किसानो की दशा सुधारने की जरुरत

 

देविन्दर शर्मा

साल 2019 भी बीत गया | हालांकि इस वर्ष में किसानों को अपने बेहतर भविष्य कि काफी उम्मीदें थी ,लेकिन अब  जबकि 2019 इतिहास का हिस्सा हो गया है | कृषक समुदाय अब भी अपनी खेती की लागत को वसूलने के लिए जूझ रहा है | कुछ फसलों को छोड़ कर बाकी सभी फसलों कि कीमतों में गिरावट आई है,जिससे किसानों  को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ | कृषि संकट के साथ खेत मजदूरों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा | कृषि मजदूरी पांच साल के निचले स्तर पर पहुँच गई | लगभग दो दशक से वास्तविक कृषि आय में गिरावट आई है | यह निराशाजनक प्रवृति 2019 में भी जारी रही | जब देश का 42 फीसदी हिस्सा अप्रैल में भयंकर सूखे की चपेट में था , तो मुझे लगा कि सूखे के कारण किसानों कि दुर्दशा लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान एक बड़ा मुद्दा बनेगी | लेकिन महाराष्ट्र ,कर्णाटक और तेलंगाना में छिटपुट चर्चा को छोड़कर इस बढ़ाते कृषि संकट पर कोई ख़ास राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं हुई |

           भयंकर सूखे के बाद अनियमित मानसून ने कर्णाटक , महाराष्ट्र , केरल और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमानें पर फसलों को बर्बाद किया | इतना ही नहीं तीन साल के लगातार सूखे के बाद अगस्त में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में मुसलाधार वारिश हुई | फिर भी वर्ष 2018-19 में खाद्यान उत्पादन बढ़कर 28.13 करोड़ टन हो गया , जो इससे पहले के पांच वर्षों के औसत खाद्यान उत्पादन से 1.56 करोड़ टन ज्यादा है | हालांकि रिकार्ड फसल उत्पादन के युग में भी खाद्यान उत्पादन में वृद्धि किसानों  को उच्च आय देने में विफल रही | नीति आयोग के अनुसार ,पिछले दो वर्षों में वास्तविक कृषि आय में वृद्धि शून्य के करीब रही है | और इससे पहले 2011-12 से 2015-16 के दौरान वास्तविक कृषि आय में वृद्धि प्रति वर्ष आधा फीसदी से भी कम रही |

यह भारतीय कृषि का मजाक है ,जो स्पष्ट रूप से खेती की बारहमासी उपेक्षा की ओर इशारा करता है | किसी भी तरह से कृषि को एक गैर –आर्थिक गतिविधि  जाता है ,जिसे किसी तरह सब्सिडी देकर बचाया जा रहा है | प्रमुख आर्थिक सोच का उद्देश्य आबादी के एक बड़े हिस्से को ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्रों में भेजना है ,जिसे सस्ते श्रम कि आवश्यकता है | ऐसे में कृषि की उपेक्षा त्रुटिपूर्ण अर्थशास्त्र का स्वाभाविक परिणाम है | वर्ष 2011-12से 2017-18 के बीच कृषि में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश जीडीपी का 0.3 से 0.4 फीसदी आबादी खेती में संलग्न है |

दुर्भाग्य से जिस बात का एहसास नहीं किया जा रहा है , वह यह कि बेरोजगारी 45 साल के उच्चतम स्तर पर है और अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर चल रहा है | ऐसे में कृषि को मजबूत करना ही ग्रामीण खर्च में बढ़ोतरी का एकमात्र उपाय है , जिससे अधिक मांग पैदा होती है , जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के पहिये को गति देती है | यदि किसान को हर फसल से केवल लाभ हो , तो कृषि क्षेत्र की तस्वीर हमेशा के लिए बदल जाएगी | और अगर खेती एक बार लाभप्रद हो गई , तो शहरों से बेरोजगार युवावों का बड़ा हिस्सा ग्रामीण इलाकों में लौटकर कृषि कार्य में लग जाएगा | मैंने अक्सर कहा है कि कृषि में भारत की शिथिल अर्थव्यवस्था में जान फूकने कि क्षमता है |

वर्ष 2019 के अंतरिम बजट में किसानों को हुए नुकसान को आंशिक रूप से दूर करने के लिए प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करने के लिए प्रयास किया गया था , जिसके बारे में मैं वर्षों से कह रहा था |प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत प्रत्येक भूस्वामी किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये देने का प्रावधान किया गया था | भले ही इससे किसानों को प्रति माह 500 रुपये का न्यूनतम समर्थन ही मिलाता है ,लेकिन वास्तव में यह नीतिगत योजना में एक बड़ा बदलाव है , जो कृषि में समर्थन के लिए ‘मूल्य नीति ‘से आय नीति कि ओर बढ़ रहा है | मंदी के दौर में उद्दोगों को प्रोत्साहन देने के बजे ,1 .45 लाख करोड़ रुपये कि कार्पोरेट टैक्स छूट, बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 75 हजार करोड़ रुपये और रियल स्टेट को 25000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन पैकेज शामिल है , अगर गरीबों के हाथ में और अधिक धन दिया जाए , तो वास्तव में मांग बढ़ सकती है | यह तभी संभव है ,जब प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और मनारेगा को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाए , क्योंकि ये दो ऐसे नीतिगत हस्तक्षेप है ,जो बदलाव ला सकते हैं |

मेरा सुझाव है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 1.50 लाख करोड़ रुपये का प्रोत्साहन पैकेज दिया जाए ,जिससे किसानों को प्रति वर्ष 18,000 रुपये या प्रति माह 1500 रुपये का प्रत्यक्ष समर्थन मिल सके | इसके अलावा इस योजना को इस तरह विस्तृत करने की जरुरत है ,ताकि अनुमानित 40 फीसदी बटाईदार किसान भी इसके दायरे में आ सकें | मनरेगा के लिए भी आवंटन बढाया जाना चाहिए , तभी प्रोत्साहन का फायदा उन लोंगों को मिल सकेगा ,जिन्हें इसकी वास्तव में जरुरत है | इसके साथ कृषि एवं ग्रामीण विकास में कई सुधार करने होंगे तभी ग्रामीण खर्चों में देश को पुनरुत्थान दिखाई देगा और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी | कॉरपोरेट जगत टैक्स में कटौती का इंतजार कर सकता है ,लेकिन गरीब लोग इंतज़ार नहीं कर सकते |

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