपूर्ण परिवर्तन’ से उनका क्या रिश्ता था?
“यह पत्र लो और इसे थाने में देकर आओ। मैंने इस पत्र की दूसरी कॉपी भी आपको दी है, उसमें दस्तखत करवा लेना और मुहर भी लगवा लेना।” एक समय मेधा पाटकर की सहयोगी रही निर्मला शर्मा एक लड़की को समझाते हुए यह बात कहती हैं। दरअसल, लड़की को उसके घर वाले परेशान करते हैं। मदद के लिए वह निर्मला शर्मा के पास आई थी। निर्मला शर्मा ‘जागृति महिला समिति’ की अध्यक्ष थी। उनसे जब अरविंद केजरीवाल की संस्था ‘परिवर्तन’ के बाबत पूछा तो बोल पड़ीं “छोड़िए, वह लोगों को ठग रहा है।” आगे एक सवाल पर निर्मला शर्मा कुछ देर के लिए पूरी तरह शांत हो गईं। फिर कमरे के भीतर गईं और फाइलों का एक गट्ठर हमारे सामने लाकर रख दिया। उन्होंने कहा, “इसमें अरविंद केजरीवाल के ‘परिवर्तन’ का सारा चिट्ठा है। केजरीवाल के ‘परिवर्तन’ और ‘संपूर्ण परिवर्तन’ की पूरी कहानी इसमें है।”
इस गट्ठर से एक पत्र निकालकर निर्मला शर्मा ने दिया। वह पत्र 13 सितंबर, 2002 का है, जो अरविंद केजरीवाल ने निर्मला शर्मा के नाम लिखा था। उस पत्र के साथ केजरीवाल ने ‘संपूर्ण परिवर्तन’ की नियमावली की एक कॉपी भी लगाई थी। केजरीवाल ने इस पत्र के साथ 25 लोगों की सूची भी संलग्न की थी। अरविंद केजरीवाल ने यह पत्र उस समय लिखा था, जब उन्हें और उनके साथियों को ‘संपूर्ण परिवर्तन’ नाम की संस्था का सदस्य नहीं बनाया जा रहा था। पत्र में अरविंद केजरीवाल ने निर्मला शर्मा को जो बात लिखी है, उसका एक अंश हूबहू इस प्रकार है- “मैं जयपुर गया हुआ था। आपने जो सदस्यों की सूची मांगी थी। मैं सदस्यों की सूची के साथ ही संस्था का बायलॉज भी भेज रहा हूं। जो लोग आपकी उपस्थिति में सदस्य बने थे, उसके बाद दो और लोगों ने सदस्य बनने की इच्छा जताई थी। उनका नाम विश्वास और अहमद है। इन दोनों ने भी अपनी सदस्यता शुल्क भिजवा दी है।” केजरीवाल आगे लिखते हैं कि संस्था के संविधान के मुताबिक जीबीएम बुलाने के लिए 15 दिन का नोटिस देना होता है। इसके तहत हर साल सितंबर तक चुनाव होने चाहिए, लेकिन आज तक किसी को नोटिस नहीं मिली। निर्मला जी आपके सामने जो लोग सदस्य बने थे, उनके लिए प्रस्ताव पास नहीं किया गया है। कुछ लोग कहते हैं कि जो लोग संस्था से वेतन लेते हैं, वे साधारण सदस्य भी नहीं बन सकते। यह गलत है। हमारे कर्मचारी मिशन की भावना से काम कर रहे हैं। इसलिए वे किसी भी स्वयंसेवी से कम नहीं हैं। ‘परिवर्तन’ का संविधान किसी भी तरह का रोक नहीं लगाता। अगर रोक लगाया जाता है तो यह सरासर गलत है।
यहां अरविंद केजरीवाल ‘परिवर्तन’ नाम की संस्था की बात करते हैं, लेकिन जो संस्था की नियमावली निर्मला शर्मा को भिजवाई है, वह ‘संपूर्ण परिवर्तन’ की है, जिसमें हाथ से लिखा है ‘संपूर्ण परिवर्तन’। अरविंद आगे लिखते हैं कि संस्था का चुनाव 22 या 23 सितंबर को कराया जाए। इसके लिए मैं आपका आभारी रहूंगा। बताते चलें कि जो 25 नाम अरविंद ने निर्मला शर्मा को भेजे थे, उसमें पंकज गुप्ता, मनीष सिसोदिया और पाणिनी आनंद का नाम शामिल था।
निर्मला शर्मा कहती हैं, “शुरू से ही अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा करते हुए, उस पर पर्दा डालते रहे। बक्करवाला पुनर्वास की मेयरमेंट बुक मुझसे ली। कहा कि हम भ्रष्टाचार पकड़ेंगे, लेकिन न तो मेयरमेंट बुक वापस की। न ही उस पर कोई कार्रवाई की।” बातचीत के दौरान आगे निर्मला कहती हैं कि बक्करवाला की जनसुविधाओं पर दिल्ली सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए थे। इस योजना में हुई गड़बड़ी को पकड़ने के लिए मैंने 20,000 रुपए की मेयरमेंट बुक निकलवाई थी। अरविंद केजरीवाल ने संघर्ष का वादा कर मेयरमेंट बुक मुझसे ले गए, लेकिन कुछ नहीं किया।
अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों को संस्था का सदस्य नहीं बनाया गया। इसकी वजह यह थी कि वे इसके लिए संस्था से वेतन की मांग कर रहे थे। निर्मला शर्मा का दावा है कि इसके बाद भरत डोगरा स्वयं अरविंद केजरीवाल को लेकर उनके पास आए। यहां अरविंद केजरीवाल के ‘परिवर्तन’ और ‘संपूर्ण परिवर्तन’ के कई और राज बेपर्दा होते हैं। कैलाश गोदुका आज भी अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को एक षड्यंत्रकारी के तौर पर याद करते हैं। गोदुका ‘संपूर्ण परिवर्तन’ के सचिव हैं। ‘फोर्ड फाउंडेशन’ की 2002 की सालाना रिपोर्ट से पता चलता है कि
