भारतीय सेना के पराक्रम और कुशलता के कारण पिछले दो सप्ताह में पैगांग सो क्षेत्र में पासा पलट गया है। पिछले महीने 29 और 30 तारीख को भारतीय सेना ने पैगांग झील के दक्षिणी किनारे की नियंत्रण रेखा से सटी अधिकांश पहाड़ी ऊंचाइयों पर अपना नियंत्रण कर लिया था। पिछले सप्ताह उसने पैंगांग सो के उत्तरी किनारे पर फिंगर तीन की ऊंचाइयों पर नियंत्रण करके अपनी स्थिति और मजबूत कर ली। दो सप्ताह पहले तक भारतीय सेना पर दबाव था क्योंकि चीनी सेना फिंगर 4 से 8 तक की ऊंचाइयों पर नियंत्रण किए बैठी थी। आरंभिक बातचीत में सैनिकों की पुरानी स्थिति पर वापसी के लिए बनी सहमति के बावजूद चीनी सेना इन क्षेत्रों से हटने के लिए तैयार नहीं थी। उसने अपने अतिक्रमण पर बात करने से ही इनकार कर दिया था।
यह स्थिति हमारे लिए न केवल रणनीतिक कठिनाइयां पैदा कर रही थीं, बल्कि राजनैतिक कठिनाइयां भी पैदा कर रही थी। इससे दुनियाभर में संदेश जा रहा था कि लद्दाख में चीनी सेना भारतीय सेना पर हावी है। भारत चीन द्वारा किए गए अतिक्रमण को समाप्त करने में सफल नहीं हो पा रहा।
भारत के भीतर भी विपक्षी कांग्रेस निरंतर यह प्रचार कर रही थी कि चीन ने भारत की जमीन हथिया ली है जबकि सच्चाई यह है कि फिंगर 4 और 8 के बीच का क्षेत्र भारत और चीन दोनों की संयुक्त निगरानी में था। दोनों देश की सेनाएं इस क्षेत्र में गश्त करती थीं। चार महीने पहले चीनी सेना ने भारतीय गश्ती दल को फिंगर चार से आगे बढ़ने से रोक दिया था। इसके बाद ही यह विवाद शुरू हुआ था। उसके बाद 14-15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने स्थिति को गंभीर बना दिया। तब से दोनों देशों के बीच तनातनी जारी थी और युद्ध की आशंका बनी हुई थी।
पैगांग सो पर पासा पलट कर अब भारत ने चीन पर दबाव बना दिया है। पैगांग सो के दक्षिणी किनारे पर रणनीतिक महत्व की सभी ऊंचाइयों पर नियंत्रण करके भारत ने चीन के सामने काफी बड़ी समस्या पैदा कर दी है। इससे एक बार फिर यह सिद्ध हो गया है कि चीनी सेना भारतीय सेना से पराक्रम और रणनीतिक कौशल दोनों दृष्टियों से काफी कमजोर है।
चीनी सेना भारतीय सेना का पराक्रम गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के दौरान देख चुकी है। उस समय चीनी सैनिकों के धोखे का शिकार होने के बावजूद भारतीय सैनिक उनको तुलनात्मक रूप से अधिक क्षति पहुंचाने में सफल रहे थे। उस घटना के बाद से चीनी सैनिकों का मनोबल काफी गिरा हुआ है। यह भारतीय सेना द्वारा पैगांग झील के दक्षिणी किनारे की पहाड़ी ऊंचाइयों पर नियंत्रण के समय देखा जा सकता था।
इन ऊंचाइयों पर कब्जा करने की पहल चीनी सैनिकों ने ही की थी। लेकिन भारतीय सेना ने तत्काल कार्रवाई की और भारतीय सैनिकों को देखते ही चीनी सैनिक भाग खड़े हुए। भारतीय सेना ने तत्परता से इस क्षेत्र की अधिकांश पहाड़ी ऊंचाइयों पर अपना कब्जा कर लिया। यह कहा जा रहा है कि चीनी सेना के इस कायरतापूर्ण व्यवहार से चीन शिखर नेतृत्व बहुत क्षुब्ध है। इसके बाद अपने मध्यकालीन बर्बर हथियारों के साथ चीनी सैनिक कई बार कुछ ऊंचे ठिकानों पर कब्जा करने की असफल कोशिश करते रहे हैं। उनकी ऐसी ही एक कोशिश के दौरान पिछले सप्ताह 45 साल में पहली बार गोली चली थी। यह हवाई फायर भागते हुए चीनियों ने ही किया था, पर उससे उनकी बेबसी ही प्रकट हुई। चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को फिंगर 4 की ऊंचाई के अपने पड़ाव के ठीक सामने फिंगर तीन की ऊंचाई पर कब्जा करने से भी नहीं रोक पाए। भारतीय सैनिकों की इस कुशलता ने चीन के सैनिक और राजनैतिक नेतृत्व को बहुत बड़ी परेशानी में डाल दिया है।
अब तक चीन निरंतर ढिंढ़ोरा पीटता रहा है कि उसके पास भारत से बड़ी सेना है और भारत से अधिक शस्त्र बल है। उसकी अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुनी है। वह यह दावा करता रहा है कि युद्ध की स्थिति में वह भारत को आसानी से परास्त कर सकता है। उसका प्रचार तंत्र निरंतर यह दोहराता रहा है कि अगर युद्ध हुआ तो इस बार भारत को 1962 से भी बुरी पराजय का मुंह देखना पड़ेगा।
पिछले चार महीने से वह अपनी सैनिक क्षमता का प्रदर्शन कर रहा है। उसने ऐसे कई वीडियो जारी किए हैं, जो यह दिखाते हैं कि वह अपने मुख्य क्षेत्र से तिब्बत के सैनिक ठिकानों तक बड़ी तत्परता और आसानी से सैनिक तथा अन्य साज-सामान भेज सकता है। वह सिक्यांग और तिब्बत में अपने लड़ाकू विमानों की संख्या बढ़ाता रहा है। उसने मान सरोवर क्षेत्र में मिसाइलें तैनात करके भारत को डराने की भरपूर कोशिश की है।
उसने लद्दाख क्षेत्र में भारत पर दबाव बनाने के लिए आसपास के क्षेत्रों में लगभग 35 हजार सैनिकों को जमा कर रखा है। इस सबके द्वारा वह चीनी नागरिकों को यह दिखाने की कोशिश करता रहा है कि भारत उसका मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। चीन को आशा थी कि भारत उसके इस आक्रामक रुख के सामने पस्त हो जाएगा और चीन नियंत्रण रेखा पर दबाव बनाकर भारत को झुकने के लिए विवश कर देगा। पर भारतीय सेना ने अपने साहस और रणनीतिक कुशलता से उसके इस प्रचार की पोल खोल दी है। इससे चीन के सामने सबसे बड़ी समस्या यह पैदा हो गई है कि वह अपने लोगों को इसका क्या स्पष्टीकरण दे। चीन एक नियंत्रित ही नहीं, निरंकुश राजनैतिक व्यवस्था है। इसलिए चीनी लोगों का असंतोष इस समय भले न प्रकट हो पाए, उनका अपनी सेना और सरकार में भरोसा अवश्य ही कम हो जाएगा।
चीनी नेतृत्व की सबसे बड़ी असफलता यह है कि वह लद्दाख की परिस्थितियों का सही आकलन नहीं कर पाया और नियंत्रण रेखा पर दबाव बनाने के लिए उसने गलत समय चुना। पिछले कुछ वर्षों में चीन ने तिब्बत में अपने सामरिक तंत्र का काफी विकास किया है। पर चीन यह भी जानता है कि तिब्बत की भौगोलिक स्थितियां उसके लिए सुगम नहीं है।
तिब्बत की स्थानीय आबादी उसके विरोध में है। इन परिस्थितियों में कोई लंबा युद्ध लड़ना उसके लिए सरल नहीं होगा। उसके मुकाबले भारत सीमा से लगे क्षेत्र में अपना सामरिक तंत्र विकसित करने में भले पिछड़ गया हो, कुल मिलाकर परिस्थितियां भारतीय सेना के अधिक अनुकूल हैं। नियंत्रण रेखा के समीपवर्ती क्षेत्र भारत के मुख्य क्षेत्र से अधिक दूर नहीं है इसलिए सेना को वहां तक साज-सामान पहुंचाने में अधिक कठिनाइयां नहीं आती।
अन्य क्षेत्रों में भारतीय सेना को भले ही कुछ कठिनाइयां अनुभव हों लद्दाख में तो परिस्थितियां उसके काफी अनुकूल हैं। भारत ने संविधान की धारा 370 समाप्त करके हाल ही जम्मू-कश्मीर का विभाजन किया है और लद्दाख को सीधे केंद्र के नियंत्रण ले लिया है। भारत संसद में यह घोषित कर चुका है कि वह पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित जम्मू-कश्मीर व अक्साईचिन को अपने नियंत्रण में लेने के लिए कृतसंकल्प है।
चीन की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उसने अपने लोगों का ध्यान अमेरिका से छिड़े हुए आर्थिक युद्ध से हटाने के लिए लद्दाख का इस्तेमाल किया। चीन भूल गया कि अमेरिका ही नहीं कोविड-19 के कारण विश्व जनमत उसके खिलाफ है। भारत को अमेरिका, फ्रांस, रूस ने इस दौरान तत्परता से उन्नत हेलीकॉप्टर, लड़ाकू विमान और अन्य युद्ध सामग्री उपलब्ध कर दी। केंद्र सरकार ने सेना को क्रियात्मक स्वतंत्रता दी। इस सबने हमारी सेना का मनोबल काफी बढ़ा दिया।
मास्को में भारत और चीन के विदेश मंत्रीयों के बीच बातचीत से जो पांच सूत्र निकलकर आए हैं, उनका सार यह है कि दोनों देशों के बीच फिलहाल किसी युद्ध की आशंका नहीं है। पर भारत और चीन दोनों में कोई दूसरे के सामने झुकते नहीं दिखना चाहता। दोनों पक्ष जानते हैं कि अगले कुछ सप्ताह में इस पूरे क्षेत्र में शीतकालीन परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी। उस समय दोनों के लिए इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में सेनाओं को तैनात रखना मुश्किल हो जाएगा। कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि इस विवाद से चीन ने पाया कुछ नहीं, खोया बहुत कुछ है।
चीन की इस हरकत से कुपित होकर भारत ने उससे अपने आर्थिक संबंध सीमित करने का फैसला कर लिया है और यह फैसला बदलने वाला नहीं है। इसी तरह भारत ने पुरानी हिचक छोड़कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सभी शक्तियों से सामरिक समझौते करने का निर्णय कर लिया है। भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, फ्रांस और अमेरिकियों के साथ उनकी बंदरगाहों पर भारतीय नौसेना अपेक्षित सहयोग पा सकेगी। ऐसा ही समझौता ब्रिटेन और रूस के साथ किया जाने वाला है।
भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के चतुष्कोणीय गठबंधन को भी मूर्त स्वरूप दिया जा रहा है। ठीक तनातनी के समय रूस की सेनाओं के साथ हिंद महासागर में युद्धाभ्यास भी इस बात का संकेत है कि परिस्थितियां भारत के अधिक अनुकूल हैं। आने वाले समय में चीन के नेताओं को ही यह सोचना पड़ेगा कि उन्होंने इस कठिन समय भारत से तनाव बढ़ाने की बेवकूफी क्यों की। क्या चीन दबाव में आए पाकिस्तानियों का हौंसला बढ़ाना चाहता था? अथवा वह अक्साईचिन की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गया था? या वह केवल अमेरिका से पैदा हुई तनातनी की ओर से अपने लोगों का ध्यान हटाना चाहता था? जो भी हो, लद्दाख में बाजी पलट गई है। चीनी सेना अब वहां और कोई दुस्साहस करने की स्थिति में नहीं रहेगी।