‘संपूर्ण परिवर्तन’ को भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता में जनमत तैयार करने के लिए 80,000 डालर मिले। फोर्ड के इस पैसे को लेकर सदस्यों में मतभेद उभरे। फोर्ड फाउंडेशन के संपर्क मं अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया तभी से थे। यही कारण था कि उन लोगों को
‘संपूर्ण परिवर्तन’ का सदस्य नहीं बनाया गया। निर्मला शर्मा को लिखा गया अरविंद केजरीवाल का पत्र इस बात की तस्दीक करता है।
दरअसल, विदेशी आर्थिक मदद का विवाद इतना बढ़ गया था कि संपूर्ण परिवर्तन की गवर्निंग बॉडी ने फैसला किया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में विदेशी पैसे का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। कैलाश गोदुका कहते हैं, “भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जरूरी है, लेकिन हमने विदेशी पैसा इस्तेमाल न करने का फैसला लिया है, क्योंकि इससे दूसरे देशों के हित जुड़े हो सकते हैं। केजरीवाल और सिसोदिया ने सदस्यों के बीच मतभेद पैदा कर इस संस्था को ही समाप्त करने की कोशिश की।” इस विवाद के बाद ‘संपूर्ण परिवर्तन’ के कार्यकारी सदस्यों ने भविष्य में संस्था के दुरूपयोग की किसी भी संभावना को समाप्त करते हुए इसके काम-काज को स्थगित रखने का फैसला किया था। कैलाश गोदुका कहते हैं, “फोर्ड फाउंडेशन को ‘संपूर्ण परिवर्तन’ की तरफ से मैंने एक पत्र लिखा और पैसे वापस कर दिए।” फोर्ड फाउंडेशन और केजरीवाल के रिश्ते को कैलाश गोदुका की इन बातों से भी समझा जा सकता है। गोदुका बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल और उनके साथी फोर्ड से पैसे मिलने के बाद नौकरी छोड़कर पूरी तरह संस्था का काम करने के लिए हमारे पास आए थे, जब हमने उनसे पूछा कि आखिर आप नौकरी क्यों छोड़ना चाहते हैं? इसपर उनका कहना था कि वे संपूर्ण परिवर्तन को पूरा समय देना चाहते हैं। इससे पहले वे ‘स्टडी लीव’ लेकर काम कर रहे थे। उस समय भी संस्था का मानना था कि यह तरीका गलत है। वह भी उस स्थिति में जब हम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं। फिर यह बात आई कि हमें भ्रष्टाचार को परिभाषित करना होगा। सिर्फ पैसे का भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार नहीं है। अपनी सुविध्ाा के अनुसार भ्रष्टाचार की परिभाषा नहीं गढ़ी जानी चाहिए।
कैलाश गोदुका यह भी दावा करते हैं कि अरविंद केजरीवाल कभी भी संस्था के सदस्य नहीं थे। एक बार उन्होंने सदस्य बनने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था, लेकिन ‘संपूर्ण परिवर्तन’ की गवर्निंग बॉडी ने उसे अस्वीकार कर दिया था। इसलिए उन्हें ‘संपूर्ण परिवर्तन’ या फिर ‘परिवर्तन’ के नाम से जो भी पुरस्कार मिले, वह भी गलत है। यहां देखने वाली बात है कि जिस समय फोर्ड ने
‘संपूर्ण परिवर्तन’ को 80,000 डालर दिए, उसी समय ऑक्सफैम नाम की संस्था को 70,000 डालर दिए। ऑक्सफैम इसी क्षेत्र में 50 साल से काम कर रही है तो दो साल पुरानी ‘संपूर्ण परिवर्तन’ पर इतनी मेहरबानी क्यों? ‘संपूर्ण परिवर्तन’ नाम की कहानी भी दिलचस्प है। ‘परिवर्तन’ नाम की संस्था पहले से ही पंजीकृत थी, इसलिए ‘संपूर्ण परिवर्तन’ के नाम से साल 2000 में संस्था पंजीकृत करवाई गई थी। संस्थाओं का घालमेल भी यहां दिखता है। परिवर्तन के नाम से कार्यक्रम किए जाते हैं। परिवर्तन के नाम से ही चंदा इकट्ठा किया जाता है, जबकि संस्था का पंजीकरण संपूर्ण परिवर्तन के नाम से है। 2005 में विश्व बैंक ने भी ‘परिवर्तन’ को आर्थिक मदद दी, जबकि जिस संस्था को पैसा दिया गया, उसका पंजीकरण ‘संपूर्ण परिवर्तन’ के नाम पर है। क्या इसमें विदेशी आर्थिक मदद संबंधी नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ?